Kraftvolle Rede
यज्जोग्रतो दूरमुदैति देवं तदु सुप्रस्ि दूंदूं ज्योतिषां ज्योतियोतियोति तन्मे मनः शिवसंकल्पमस्तु ।।
Von der Ferne zum Begehren, zur Zerstörung des Gegenlebens. Unsere unerhörte Nahrung, zeuge uns mit Verlangen.
हे परमेश्वर स्वरूप सद्गुरू! " संकल्प से युक्त हो जाये।
" "
" oder? " "
दवा सो पवदना यजोवासे वः सतं दाह वैडो सतं
क्या हम जो कुछ देखते है वह बिल बिल बिल एक. " " " " पदार्थ उसको कहते हैं जो जगह घेरता हो, पदार्थ उसको कहते हैं जिसमें घनत्व होता है और मनुष्य में घनत्व भी है, मनुष्य जगह घेरता है और मनुष्य में भार है इसीलिये मनुष्य भी पदार्थ की श्रेणी में आता है और दूसरी ओर यह माया, जब हम -
'अहं ब्रह्मस्मि द्वितीयो नास्ति'
" " -विलास यह सब क्या है?
क्योंकि शास्त्र तो झूठ है नहीं, और शास्त्र में यह कहा है, 'अहं ब्रह्मास्मि', क्योंकि संसार में केवल मैं हूँ 'अहं' और अहं शब्द बना है पूरी संस्कृत की वर्णमाला का सारगर्भित स्वरूप, क्योंकि वर्णमाला का प्रथम अक्षर 'अ' से शुरू होता है और अंतिम अक्षर 'ह' है। अ आ इ ई से शुरू करते हैं ग घ और य र ल व श स ष ह। "
" " " जो कुछ भी समझ सकते हो, वह मैं स्वयं ही हूँ।
यह तो उन लोगों की विचारधारा है जो अद्वैत मानते है " , वह है ही नहीं। " जो मेरे ऊपर प्रभाव डाल सकती है तो दूसरी कोई चीज जी वह. दूसरी चीज जरूर है जो प्रभाव पड़ता है और हम पर प्रभाव पड़ता है सर्दी का, गर्मी का, परिस्थितियों का, गाली का, प्रसन्नता का, सम्मान का, असम्मान का, बीमारियों का, रोग का, सुख का और दुःख का।
" अग अग दूस दूस चीज है नहीं व्याप्त कक वाली, कोई चीज है ही नहीं नहीं तो तुम ोते ोते हो कभी तुम प्सन्न होते हो ऐसा क्यों होता है? " "
" " "
प्रश्न यही नहीं समाप्त होता है। यहां तो मैंने तुम्हें यह समझाया है कि द्वैत का अर्थ क्या है, अद्वैत का अर्थ क्या है और विद्वानों ने द्वैत क्यों कहा और विद्वानों ने अद्वैत क्यों कहा और प्रारम्भ से लगाकर आज तक अद्वैत को भी मानने वाले सैकड़ों ऋषि, संन्यासी, विद्वान हुये और द्वैत को मानने वाले भी सैकड़ों ऋषि, संन्यासी, विद्वान हुये।।।।।
अब प्श्न यह उठता है क क्या गुगु औऔ शिष्य अद्वैत है या द्वैत हैं? " जिनको कि देवता ही नहीं महादेव कहा गया है और उन्होने जो कुछ व्याख्याये की, जो कुछ चिंतन किया, जो कुछ तर्क दिया, जो कुछ बात कही, वह अपने आप में अत्यन्त सारगर्भित और महत्वपूर्ण है और जहां गुरू और शिष्य प्रसंग आया वहां पर शंकराचार्य ने स्पष्ट रूप से कहा-
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" " " 60 प्तिशत विद्वानों ने से से लगाक अनव अनव इस बात को कहा कि माया अलग है ब्ह्म अलग औ औ म म म म प प प प प प म म म म म म म भी भी भी भी भी भी भी भी भी भी भी भी भी भी भी भी भी भी भी भी भी भी भी भी भी भी भी भी भी भी भी भी भी भी भी भी भी भी भी भी भी भी भी भी भी भी क क कschieden " जब. "
इसलिये गुरू और शिष्य भी अपने आप में द्वैत है। शिष्य की मर्यादा है, गुरू की मर्यादा है। " " और लीन होकर के अद्वैत बन सकता है।
" गुरू एक मर्यादा में बंधा हुआ है। " " " वह दुःख आने प भी दुःखी. को हलवा मिठाई मिल गई तो भी ठीक है सूखे टुकड़े मिल तो भी भी ठीक है।।।। अगर ऐसा चिंतन उसके मानस में सहज रूप में है तो वँ गें है तो वँ ग
" 36 विकाों में- काम, क्ोध, मोह, लोभ, लालच, स्वार्थ, ऐश, आआाम, चिंतन, निद्रा, झूठ, छल, कपट, व्यभिचार, ममता, अटेचमेंट, स्नेह, ह ह ह, शोक।।।। ।ार " संचार का मतलब है गतिशील, एक ही भाव स्थिर नहीं रहत "
