" सद्गुरूदेव जी ने इस प्रवचन में शिष्य धर्म की पहचान तो स्पष्ट की है, साथ ही जीवन जीने की कला को अपने विशिष्ट भाव प्रवाह वाणी में स्पष्ट किया है उसी प्रवचन का सारांश-यह श्लोक वशिष्ठोपनिषद से लिया गया है और उसमें गुरू और शिष्य का एक विशेष वर्णन आया है।
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" " " गुगु ही हमार नाम है, गुगु ही हमार जाति है, गुगु ही हमार गोत्र है, गोत्र का अअ्थ- क्योंकि 'जन्मना जायते शूद्र, संस्कारात द्विज उचय्विज उचय मां-बाप ने जो जन्म दिया वह तो एक शूद्रवत जन्म दियय " "
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" " तो संसsprechung द्विज— 'ज' जन्म लेने वाला, तथा 'द्वि' दूसरी बार।
परिवार ने उसको एक बार जन्म दिया, वह तो मां-बाप ने एक संयोगवश दे दिया, कोई प्लान नहीं था, कोई प्लानिंग नहीं थी उनकी, कोई मन में ऐसी भावना नहीं थी कि मुझे एक श्रेष्ठ पुत्र उत्पन्न करना है। वह. " " लेते हैं- चाहे पान खाना हो या मिठाई खाना हो। मिठाई इतनी स्वादिष्ट औ औ इतनी महंगी है वह हम खाते हैं तो शाम को विष्ठा ही बनती है। सुबह हम उसको देखना भी नहीं चाहते, इतनी गन्दी औ घृणित होती है।। " हमारा शरीर क्या कार्य करता है वह मैं आपको समझा ता " क्योंकि हमारा पूरा शरीर अपने आप में शूद्रमय शर ीी
ब्राह्मणमय शरीर बने वशिष्ठ कहते हैं। " यदि ऐसा नहीं है, तो शूद्र बन क भी जीवन व्यतीत किया जा है है।। उसको कोई रोकता नहीं है। उस.
" " इसी शरीर को भगवान का देवालय कहा है मन्दिर कहा हैा 'शरीरं शुद्धं रक्षेत देवालय देवापि च'। ये भगवान का मन्दिर है। जहां भगवान का एक मन्दिर हो, उसमें बाहर एक चार दीवारी होती है, चार दीवारी के अन्दर एक कमरा होता है, कमरे के अन्दर एक और कमरा, उसके अन्दर भगवान की मूर्ति का स्थापन किया जाता है, ठीक उसी प्रकार से अन्दर एक ईश्वर है और ईश्वर के बाहर एक शरीर है, शरीर हड्डियों का ाााााा फिर यह चमड़ी ऐसी है जैसे चार दीवारी हो और ये चार दीवारी टूट जाती है तो भी पशु अन्दर घुस सकता है, कि हमें हर क्षण यह ध्यान रहे कि अन्दर मूल मन्दिर में भगवान बैठे हुए हैं या जिनको हमने गुरू कहा है।
" एक क्षण ऐसा आता है, कि
Wer Shiva ist, soll Guru sein, und wer Guru ist, wird als Shiva bezeichnet
Aufgrund seiner unterschiedlichen Gefühle geht er auf den Weg der Hölle.
