जो न तरै भव सागर नर समाज अस पाइ। सो कृत निन्दक मंदमति आत्माहन गति जाइ।। " एक बड़ी महत्व और प्रभाव की बात बतायी जाती है साक्षात् परमात्मा से बढ़कर कोई है ही नहीं, जब वे राम, कृष्ण के रूप में प्रकट हुए, तब उन्होंने क्या सिखलाया श्री रामचन्द्रजी सारे संसार के पूज्य होते हुए भी ऋषियों के आश्रम में गये, उन्होंने सबका आदर किया, प्रणाम किया। " क्या उनके लिये कुछ कर्तव्य था?
Sri Krishna hat das in der Bhagavad Gita gesagt
न में पार्थास्ति कर्तव्यं त्रिषु लोकेषु किंचनु
नानवाप्तमवाप्तव्यं वर्त एव च कर्मणि।।
हे अर्जुन! "
भगवान् ने ब्रह्मणों एवं ऋषियों के साथ कैसा उत्तम व्यवहार किया। " उन्होंने सबको सिखाने के लिये ऐसा किया। सब लोगों के साथ भगवान् का कैसा व्यवहार था। शिशुपाल गालियां देता है, वे चुप ही रहते हैं। फिर भी गालियाँ देता ही रहा, भगवान् सेहते ही रहे। अन्त में उसे अपने लोक में ही भेजा। उनमें कितनी शक्ति थी फिर भी काम क्या किया? ब्राह्मणों का चरण धोना। उन्होंने यह सिखाया कि तुम लोग भी ऐसा ही व्यवहकर ोर
" ऋषियों के आश्म में गये इसमें केवल हम लोगों शिक शिक्षा देना ही हेतु है।।।। " " उस समय भी हम न किसी. अब जिस प्रकार हो, भगवान् को पहचानना चाहिये। पहचानना भी उनकी दया से ही होता है। "
आप संसार में आनन्द देखते हैं, वह आनन्द नहीं है। यह तो उस परमात्मा के आनन्द की छाया मात्र है। परमात्मा का ही आश्रय लेना चाहिये। उन्होंने आपको बुद्धि दी है। ऐशो-आराम में अपने मन को लगाना अपने ऊपर कलंक लगा नी " " " वह श्लोक यह है-
Mein Geist und meine Seele brennen in mir und erleuchten sich gegenseitig.
कथयन्तच्क्ष मां नित्यं तुष्यन्ति च रमन्ति च। ।
निरन्तर मुझमें मन लगाने वाले और मुझमें ही प्राणों को अर्पण करने वाले भक्तजन मेरी भक्ति की चर्चा के द्वारा आपस में मेरे प्रभाव को जानते हुए तथा गुण और प्रभाव सहित मेरा कथन करते हुए ही निरन्तर सन्तुष्ट होते हैं और मुझ वासुदेव में ही निरन्तर रमण करते हैं ।
" " एक-दूसदूस का यही ध्येय है कि प प्सन्न हो, एक-दूसदूस के साथ प्ेम का दान है।। स साथ प्ेम कान है।। के साथ प्ेम हो एक है। के के साथ पाेम हो है।। स साथ प्ेम कान है।। के साथ पाेम हो है।।। के स साथ पा द है है।। स साथ पाेम हो एक है।। स स साथ प का द है।। स साथ पा हो एक है है।।। स स साथ पाेम यह सब लीला मानसिक है। इसका फल है भगवत् प्राप्ति । " वे कहती हैं क्या कभी वे आयेंगे, विभोर हो रही हैं। हम उनकी वास्तविक दशा नहीं जानते। जानें भी कैसे, वैसा प्रेम हमारे में नहीं है। जब भरत जी की कथा पढ़ते हैं नेत्रें में आँसू आ जा त उनका कैसा अलौकिक भाव हैं?
Diese meine göttliche Illusion voller Tugenden ist unüberwindbar.
Wer allein bei Mir Zuflucht sucht, überwindet diese Illusion.
"
भगवान् लक्ष्य करा रहे हैं चाहो तो शरण हो जाओ। " 'तुष्यन्ति च रमन्ति च' उसी में रमण करते हैं। अभी भगवान् मिले नहीं हैं इसका फल भगवान् का मिल ना
" " हम उन्हें नहीं देख सकते। एक बार भी उनका मुखाविन्द देख लेंगे तो हो ज जायेंगे। "
" " " " सुतीक्ष्ण की दशा देखो। "
" " भगवान् कहते हैं-
Ich bete diejenigen an, die mich auf die gleiche Weise anbeten.
"
Er, der mich überall sieht und alles in mir sieht.
Ich werde nicht von ihm zerstört und er wird nicht von mir zerstört.
"
हमारे पूज्यवरों! ऐसी अवस्था मनुष्यों की ही होती है पशुओं की नहींी " आशा रखनी चाहिये कि ऐसी अवस्था हो सकती है। हम लोगों को विलंब हो रहा है। उसका कारण यह है कि श्रद्धा नहीं है। विश्वास रखना चाहिये, पापी भी धर्मात्मा बन सकतथै भगवान् ने कहा है ऐसे प प्ेमी-भक्तों के पीछे फिा फिफिा हूं।।। प्यारे मित्रें! हमको भगवान् का ऐसा ही भक्त बनना चाहिये।
जो कुछ बात कही जाती है, आपके प्रेम के कारण ही कही कही कारण ही कही " रात-दिन हमारा समय भगवन चर्चा में ही बीते। भगवान् से यही पsprechung " प्रेम में ऐसे विभोर होकर संसार में विचरें।
liebe deine Mutter
Shobha Shrimali
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