शिष्य अपने आप में द्वैत है। शिष्य धीरे-धीरे अद्वैत की स्टेज में आ सकता है, वह पहुँच सकता है अपने आप में गुरू को स्थापित करके और अपने आपमें गुरू को स्थापन करने की क्रिया का प्रारम्भ होता है उसकी प्रारम्भिक स्थिति जो है दीक्षा और अंतिम स्थिति बनती है तब जब वह " " आज गुरूदेव ने धनुष बाण हाथ में ले लिया है, क्या बा! "
Tulsi-Kopf-Lotus Ich nahm Pfeil und Bogen in die Hand
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" मैंने कहा, प्रारम्भ उसका दीक्षा से है। " " " तीन इंच का हो सकता है। यह डिफरेन्स पांच फुट या तीन इंच का क्यों होता है? " " वह. " " ये संचारी भाव उसको घेरे रखते हैं। घंटे तो दिन में 24 ही औ औ उन उन चौबीस घंटे में घंटे घंटे नींद में।।। " 12 साल की अवस्था तुम्हारी वह चली गई, पीछे रहे तुम्हारे 16 साल में से 16 साल नींद में बिताओंगे और उन 44 साल में भी तुम 22 साल इन संचारी भावों में व्यतीत कर दोगे तो गुरू के हिस्से में तो तुम्हारे कुल जिन्दगी के मात्र दो वर्ष " इसलिये जहां उसने प्रश्न किया है कि जहां शिष्य गलती करे तो, और गलती वह तब ही करता है जब उसमें संचारी भाव जाग्रत होते हैं या उसके ऊपर संचारी भाव होते हैं और जब संचारी भाव हावी होते हैं, जितने संचारी भाव हावी होंगे उतना ही शिष्य "
" मजनूं को पूछा गया कि तुमने खुदा देखा? " " जब राजा जैसा आदमी पूछता है, तुमने खुदा देखा? " " " वह नारी शरीर कहां चला गया, वह उसके मानस में कुछ नहीं क्योंकि वह संचारी भाव जाग्रत हो गया और शिष्य में जब संचारी भाव होगा, जितना भाव है उतना गुरूत्व कम रहेगा इसलिये मैंने कहा कि पूरे जीवनभर भी वह पांच फुट की दूरी बनी रह सकती है औ यदि चाहे तो भी वह गु गु के च च च में पहुँच सकत सकता है।।। इसलिये गलती तब होती है जब उसमें संचारी भाव होते ै है जब " वह. क्या बात है? लेट कैसे आये? गुगु मार्ग में गाड़ी पंच हो हो गई तो पहिया उता था, पहिया ठीक किया थोड़ा। " तुमने अपने वचनों से, अपने लक्षणों से, अपनी बुद्धि से अपनी दूरी बढ़ाई जबकि तुम्हारी ड्यूटी थी गुरू के और दो इंच नजदीक जाना और अगर तुमको कहा, यह काम करना है तो वह काम तुमको करना ही है क्योंकि गुरू को ज्यादा मालूम है कि तुम्हें उनके नजदीक जाने में क्या करना है।
गुरू तो केवल एक कर्त्तव्य है वह गुरू है, वह तुम्हारा पति नहीं, वह तुम्हारी पत्नी नहीं वह तुम्हारा भाई नहीं, वह तुम्हारा सम्बन्धी नहीं है वरन् वह तुम्हारा गुरू है और गुरू की तो केवल एक ही कल्पना है, वह शिष्य को अपने में समाहित करे। " " वह अन्दर लाने का प्रत्यन करता है और शिष्य उन संचारी भावों से दूर जाने का प्रयत्न करता है या नजदीक आने का प्रयत्न करता है इसलिये शिष्य को सापेक्षी कहा गया है कि शिष्य प्रयत्न करे और गुरू की तरफ बढ़े और प्रयत्न पूर्वक उन संचारी भावों को आप " गुरू के चरणों की तरफ साफ-साफ देखता रहे और कुछ नहीं तो आँख बंद करके गुरू को अपने-आप में लीन करने की क्रिया करे और धीरे-धीरे सरकता सरकता एक क्षण ऐसा आता है कि वह गुरूमय बन जाता है क्योंकि उसे गुरू के अलावा "
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" " " " मैं खुदा की इबादत कर रहा हूँ यह क्या कर रही है? खैर फिर नमाज-इबादत अकबर करने लगा। वह वापस प्रेमी से मिलकर जो कुछ बातचीत करनी थी, कर कर " तुम्हें शर्म नहीं आती? मैं खुदा की इबादत कर रहा था, तुम चादर पर पांव रख कर? " तुम्हें कैसे मालूम पड़ा की मैं गई? मुझे तुम दिखाई ही नहीं दिये तो न न चाद दिखाई दी औ औ न आप।।।। " "
" " " " " पहुँच तो आप गए हैं— और यह पहुँचना आवश्यक है।
" होगा उसमें। गुरू भी खुली बाहों से सदा खड़ा रहता है। " उसकी ओओ से कोई विलम्ब नहीं, वह कभी नहीं कहता, नहीं आज नहीं नहीं नहीं कल!
