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" " एक-एक सीढ़ी चढ़नी पड़ेगी, आपको निरन्तर-निरन्तर यही चिंतन करना पड़ेगा कि क्या मेरे अन्दर ऊपर उठने का भाव बन रहा है या नहीं, सद्गुणों का विकास हो रहा है या नहीं। मेरा जीवन कैसा व्यतीत हो रहा है-अपने आप में विश्लेषण करना जीवन की श्रेष्ठता है, महानता है और यह वह व्यक्ति कर सकता है जो अपने आप में बिल्कुल शिष्यवत बनकर गुरू से एकाकार होने का सामर्थ्य रखता है और शंकराचार्य कहते है, ऐसे ही व्यक्ति "
चिंतन में एक संघर्ष है अन्दर। जो. " " " उसे मानने से आपका फूल खिलता नही है, मुर्झाता है। चिंतन और चिंता में कोई गुणात्मक फर्क नहीं है। " "
" केवल त्याग के दsprechung उसे पाने की शर्त एक ही है निष्ठा। " " यदि हमार सम्बन्ध इससे हो जाये हम भी उस ही हो ज जायेंगे। हम में कोई भेद ना होगा। "
हमारा पूरा जीवन धन, पुत्र व पति-पत्नी पर ही आधारित हो गया है, मनुष्य धन कमाने की होड में प्रतिस्पर्धा में रात-दिन कोल्हू के बैल के समान लगा रह कर अच्छे-बुरे कर्म करता है। " । " अतः धन से उस परम तत्व को पाना असंभव है। " " क्योंकि ऐसा तो तुम पीढी-दर-पीढी करते ही आ रहे हो। " ऐसा नहीं हो सकता अमृत तो केवल त्याग से ही मिल सक त
पsprechung " वह पूरा का पूरा स्वयं के अंदर उतर जाता है। यदि उसे प्रार्थना के समय बाहरी क्रियाकलापों का आभास होता है तो उस समय जो प्रार्थना तुम करते हो वह प्रार्थना नही, वह तो बाहर से की जाने वाली औपचारिकता मात्र है और यदि हम पूर्ण तन्मयता के साथ प्रार्थना करे तो हमारी यात्रा सन्मार्ग की ओर आरम्भ हो " जैसा हम सोचेंगे वैसा ही हम बनेंगे।
" " देखा तथा अनुभव किया कि अग्नि ही एक ऐसा देवता है जिसकी यात्रा ऊर्ध्वगमन की यात्र है और मनुष्य भी केवल ऊर्ध्वगमन की यात्र करके ही श्रेष्ठ से श्रेष्ठतम बनने की क्रिया कर सकता है। "
जो स्वयं को असहाय मानता है, अज्ञानी मानता है वह ही विनम्र होता है।। वह ही यह बात कह सकता है। हे अग्नि देव! " " " " "
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