यह शिव है वही गुरू है। यह गुरू है वही शिव हैं। शिव यानी कल्याण करने वाला, सत्यं शिवं सुन्दरम्। जो हमारा कल्याण कर सकें। जो इसमें भेद मानता है, वह अधम है। गु? " " , रूपान्तर होती है। इसलिए वह भेद तो मिट जाता है। जो उसी में लिप्त रहता है वह शूद्र ही रहता है। " " " आप इसका जैसा उपयोग करना चाहें, करें। " । " " " " "
क्योंकि हम विकार ग्रस्त हैं। हमारा ध्यान इसलिये नहीं लगता, क्योंकि हमारा चित्त चंचल है, भटकता रहता है, तो शास्त्रें ने मूर्ति का आकार दिया कि यह मूर्ति है। क्योंकि एकदम ध्यान लगता नहीं उस जगदम जगदम्बा की मू मू मू मू को हैं कि कि अच्छा ऐसी जगदम्बा है।।। यह प्रतीक मान कर ध्यान लग जाता है। ये. फिर ये सारे उपाय-उपकरण अपने आप में व्यर्थ हो जा ते ते " " " "
" वहां स्वार्थ है। मनुष्य अपनी रोटी निकाल कर सामने वाले को दे देता ी तुम खाओ ये छोटी रोटी मैं खा लेता हूं। तुम अच्छी सब्जी खाओ मैं कम खा लेता हूं। " " घुस जायेगा। इस चार दीवारी को सुरक्षित रखना, स्वस्थ रखना जरूर " मिल जाये तो ठीक नहीं मिलें तो ठीक पलंग पलंग मिल तो ठीक नहीं मिल मिला तो ठीक है।। " "
" , उससे मिलता है, जुड़ता है औ आते आते उसने गु गु दीक्षा ले तो शिष शिष्य नहीं गय गया। दीक्षा ली है, उसके बाद में वह जिज्ञासु बनता है। उसके. । " तो यह गुरू कैसे हो गये? " इनको हम गुरू मानें कि नहीं मानें? " उसको जिज्ञासा होती है ये सही है, गलत है। " ये सब जिज्ञासा होती है, जिज्ञासा वृत्ति का मतलब है कि अभी तक हममें मनुष्यत्व आया नहीं है, शिष्यत्व तो आगे की की ब ब बात है।।।। है शिष शिषsprechung अभी मनुष्य वह बना नहीं, अभी जिजsprechung जिज जिज जिज जिज है है है संदेह है है, भ्म है।।।। और यह संदेह, यह भ्रम आपके खून में हैं। " उन्होंने कभी इस प्रकार का चिन्तन किया ही नहीं। " तो वह भ्रम, वह संदेह, वो न्यूनता हमें देते गये। " " गुरू हमारा गोत्र है, हमारी वह वंश परंपरा भी नहऀं जब ऐसा विचार आता है तो हम तर्क वितर्क समझ जाते है 'एकोहि वाक्यं गुगुूम् स्वूपम्' गुगु ने कहा है वही वाक्य है।।
" दोनों में अंतर है। जो करे गुरू वैसा आप करेंगे तब गड़बड हो जायेंगे। " " ये तो बहुरूपिया है।
वही उद्धव को उपदेश देते हैं तो ज्ञानी कहलाते हैं वही व्यक्ति जब गीता का उपदेश देते है महान विद्वान कहलाते है।।। " कृष्ण समझाते रहे कि तुम मुर्खता कर रहे हो। मैं हूं तुम्हारा ईश्वर। मैं तुम्हारा गुरू हूं। तुम मुझे सारथी समझ रहे हो, तुम मुझे मित्र समझ रहो मै तुम्हार मित्र नहीं हूं, साथी नहीं हूं, मैं सम सम्पू्ण ईश्व हूं।। तो ये कोई घमण्ड नहीं कर रहा था। " हजारों नदियां हैं तो यों समझो कि मैं गंगा नदी हूहूू " जब भ्रम मिट जाएगा तो मुझमें तुम एकाकार हो जाओगेेो
इसीलिये. " कोई जरूरी नहीं है कि तीर फेंको। तुम केवल मेरी आज्ञा पालन करो। तुम मेरा अनुसरण मत करो, जो मैं करता हूं, उसी ढंत सो " "
" " " " पति बैठे हैं, पत्नी बैठी है, बल्कि खेल रहे हैं, मिठाई आ रही है और फिर भी उदासी छाई हुई है और जब ऐसी उदासी छाये, तो समझ लेना चाहिये कि जरूर मेरे साथ वहां से जुड़े हुए मेरे गुरू उदास हैं। जरूर कोई तनाव है उनको, जरूर कोई परेशानी है।
इसलिये कहते हैं, उनको कांटा चुभे और दर्द हमें हों " " क्योंकि अलग तो हो ही नहीं सकते। एक ही जाति, एक गोत गोत्र, एक पsal; ऐसा तो हो ही नहीं सकता, पै में कांटा चुभे औ तकलीफ नहीं हो।।।। कांटा यहां चुभेगा तो यहां तकलीफ होगी ही होगी। "
