" " रूमाल बदल गया या वही है?
निश्चित ही कठिनाई हुई होगी। क्योंकि यह कहना भी गलत है कि रूमाल बदल गया। क्योंकि रूमाल बिलकुल वही है। " जितना था, जैसे था, वैसा ही रूमाल अभी भी है। " इतनी बदलाहट जरूर हो गई है।
तो एक भिक्षुक ने खड़े होकर कहा, बड़ा कठिन सवाल पू पू रूमाल लगभग बदल गया है। बदला भी नहीं है और बदल भी गया है। " " नहीं बदला है भीत से, लेकिन बाह से गांठ लग है औ औ बदलाहट हो है है। आकार बदल गया है, आकृति बदल गई है। " " "
" " " लेकिन जब पंखा रखा हो, तब उसको पंखा नहीं कहना चाहिेि पंखा का मतलब हुआ जिससे हवा की जा रही है। लेकिन जब रखा है तब तो हवा नहीं की जा रही है। तो उसे पंखा नहीं कहना चाहिये।
पैर वे है जिनसे आप चलते हैं। लेकिन जब आप नहीं चलते हैं तब उन्हें पै कहना नहीं चाहिये।। फंक्शनल, उनका क्रिया का नाम होना चाहिये। " इसलिये काम चलाते है।
तो. जिससे हवा हो सकती है, जिसमें संभावना छिपी है। रूमाल का कोई उपयोग है, उसमें कुछ बांधा जा सकता हैा लेकिन जो ूम ूमाल खुद ही बंधा हो, उसमें अब नहीं बांधा जा सकता।। "
" गांठें और छोटी हो गई और बारीक होकर कस गई।
Lass es! जो. " मैं कर रहा हूँ। लेकिन तुम कहते हो ऐसा करने से रूमाल और बंधति तो क्या करने से रूमाल खुलेगा?
तब एक भिक्षुक ने कहा, पहले जानना होगा की गठान कैसे बंधी है।।।। " तो पहले देखना होगा की गांठ बंधी कैसे है। " "
" हमारा स्वभाव ठीक वैसा ही है जैसा पप ब्ह्म का, लेकिन हम प कुछ गांठे हैं।। "
निर्ग्रंथ शब्द बड़ा कीमती है। " इतना ही अंतर है। "
'अपनी आत्मा में ही सब वस्तुओं का "
गांठ जब रूमाल पर लगती है तो बाहर से कहीं से आती नह कभी आपने गांठ अकेली देखी है बिना रूमाल के? कभी आपने गांठ अकेली देखी है बिना रस्सी के? शुद्ध गांठ आपने कभी देखी? जब भी देखी होगी किसी चीज प होगी होगी अकेली गांठ कहीं भी हो हो सकती।।।
तो गांठ आई कहाँ से? क्या रूमाल के भीतर से आई है? " बाहर से आई नहीं, क्योंकि बाहर कभी गांठ पाई नहीं थज " "
संसार जो है हमारा अर्जन है, एचीवमेंट है। हमने बड़ी चेष्टा करके निर्मित किया है। हमने बड़े उपाय किये है, तब निर्मित किया है। " इस चेतना में जो कुछ भी दिखाई पड़ता है, वह आरोपण है आपको जो भी भीतर अनुभव में आता है, वह सब आरोपण है।
" " लेकिन मनुष्य के पास एक यंत्र है मन का। " सच तो यह है कि प प अग अग न पकड़े तो मन की उपयोगिता ही नष्ट हो जाये। "
" तो जब तक हम. " " " "