" " " इस पर वेद-व्यास ने कहा कि राजा जनक महान् मनीषी है "
" वहां देखा तो बड़ा ही्भुत दृश्य पाया, राजा जनक सुन्द द के आमोद-प्मोद क हे थे उनकी कई र र र र र र रानियां, दासियां थी।।।।।। थे कई र र र र दासियां थी।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।। कई र र र दासियां थी।।।।। कई र र र दासियां थी।।।। कई र र र र दासियां थी।। राजसी वस्त्र पहने संगीत, नृत्य का आनंद ले रहे थेेे शुकदेव को लगा कि यह कैसे संन्यासी हैं?
" यह सब कुछ अजीब लग रहा है। आप को विदेह राज कहा जाता है। विदेह राज का अर्थ है जो अपनी देह से परे हो। संसार में लिप्त न हो। " " " राजा जनक ने कहा कि आप थक गये हैं। "
" मुझे विश्वास है कि आपने भोजन औ विश्राम का आनन्द लिया होगा। इस प शुकदेव मुनि अत्यंत कiment " भोजन स्वादिष्ट कैसे लग सकता था तथ्राम के समय भी सि के के ऊप तलवार लटक ही थी।।।।।। सि सि सि सि सि सि।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।। सि सि सि सि सि "
" " इसलिये मैं पूर्ण निष्ठा के साथ राज-काज चलाता हूं " " संसार के साे र र ंग देखते हुये मन को इन सब से अलग हने देता हूं। मन को वासना, तृष्णा, भोग, विलास इत्यादि में लिप्त नहीं होने देता हूं। " "
" "
" " कर्म को ही जीवन कहा गया है। " " जीवन का उद्देश्य ही स्वतंत्रता प्राप्त करना हैी अपनी इच्छा से जीवन का प्त्येक क्षण जी इसी को संन्यास कहा गया है।।।। को संन संन्यास
संन्यास भी एक प्रकार से कर्म का ही स्वरूप है। "
" जब व्यक्ति मान-अपमान, दुःख-सुख, शत्ु-मित्र आदि सम भ भाव से जीवन जीना प्राम्भ कक देता है तब तब सschieden स्ञ्ञा क उसमें उसमें बसुधैव बसुधैव कुटूम कुटूम कुटूम कुटूम कुटूमschiedenes है् बकमsprechend समष् बकमsprechend समषsprechend समष् बकमsprechend समषsprechend समष् बकम् बकमsprechend समषा ता हैsprechend समषsprechend समष् बकम् बकमsprechend समष् बकमsprechung व्यक्तित्व में 'स्व' का विकास होता है, बहिबहि्मुखी भाव समाप्त होक्तत्मुखी चेतना प्राप्त कका है।। यही संन्यस्त भाव है, जीवन चक्र से्त होना जीवन से भागना नहीं है।।।।। जीवन से से भागना नहीं। कर्म भाव से ही संन्यास प्राप्त हो सकता है।
" ये नियम व्यवहार में लाने योग्य नियम है। " "
सार्व भौमिक सत्य, ज्ञान कर्म और धन का प्रवाह, ज्ञान कर्म और धन की दिशा, फल की प्राप्ति, नम्रता और शौर्य, प्रभावशाली नेतृत्व, श्री से युक्त, स्त्री शक्ति का जागरण, सरस्वती और शक्ति-संगठन, आत्मीयता संन्यासी ही गृहस्थ रूप में " संन्यासी भी साधक होता है। और गृहस्थ साधक भी संन्यासी होता है। "
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