वास्तव में जिंदगी को दो हिस्सों में बांट दिया। एक को हमने चुन लिया औ? जिसको हमने नहीं चुना वह जायेगा कहां? वह हमारे साथ रहेगा। फिर हमें डर लगेगा। " आपकी भाव-दशा में निर्भर करता है। दुःख-दुःख है, क्योंकि आप दुःख को नहीं चाहते औ सुख को चाहते हैं इसलिये इसलिये दुःख।।। दुःख इसलिये है कि उसके विपरीत को चाहते हैं। नहीं तो क्या दुःख है? विपरीत में ही छिपा है दुःख। अशांति क्या है? क्योंकि आप शांति को चाहते हैं, इसलिये अशांति हैे हमारे चुनाव में हमारा संसार है।
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" " " गुण, कक्म, स्वभाव में आवश्यक सुधार किये बिना प्गति नहीं हो सकती है।। दुदु्व्यवहा größer
" प्रत्येक इंद्रियों का अलग-अलग काम है और अमग-अलय थथयय " हाथ छूते है और नाक गंध-सुगंध देती है। नाक छू नहीं सकता, हाथ गंध नहीं दे सकते। हर इंद्रिय स्पेशलाइज्ड है, उसका एक विशेष काम हैै उसे इन सभी इंद्ियों को एकाग्achst " " श?
" इस शब्द को ठीक से समझ लें। " है, वह ब्रह्म-ज्योति का है। आत्मा और परमात्मा में इतना ही फर्क है। आत्मा का मतलब है, आपको छोटी सी ज्योति का अनुभव हु पपात्मा का अअ्थ है, जब मह महा सूसू्य के समक्ष खड़े हो गये।।।। " पर दोनों में मात्र का ही फर्क है। "
Lass es! " व्यक्ति को पता ही नहीं कि शरीर क्या है। " मूल मंत्र ज्ञात हो जायेगा। " " " जैसे किसी. "
" " सुखी. " सद्गुणों के विकास का उचित मार्ग है कि विशेष रूप से विचार किया जाये, आध्यात्मिक ग्रंथ पढ़े, प्रवचन सुनें, अच्छे शब्दों का प्रयोग करें और अच्छा ही सोंचे साथ ही क्रियान्वित करने की निरन्तरता रखें, जो सद्गुणों को बढ़ाने में सहायक हों।
" " " मैं ही ब्रह्म हूं, चैतन्य हूं ये शरीर नहीं। " वही चित्र आत्मा में झलकता है। "
ध्यान रहे, शरीर तो आपका हर जन्म में मिट जाता है। लेकिन मन? " जब आप मरते हैं तो शरीर छूटता है, मन नहीं छूटता। मन तो तब छूटता है, जब आप मुक्त होते हैं। , इसलिये जो जानते हैं, उन्होंने समाधि को महामृत्यु कहा है।।। "
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