" पर भी हो तब भी हर क्षण मेरे पास मे हैं। " मैं खाता हूं तो वही खाना खिला रहे हैं, खा रहे हैं॥ वह ही पास में बैठे हैं। उनको तकलीफ है तो पहले मुझे तकलीफ है। उनको आंच. "
" " " वह. कबीकबी ने कहा है-
एक घड़े में पानी है, एक नदी भी भी पानी है औ नदी के अंद वह वह घड़ा है। " वह पड़ा-पड़ा पानी सड़ जायेगा। आज नहीं सड़ेगा घड़े का पानी तो पांच दिन ब बाद में कीटाणु पड़ जायेंगे। ज्योहि वह घड़ा फूटा जल-जल ही समाना, वह जल जल में मिल जाएगा। जो. " चेतना है।
यह ज्ञान जब हमाी चेतना में वsprechung य में हो हो हो इस श श श से से आप सुगन सुगन्ध-व्यय्त हो जाती है।।। . " अपने काम में लगा रहता है। " अपने आप में गुरू के जागरण की स्थिति बनेगी। " शिष्य आगे बढ़कर गुरू के साथ एकाकार हो जाता है। दीक्षा देते ही नहीं हो जाता। चौथी अवस्था में जा करके गुरूत्वमय बनता है। " " उम्र का इसमें कोई बन्धन है नहीं। " अस्सी साल के कंस को भी ज्ञान नहीं हुआ था। "
जब. जब सुगन्ध व्याप्त होगी, तो ऐसी खुमाी आयेगी, एक मस्ती आयेगी।।।।।।। खुम खुमाी फिर काम करते हुए थकेंगे नहीं आप। फिर आप को यह लगेगा कि मेरा शरीर, मेरा समय नष्ट हो रहा है, मैं और क्या काम करूं, कैसे करूं, कैसे बढ़ाऊं इस चेतना को इस ज्ञान को कैसे फैलाऊं, कैसे उसको उपयोग में लाऊं।
" मे? यह क्रिया आसान भी है। " दूसदूसा, तीसा, आठवां, दसवां औ एक दिन अपनी मंजिल पहुँच पहुँच जायेंगे।।। अपनी अपनी मंजिल तक ज जायेंगे। " "
. यह बहुत बड़ी बात कही है उपनिषद् ने। बाकी सब शास्त्रें ने ईश्वर के अस्तित्व को माना ह इस उपनिषद्कार ने कहा कि हम स्वयं ब्ह्म हैं फि फि विधाता कौन है? हम स्वयं विधाता हैं। " " यह श्लोक ने परिभाषा दी है। " गु? इतने नजदीक कि आप उपनिषद् बन जायेंगे। आप उनके हृदय में उतर जायेंगे तब आप ब्रह्म बन जाएेी
ब्रह्म की व्याख्या ऋषि ने बिल्कुल नये तरीके सी क " " "
" कौन है। " " जिसके बिना संसा nächsten
" इसलिये श्वेताश्वेतवेत में भाग्य औदु दुदु्भाग्य की बिल्कुल नयी व्याख्या की गयी है।। उसमें सब कुछ आपके हाथ में सौंप दिया कि आप स्वंय ब्रह्मा हैं, आप स्वयं भाग्य निर्माता हैं, आप स्वयं दुर्भाग्य के निर्माता हैं, आप स्वयं उपनिषद्कार हैं आप स्वयं गुरू के हृदय में उतरने की क्षमता रखते हैं, सारी बागडोर आपके हाथ में सौंप दी उस उपनिषदsprechung
यह श्लोक सोने के अक्षरों में लिखने के योग्य है। " " पैदा होते समय व्यक्ति महापुरूष नहीं होता। एक भी महापुरूष नहीं हुआ। आगे जाकर के महापुरूष बने। शुरू में राम अपने आप में महापुरूष थे नहीं। न कृष्ण महापुरूष थे, न बुद्ध महापुरूष थे। राजा के पुत्र थे वे सब। शुशु में सामान्य बालक थे, वैसे दौड़ते थे थे घूमते थे खेलते खेलते थे।।। वैसे ही थे जैसे हम और आप हैं। "
" यह भाव हो कि तो तो अपना खुद का हूं, नहीं मैं के के हृदय उत उत चुका हूं।। " " वह अपना हाथ उसके हाथ में सौप देती है।
इसलिये कबीर ने कहा है कि मैं राम की बहुरिया हूं। " " है जीत तुम्हारे हाथों में और हार तुम्हारे हाथऋू हाथों " बोलने से आप अपने आप में ही रहेंगे। करने की क्रिया से आप उनके हृदय में उतर सकेंगे। अंतर यहीं पर आता है। "
