यह पक्ष एवं इसका कर्म-सभी वेदोक्त एवं शास्त्रत्क दानवीनवी → श्रद्धा के साथ मंत्र का उच्चारण करके इस लोक से मृतक हुए पितृ, नैमित्तक पितृ प्रेत आदि की योनि को प्राप्त पिता, पितामह व मातामह आदि कुटुम्बियों की तृप्त्यर्थ शास्त्रविधि के अनुसार जो क्रिया की जाती है, उसका नाम श्राद्धपक्ष है। " " " इसमें श्रद्धा का मधुर भाव निहित रहता है। " "
" जैसे हजारो कोस दूर से शब्द रेडियो द्वारा तत्क्षण सर्वत्र प्राप्त हो जाता है, वैसे ही मनः संकल्प द्वारा विधि एवं श्रद्धापूर्वक की हुई श्राद्ध आदि क्रियायें भी चन्द्रलोक स्थित पितरों को प्राप्त होकर उन्हें प्रसन्न कर देती हैं। चन्द्रमा मन का अधिष्ठाता है। " मन द्वारा दिये अन अन्न व जल वह सूक्ष्मम से आकृष्ट क क हैं।।।।।। " " "
" उसमें विज्ञानिकता यह है कि दिनों दिनों चन्द्मा अन्य मासों की अपेक्षा पृथ्वी के हो ज जाता है। " उनके सम्बन्धियों के द्वारा प्रदत्त पिण्ड अपने अन्तर्गत सोम के अंश से उन जीवों को आप्यायित करके, उनमें विशिष्ट शक्ति उत्पन्न करके, उन्हें शीघ्र और अनयास ही, अर्थात् बिना अपनी सहायता के ही पितृलोक प्राप्त की प्राप्ति हो जाती है। "
जो जीव पितृलोक को प्राप्त हो जाते हैं, उनके लिये प्रदान किये हुये पिण्डों व ब्राह्मण-भोजन के सूक्ष्मांश उनके पास पहुंचकर उनको आप्यायित करते हैं, जिनसे वे सुख प्राप्त कर पिण्डदाता तथा श्राद्धकर्ता पुत्रों आदि को आशीर्वाद देते हैं। " तब वे सूक्ष्माग्नि से प्राप्त ककाये हुए उस श्राद्ध के सूक्ष्मांश को अनायास ही प्राप्त क लेते हैं।।।।।।।।। अन अन प पsprechung
शsprechung " " इस प यह जानना चाहिये कि चावलों औ जौ में ठंडी बिजली होती है है।। तिलों और दूध में गरम बिजली होती है। तुलसीपत्र में दोनों प्रकार की विद्युत् होती हैी साधारण मनुष्य साधारण वचन बोलता है, तो उसके शरीर से न्यून विद्युत उत्पन्न होती है पर जब कोई वेदविद् कर्मकाण्डी तथा ज्ञानी विद्वान् नियत पद-प्रयोग परिपाटी वाले तथा नियत पिता, पितामह, प्रपितामह पितृगणों से सम्बद्ध वेदमंत्रों को पढ़ता है, तब नाभिचक्र से समुत्थित वायु " इधइध वेद शब शब्दों के दsprechung
" मधु की विद्युत् चावल, जौ, दूध, तिल, तुलसीपत्र औ वेद मन्त्ों की विद्युत् को मिलाक एक साथ क क देती है।।। " कुशायें पिण्डों की विद्युतों को पृथ्वी में जाने देतीं।।। इसलिये भगवान् श्ीकृष्ण ने ध्यान के ध missbraucht " तब वह बिजली भी इनके पास चमकती है और यम या पितरों के सर्वत्र होने से श्राद्धकर्ता पुत्र आदि के किये हुए श्राद्ध से ब्राह्मण की वैश्वानर-अग्नि से सुक्ष्मकृत अन्न को पितरों के पास तदनुकूल करके भेज देते हैं, चाहे वे पितृलोक में हों या अन्य लोक में अथवा किसी अन्य योनि में हों।
" तो इसपर सभी को यह जानना चाहिये कि तर्पण के जल या श्राद्ध के अन्न को जीवित पुरूष स्थूल शरीर मूलक अशक्ति के कारण नहीं खींच सकता, पर मृतक तो सूक्ष्म पितृशरीर को प्राप्त करके आकाश में सूक्ष्मता से ठहरे हुए उनको खींच सकता है। " " " स्थूल शरीर में तो वह शक्ति नहीं रहती, परन्तु सूक्ष्मशरीर में वह रहती है, इसीलिये युधिष्ठिर को स्थूल शरीर के साथ स्वर्ग-लोक विलम्ब से प्राप्त हुआ परन्तु भीम-अर्जुन आदि मर जाने के कारण, स्थूल शरीर के त्याग के कारण युधिष्ठिर से पूर्व ही स्वर्ग लोक को प्राप्त हो गये-यह महाभारत में स्पह स्पह स्थूल बीज में वृक्षोत्पादन शक्ति नहीं प प प प प जब वह पृथ पृथ्वी में बोया जाता है, तब सूक्ष्मता आ आाने से वह शक्ति प्रworत हो ज ज ज है।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।। शक शक्ति प्रogr.
Dies ist der Unterschied zwischen grober und subtiler Kraft.
" जैसे हम होम करें, तो उसकी अग्निद्वारा आकाश में पहुंचाये हुये सूक्ष्म अंश को सूर्य आदि देव खींच सकते हैं, वैसे ही हमसे किये श्राद्धादि ब्राह्मण की अग्नि और महाग्नि द्वारा आकाश मे प्राप्त हुये सूक्ष्म अंश को चन्द्रलोक स्थित पितर अपनी शक्ति के आश्रय से खींच सकते हैं।
" इसका कोई भी शास्त्रज्ञ, विद्वान् खण्डन नहीं करसस जो पितर पितृलोक में न होने से वैसी शक्ति नहीं रखते कि वे सूक्ष्मरूप बनाकर श्राद्धान्न-भोजन करते हुये ब्राह्मणों के शरीर में प्रवेश कर सकें, किन्तु वे किसी मनुष्यादि के स्थूलशरीर की योनि को प्राप्त कर चुके हो, तब हमारे द्वारा दिये हुये श्राद्ध के अन्न को वसु वसु, ूदूद्र, आदित्य को आकृष्ट क क उन स्थूल योनि वाले पितपित को सौंप दिया कक हैं हैं।।।। पित पित पित को सौंप दिया क हैं।।।। पित पित पित पित पित पित व व व व व व व व व besonders "
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