इसीलिये. " " "
इसकी चsal " होता। " "
" उस व्यक्ति को बदलाहट आवश्यक नहीं- वह व्यक्ति जैसा था वैसा ही हे हे हे, ज्ञान इकट्ठा हो जायेगा। लेकिन अध्यात्म का क्षेत्र बिलकुल भिन भिन्न है, वहां ज्ञान के पहले ूप ूप ही नहीं प चाहिये बदले ही आदमी आदमी बदले।।। प पायेग बदले ही समझ प प बदले बदले।। wider " " से सत्य जूझना खतरा है, क्योंकि सत्य आपको वहीं नहीं छोड़ेगा जो आप हैं, वह आपको बदलेगा, तोड़ेगा, मिटायेगा, नया करेगा, नया जन्म देगा और इससे हमें पीड़ा का अनुभव होगा क्योंकि यही हमें नूतन जन्म देगा, नूतन व्यक्तित्व प्रदान करेगा। "
यह कभी नहीं हो सकता की व्यक्ति अपने नये को बिना पीड़ा के पा ले।। " " "
यह विद्या जिसमें हम अपने आपको मिटाक, समाप्त कक नया जन्म लेते हैं।।। यह कोई सरल क्रिया नहीं है। " " जो हमें अपने ज्ञान व चेतना के माध्यम से नये जीवन के निर्माण में सहायता प्रदान करते है और हमारे रूपान्तरण की क्रिया में होने वाली पीड़ा को सहन करने की शक्ति प्रदान करते हैं, जिससे हमें शुद्ध जीवन की प्राप्ति हो और हम जीवन के सत्य को समझ सकें। " "
गुरू से सीखना नहीं पड़ता, गुरू के साथ होना काफी होना " " गुरू आपके जीवन को रूपान्तरण कर सकते हैं।
जब व्यक्ति अपने आपको पूर्ण रूप से गुरू को समर्पित कर देता है जब उसमें गुरू के प्रति पूर्ण समर्पण की भावना जाग्रत हो जाती है तब उस शिष्य के साथ गुरू चलते हैं और गुरू के साथ शिष्य को चलना पड़ता है और बहुत बार गुरू को ऐसे रास्ते " "
" का हाथ, हाथ में लेकर। " "
अतः. "
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