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मैं पिछले. बिना प्राणों के शरीर को जल्दी से जल्दी उठा कर श्मशान में ले जाने को आतुर हो जाते है और बिना गुरू स्पन्दन के तुम्हारा शरीर भी एक खोखला, प्राण रहित, मात्र रक्त मज्जा का शरीर रह गया है ऐसा शरीर चलता-फिरता तो है, पर " घसीटते-घसीटते श्मशान तक ले जाने के लिए तुम प्रयत्नशील हो और तुम्हारे चारों तरफ का समाज तुम्हें ऐसे ही कार्य में सहायता कर रहा है।
" शायद तुमको प्राण शब्द का अर्थ ही नहीं पता होगा, तुमको प्राण वायु का भी अर्थ पता नहीं होगा, तुमको यह भी पता नहीं होगा कि तुम अपने नथुनों से जो आक्सीजन खींच रहे हो वह अधिक से अधिक तुम्हारे शरीर को ही जीवित बनाए रख सकती है । शरीर कोई हाड़ मांस का पिंड भर नहीं होता! " क्या तुम्हारे
" एक सामाजिक समायोजन शास्त्री भर ही तो होता है परिवार, यही तो कहते है तुम्हारे समाजशास्त्री भी व्यर्थ है उनसे उम्मीद करना कि वे तुम्हारे प्राण स्वरूप हो और गुरू को तुम भले ही भौतिक रूप में देखो और पहचानो, लेकिन वही होता है प्राणों का घनीभूत स्वरूप , जहां से होता है तुम्हार नवीन सृजन तुमको द्विज बनाने की घटना, इसी से गु गु गु को मातृ स्व औ पितृ सsal स दोनों कहा गया है।।।। औ औ पितृ सsal " " वाली सुगन्ध को पहचानने की क्षमता प्रप्त कक क उस सुगन्ध से प प्राणों को लो लो।।
जब तुम अपने को. लौट जाओं मुझसे नया जन्म प्राप्त करके, मैं तुम्हारा परिवार, तुम्हारा परिवेश छीनना नहीं चाहता, तुम्हें उसी में सुरक्षा अनुभव होती है तो मैं उसमें बाधा नहीं बनूंगा, मैं ऐसा चाहूंगा ही नहीं कि तुम्हारे मन में कोई घुटन रह जाये, पर इतना अवश्य चाहूंगा कि. " "
" उमंग होगी, तुम्हारे चेहरे पर एक नया आभामण्डल होगा, तुम्हारे शरीर के रोम-रोम में एक अद्वितीय सुगन्ध का प्रवाह होगा और इसीलिये तुम उन सबसे अपने आप को अद्वितीय अनुभव कर सकोगे। वे एहसास करेंगे कि यह सब क्या हो गया है? वे आश्चर्यचकित होंगे, कि ऐसा कैसे हो गया है?
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जब तुम अपने. " तब तुम बहती.
" " की, मेमे साथ बैठने की, मेमे साथ आनन्द प्र्त कक क की औ मेमे प्राणों से प प्राणों को एकाकार क की की।।।। प प्राणों
और जब तुम ऐसा कर लोगे, तब तुम्हारे शरीर से एक प्रकाश फुटेगा, तब तुम्हारी आत्मा से ज्ञान का सूर्य उदय होगा, तब तुम्हारे रोम-रोम से आनन्द की लहरियां पूरे समाज में फैल सकेंगी, तब तुम बुद्ध बन सकोगे, तब तुम शंकराचार्य बन सकोगे, तब जीवन जीवन्त व्यक्तित्व बन सकोगे औ तुम ऐसे बन सको सको सको मेमेा ऐसा ही आशीआशी्वाद प्त्येक क्षण तुम्हाे साथ है।।
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