" अतः निश्चित है, कि व्यक्ति का व्यवहा größer "
आलस्य, प्रमाद, अहंकार भी मन के ही उत्पाद हैं, जैसे मन कहता है, वैसा ही शरीर करता है और ऐसा इसलिये होता, क्योंकि हमारा मन पर नियंत्रण नहीं है, मन हमारे काबू में नहीं है, अपितु हम उसके दास हो गये हैं और मन हमारा मालिक बन गया है। " " मन ही मोह उत्पन्न करता है। " " "
इसीलिये ज्ञानी पु पु ने कहा है, कि कुकामनाओं का त्याग क मन को को नि निनि्विकार बनाओ। " " " " "
यह स्पष्ट है, कि व्यक्ति के स्वयं के हाथ में ही है, कि वह बंधन युक्त हना चाहता है या बंधन मुक्त। " "
" " " परन्तु एक बात तुमहारे ध्यान में नहीं आयी।
" " " इसका काण मैं बताता हूं- हमाे मन में जैसी भावनायें पनपती हैं हम उन्हीं के हो हो जाते हैं।।
इसलिये हमें अपने. " जब मन नियंत्रित होगा, जब उसकी चंचलता समाप्त होगी, तभी व्यक्ति साधनाओं या यौगिक क्रियाओं को पूर्णता से सम्पन्न कर सकेगा, तभी वह साधक तत्व की वास्तविक भाव भूमि पर क्रियाशील हो सकेगा, तभी वह साधनाओ में सिद्धता से युक्त हो सकेगा।
यह सम्पूपू्ण विश्व एक ंगमंच मात्; " , लेकिन अंत में कुछ भी शेष नहीं रहता।
वर्षा की अंधेरी रात्रि में आकाश में बादल घिरे थे बीच-बीच में बिजली तेजी से कड़कती, चमकती थी। एक युवक उसकी चमक के प्रकाश में ही अपना मार्ग दइह र ख " वह वृद्ध उस झोपड़ी को छोड़कर कभी भी कहीं नहीं ग ेे " स्वयं में ही क्या सारा संसार नहीं है?
वह युवक थोड़ी देर झोपड़ी के बाहर खड़ा रहा। फिर उसने डरते-डरते द्वार पर दस्तक दी। भीतर से आवाज आयी, कौन है? क्या खोजता है? वह युवक बोला- यह तो ज्ञात नहीं मैं कौन हूं? हां वर्षों से आनंद की तलाश में जरूर भटक रहा हूं। आनंदको खोजता हूं और वही खोज आपके द्वार पर ले आयी " उस खोज में दीये के तले अंधेरा नहीं चल सकता। लेकिन यह जानना बहुत है कि मैं स्वयं को नहीं जानतह? फिफि द्वा größer उनका सौंदर्य अपूर्व था। युवक उनके चरणों में बैठ गया। उसने वृद्ध के चरणों पर सिर रखकर पूछा आनंद क्या है? आनंद कहां है?
यह सुन वह वृद्ध पुनः हंसने लगे और बोलेः मेरे प्रय! आनंद अशरणता में है। तटस्थ, निरपेक्ष होते ही आनंद की वृद्धि होने लग ती यही भूल है, बाह खोजते हो, वस्तुतः जो बाह है, उसे खोजा जा सकता है।।।।। खोजा जा सकता है जो स्वयं में है, उसे कैसे खोजोगे? सब तो सदा से स्वयं में ही मौजूद है! " " लेकिन एक. अब चुनाव तुम्हारे हाथ में है! " वह वृद्ध हंसे और बोला तुम्हारी भटकन लम्बी हो ग यी "
" " ज्ञान और अज्ञान दोनों से मुक्ति। " " वही अहं ब्रह्मसिं का भाव है।
मन ही मनुष्यों के लिये बन्धन और मोक्ष का कारण हैण
Es ist obligatorisch zu erhalten Guru Diksha von Revered Gurudev, bevor er Sadhana ausführt oder einen anderen Diksha nimmt. Kontaktieren Sie bitte Kailash Siddhashram, Jodhpur bis E-Mail , Whatsapp, Telefon or Anfrage abschicken um geweihtes und Mantra-geheiligtes Sadhana-Material und weitere Anleitung zu erhalten,