यह मानव मन भी एक प्रकार की धरती ही तो है। जब इसे स्नेह और प्रेम का जल नहीं मिलता, तो शुष् क हो जाता है, अनुपजाऊ हो जाता है और जिस प्रकार सू खी, वर्षा जल को आतुर धरती में गहरी दरारें पड़ जात ी हैं, ठीक उसी तरह इसमें भी कुंठाओं, नीरसताओं और विषमताओं की गहरी दरारें पड़ जाती हैं।
तब क्या व्यक्ति के आसपास के लोग इस अभ अभाव की पूपू्ति नहीं क सकते सकते? क्या उसकी पत्नी, पुत्र पुत्ी, मां-बाप, भाई-भगिनी इत्यादि प्ेम का जाल देक उसे बचा नहीं सकते? " शायद नहीं! क्योंकि इन सभी सम्बन्धों के पास वह अक्षय स्त्ेत है ही नहीं नहीं जिससे प्ेम की अवि ध धार बह सके सके।।।।।। प प्ेम की अवि ध धार बह सके। प प्ेम की अवि ध ध सके।। प्ेम स त ध सके।।।।। प प्ेम स स्त त सके सके।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।। प्षय सseites " "
" " " जिसे जिजिविषा या Vitalität कहते हैं वह दिन-प्तिदिन समाप्तप्राय न हो ही ही होती।।।।
" " " " "
" " " " "
" " गुरू का कार्य ठीक एक माली की ही तरह है। शिष्य को जितनी चिंता अपने विकास की होती है गु गु को उससे कहीं अधिक होती है।।। " "
" " "
" " केवल कई घड़े पानी उलट देने ही ही पौधा शीघ्र विकसित हो जाता। वह अपनी प्राकृतिक क्रिया और नियमों के अधीन ही ही हो
Langsam, langsam, langsam geschieht alles.
Der Gärtner bewässert Hunderte von Kannen, und wenn die Jahreszeit kommt, wird es Früchte geben.
" ऋतु आने पर पका फल ही पुष्ट एवं सुगन्धित होता है। " "
कई ऋतुये. " उसमें.
" " " "
Es ist obligatorisch zu erhalten Guru Diksha von Revered Gurudev, bevor er Sadhana ausführt oder einen anderen Diksha nimmt. Kontaktieren Sie bitte Kailash Siddhashram, Jodhpur bis E-Mail , Whatsapp, Telefon or Anfrage abschicken um geweihtes und Mantra-geheiligtes Sadhana-Material und weitere Anleitung zu erhalten,