कहता भी है, तो पहल आपकी ओर से होती है। " परन्तु आप ठिठक जाते है। " — और यह खेल है सब कुछ खो देने का। "
"
Das ist nicht alles, was ich meine
Zu meiner Schwester, zu meinem Intellekt, zu meinem
समझ-बूझ को एक त त ख ख दो, क्योंकि इस यात्र में यह बाधक ही।।।।। "
" तब सांसािक का nächsten
" " दोबारा सो मत जाना। वही क्षण महत्वपूवपू्ण है, क्योंकि उसमें इस प्क्िया के प्ैक्टिकल में उत सकते हैं।।।।। प पsprechung यह विज्ञान है ही प्ैक्टिकल, मात्र पढ़ने से काम नहीं चलेगा।
" कका बस इतना है कि आप बुद बुद्धि को त त छोड़े उसे बीच में न ल लाये।
गु? इसके लिये वर्षों का परिश्रम नहीं चाहिये। हाँ, पहले तो आपको ही तैयार होना पड़ेगा। " " यह प्रैक्टिकल क्रिया है। बैठे-बैठे आप प्यास नहीं बुझा सकते औ अग यह सोचें कि झुकूंगा नहीं, तो प्यास बुझने वाली नहीं है।।।। प प्यास बुझने नहीं है है।।।। प प्यास
अगर शिष्य या फिर एक इच्छुक व्यक्ति प्रयास करने के बाद भी बुद्धि से मुक्त नहीं हो पाता, तो गुरू उस पर प्रहार करता है और यही गुरू का कर्त्तव्य भी है, कि उस पर तीक्ष्ण से तीक्ष्ण प्रहार करे तब तक, जब तक कि उसके अहंकार " "
गुरू के पास अनेकों तरीके है प्रहार करने के कठोर कार्य सौंप कर, परीक्षा लेकर, साधना कराकर— और जब ये सभी निष्फल होते दिखे तो विशेष दीक्षा देकर वह ऐसा कर सकता है, परन्तु पहले वह सभी प्रक्रियाओं को आजमा लेता है ताकि व्यक्ति तैयार हो जाये, प्हहाों से वह इतना सक्षम हो जाये कि विशेष दीक्षा के शक्तिशाली प्वाह को सहन क सके सके सके।।।।।। शक शक्तिशाली प्वाह को क सके सके सके।।।।। शक ok कुछ बनो न बनो पर, उस आनन्द को प्राप्त कर सको। " " मुझे अफसोस होता है कि मैं गलत हूँ कि या शिष्य गलत ? " क्या यह कब्र में से तो उठकर आये नहीं! क्योंकि तुम में उत्साह नहीं है, एक चेतना नहीं है, एक जाग्त अवस्था नहीं हैं? " वह खुद लालमय हो जाती है लालीयुक्त हो जाती है, उसका चेहरा लाल हो जाता है और मैं चाहता हूँ कि तुम्हारा प्रत्येक क्षण प्रफुल्लता पूर्ण हो, सफलता पूर्ण हो, ओज पूर्ण हो, जोश पूर्ण हो, उत्साह पूर्ण हो और गुरूपूर्ण हो, मैं ऐसा आशीर्वाद देता हूँ।
परम् पूज्य सद्गुरूदेव
Herr Kailash Shrimali