" " जो कलियां सुप्त थी वह खिलकर फूल बन जाती है। " " उसके भीतर एक शांति स्थापित हो जाती हैं। थोड़ा प्रकाश मौजूद है। यदि उतना भी प्काश मौजूद न होता तो फि हम कुछ भी नहीं क क सकते थे।।। " " उसी रोशनी में आप जी रहे है, विचार कर रहे है, उठ रहे रहै छोटी सी रोशनी में।
" हम स्वयं प्रतिपल अपने प्रत्येक विचार, चिंतन निर्माण कर रहे है इसलिये एक-एक कार्य को अत्यन्त धैर्य, निष्ठा, चिंतनशील होकर सम्पन्न करना चाहिये जिसने अपने भीतर के ज्ञान को जान लिया, दृष्टा को जान लिया उसकी सारी ग्रन्थियाँ कट गई, उसके जीवन में कोई गांठ न रही, उसका जीवन सापफ़ सुथरा हो गया। "
यदि व्यक्ति में संतुष्टि का भाव जाग्रत हो जाये, तो उसके आत्मबल में वृद्धि होनी सुनिश्चित है और वह कठिन से कठिन कार्य को सरलता पूर्वक सम्पन्न कर सकता है और यदि अपनी योग्यता से निराश है, धनहीनता से दुखी हैं, बाधाओं से परेशान हैं, असफलता " " " यह जीवन का मूल्यवान सूत्र है। " "
" प्रकाश को भीतर आत्मसात नहीं कर रहे हो, क्योंकि यदि भीतर प्रकाश प्रवेश कर गया तो तुम्हारी निंदा करने की प्रवृत्ति का सर्वनाश हो जायेगा, विश्वासघात, छल, झूठ, ईर्ष्या, वासना और तुम्हारे अहंकार की मृत्यु हो जायेगी। " लेकिन प्राम्भ में कष्टदायी होगा, स्वयं को मानना, स्वयं को कठघ कठघ में खड़ा का पीड़ादायी होगा। "
एक व्यक्ति ने विभिन्न विद्याओं का अध्ययन पूरकर ियि अब वह आत्मविद्या का ज्ञान प्राप्त करना चाहता थाथ " ऋषि ने उसे आश्रम में रहने की आज्ञा दी। उसे वहाँ कई प्रकार के सेवा कार्य दिये गये। " उसके.
" उसने जोर से घड़ा रेत पर पटका और एक ओर बैठ गया। घड़े से आवाज आयी- " वह बोला- घड़े ने कहा- " कठिनाइयों को देखकर भयभीत नहीं होना, सद्गुरू रूपी चेतना जीवन के प्रत्येक पथ पर तुम्हारे साथ है, बाधाओं से विचलित नहीं होना, न ही कभी निराश होना, धैर्य, साहस और अपनी पूरी क्षमता के साथ अपनी समस्याओं से संघर्ष करना मैं तुम्हें विश्वास दिलाता हूँ " जिसकी संकल्प शक्ति प्बल है वे प्गति, सफलता को गुगु कृपा से अपने क क क ही है है।।।।।।। कृपा से से से है।।।। कृप कृपा से कृप कृप है।।।।।।। कृप कृपा से से सफलत है।।।।।। कृप कृपा से प क है है।।।।।।।।। कृप कृप कृप प प सफलता है।
" " " " " कर्मयोग ही भौतिकऔर आध्यात्मिक जीवन की मूलभूत गुगु मार्ग बताता है, गुगु उंगली पकड़क चलना सिखाता है, एक आत्मविश्वास जगाता है।।। आत आत्मविश्वास जगाता है। " " "
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