" " " " विचार शक्ति का स्वरूप हैं, जब कि विचार पराए है। विचार शक्ति को स्वयं ही खोजना होता है, औऔ विचार को स्वयं ही बाह कका होता है।।।। ही बाह " " "
विचार- संग्ह के दौड़ों जो जो पड़ा है ज जानना चाहिये कि इस भांति वह स्वयं ही स्वयं की विचा शक्ति से दूदू निकलता जाता है।। विचार-संग्रह की दौड़ भी धन-संग्रह की दौड़ जैसी ही ही धन-संग्ह स्थूल धन-संग्ह है, तो विचार-संग्ह सूक्ष्म धन-सग्ह औ याद खे कि संग संगsal संग संग आंतआंत दद दद्ता केsal होते हैं।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।। संग संग संग संग संग संग संग संग।।।।।।।।।।।।।।। संग। आंत आंतआंत द द य दschieden भीतभीत की दद्ता का अनुभव ही बाह के की तल तलाश में ले जाता है।। और यही मूल भूल शुरू हो जाती है। " Lass es! " दद्ता भीत है तो ऐसी समृद्धि को खोजना होगा जो स्वयं के भीत की की हो हो।।।। स स्वयं
मैं. धन चाहते हैं या कि धनी दिखना चाहते हैं? ज्ञान चाहते हैं या अज्ञानी नहीं दिखना चाहते? सबभ्रांति के संग्रह दूसरों को धोखा देने के उप ाय लेकिन भ्रांति स्वयं भी भीतर की ही हो। "
विचार-संग्रह ज्ञान नहीं, स्मृति है। लेकिन स्मृति के प्र्रशिक्षण को ही ज्ञान समझि विचार स्मृति के कोष में संगृहीत होते जाते हैं। " जब कि विचार का स्मृति से क्या संबंध? स्मृति है अतीत, बीते हुये अनुभवों का मृत संग्रह् उसमें जीवित समस्या का समाधान कहां? "
" " और उनमें न कोई संगति होती है और कोई संबंध। ऐसा चित्त बूढ़ा हो जाता है औ जीवन से उसका संस्पप्श शिथिल।।। "
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" वर्तमान को ऐसे कैसे देखा जा सकता है? सम्यक ूप से देखने के लिये तो भली भली-भांति खाली होनी चाहिये। " " "
विचार शक्ति के जागग के लिये विचाों का कम कम कम होना आवश्यक है। स्मृति बोझ नहीं होनी चाहिये। " शास्त्रों में देखने की वृत्ति छोड़नी चाहिये। समस्या के समाधान के लिये समस्या को समग्ता में जानना पड़ता है। पिफ़र चाहे वह समस्या किसी भी तल पर क्यों न हो। "
वस्तुतः समस्या में ही समाधान भी छिपा होता है। " विचा nächsten " " फिर चलने से ही चलना आता है।
विचारों से मुक्त हों और देखें। क्या देखेंगे? " किसी अभिनव और अपरिचित ऊर्जा का अविर्भाव हो रहथॹ " . विचार-शक्ति का उदभव होता है तो जीवन में आंखे मिल मिल और जहां आलोक है, वहां आनंद है। और जहां आंख है, वहां मार्ग निष्कंटक है। "
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