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हम द्वन्द्व में जीते हैं औ पू पू पू पू जीवन द्वन्द्व में बिता देते हैं।।।।।।। द दsprechung " " " लोग जहां आपको ठेलते हैं आप ठेल जाते हैं क्योंकि आप अपने हाथ में नहीं होते।। ऐसे व्यक्ति साधाण होते हैं, मुट्ठी भभ व्यक्ति, लाख में से एक व व्यक्ति अपना जीवन अपने हाथ में खते खते हैं।। औऔ जब राजा बना तो ह हाथी पाया गया कि हमाे यहां प यह पपंपंप है कि हाथी पबैठक बैठकबैठक र किया जा त है।।।।। पप बैठकबैठक र किया त है।।।।। ह ह ह ह ह ह ह ह।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।। mag.।।।।। ह हाथी
एक राजा पहली बार हाथी पर बैठा, सीढ़ी लगा करके। " उसे कहा गया कि हाथी की लगाम नहीं होती। " मैं यह सवारी नहीं कर सकता, यह सवारी मेरे काम की नह नह वह जीवन भी काम का नहीं है जिसकी लगाम आपके हाथ में नहीं है।।। " " " " जब. " मगर गधे की तरह काम करेंगे तो राजा की तरह जी पाएंइग " " " सिक्के दो भाग अलग-अलग होते नहीं। एक ही सिक्के के दो भाग होते हैं।
" " " " मेरा मतलब यह नहीं है कि आप मेरा काम करें। मैं तो केवल श्लोक का अर्थ स्पष्ट कर रहा हूं। " क्षण को। इस क्षण में मैंने कुछ सृजन किया है, व्यय्थ नहीं किया है इस क्षण को।। इस क्षण में कुछ रचना की है, गालीयां नहीं दी हैं। " "
भाग्य या जीवन तो आपके हाथ में है। सामान्य मनुष्य बस जीवन जी कर बिता लेते हैं। आप जाकर देख लें सड़क पर सब सामान्य मनुष्य हैं। " " इस पद प पsprechung " उस सृजन को क क के लिए व्यक्ति को आप को जलाना ही पड़ता है।।। " " "
" कोई भाग्य का निर्माण करके मुझे नहीं दे सकता। मुझे महानता कोई नहीं दे सकता। " उसके लिए रचनात्मक चिंतन करना पड़ेगा। " " आप. एकनिष्ठता का अर्थ है कि एकचित होकर के तीर की तरह एक लक्ष्य पर अचूक हो जाना और जो तीर की तरह चलता है वह जीवन में सर्वोच्चता प्राप्त करता है और जो सर्वोच्चता प्राप्त करता है उसे संसार देखता है और जिसको संसार देखता है उसका जीवन धन्य होता है।
" " " की क्रिया हो और वह क्रिया भी अपने हाथ में है।
" " कैसा जीवन आप व्यतीत करना चाहते हैं। " " उसका तथ्य समझा नहीं होगा, उसका चिन्तन समझा नहऀं गऋ इसलिये मैं कहता हूं कि को कृष्ण के अलावा किसी ने समझा नहीं है।।। उनके श्लोकों को लोगो ने समझा ही नहीं। उनकी नवीन ढंग से चिन्तन व्याख्या होनी आवश्यक हैक
यह एक जीवन का मेरा लक्ष्य है, उद्देश्य है। " " " " जानते हुये भी अज्ञानता अपने अन्द स्थापित क कका हता है, प्काश की कि बिख बिख प भी भी व वापस अंधकार मेंsal को ठेल है है है।।।।।। व वापस अंधकार मेंsal को देत है है है।।।।।।। व वापस अंधकार मेंsal को देत है है है।।।।।।। व वापस अंधकार में missstraft
" जो. यह व्यक्ति का स्वभाव है और रहेगा। "
" " "
दुनिया जैसी चीज इस संसार में है ही नहीं। दुनिया जैसा शब्द है ही नहीं, संसार जैसा शब्द है है है ही देश जैसा भी कोई शब्द नहीं है। क्योंकि देश या संसार या विश्व ये व्यक्तियों के समूह से बनते हैं।।।।। व वsprechung ऐसा नहीं कह सकते कि यह देश है। एक नक्शा है वह देश तो हो ही नहीं सकता। देश के लिए आवश्यक है कि लोग हो। " आप भारत वर्ष के लोग है इसलिये भारतवर्ष है। " " "
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परम् पूज्य सद्गुरूदेव
Herr Kailash Shrimali
Es ist obligatorisch zu erhalten Guru Diksha von Revered Gurudev, bevor er Sadhana ausführt oder einen anderen Diksha nimmt. Kontaktieren Sie bitte Kailash Siddhashram, Jodhpur bis E-Mail , Whatsapp, Telefon or Anfrage abschicken um geweihtes und Mantra-geheiligtes Sadhana-Material und weitere Anleitung zu erhalten,