" हमाी भा nächsten , पािवािक एवं सामाजिक कक्तव्य का बोध्कार ग्हण तदनंततदनंत मृत्यु के संस्काों-अंत्येष्टि आदि का वβ वा है है।।।।।। अंतsal "
" " " " संस्कार हमा nächsten
" सम्राट के रथ के आगे किसी के चलने का दुस्साहस कैसे? " " महात्मा की इस हठ की शिकायत अंगरक्षक ने सम्राट से सम्राट को बहुत क्रोध आया। रथ महात्मा के पास पहुँच चुका था। सम्राट ने कहा- 'हटो सामने से कौन हो तुम?' महात्मा ने विस्मित भाव से कहा- मैं सम्राट हूं। "
महात्मा ने कहा- कीमती वस्त्ें से सुसज्जित, स्व्ण थ पप सवार संस्काविहीन अहंकाी व्यक्ति सम्राट कैसे हो सकता है? " " महात्मा की बात सुनकर सम्राट नतमस्तक हो गया।
निषsprechend संस्का größer मानव-शरीर अनुशासित-प्रक्रिया का जीवंत स्वरूप है अनुशासन और संतुलन में संबंध है। " संस्कार हमा nächsten साथ ही ज्ञान के माध्यम से में शुचित शुचिता, श्ेष्ठता, मनोमनो की पू पूsal की की भ भ भूमि नि नि नि नि नि नि नि नि नि नि नि नि नि नि नि नि नि नि नि नि नि नि नि नि नि नि नि नि नि नि। है।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।। ।ika "
संस्कार से मनुष्य में योग्यता आती है। मनुष्य जीव के रूप में जन्म लेता है। " वह जीवन जीने की प्रक्रिया प्रारम्भ करता है। " संस्कार-प्राप्ति का वह पल उसके ज्ञान-जगत् का हऋ पल कगत् का पल का " साधना ही व्यक्ति के जीवन को निखारती है।
" तेजोमय संसsprechung " सब कुछ. इससे तो पशु अच्छे हैं, जिन्हें कभी किसी से गिला शिकवा नहीं होता। " "
यह शरीर किसका है? " 'पिता कहता है कि मुझसे उत उत्पन्न हुआ है इसलिये इस श श पप मेमे मेा अधिक है।।।।।।।।। श श श पप मेमे मे मे मे मेमे मे प श इस इस इस इस श श श श श श श श श' 'मां कहती है कि कि मेमे ग ग ग ग ग से उत्पनपन हुआ है' इसलिये यह मे मे मे है है। '' 'पत्नी कहती है कि' इसके लिए अपने अपने माता-पिता को छोड़क आयी हूं अतः अतः प पमे मेा अधिकार है।।। अतः अतः इस प मे मेा है।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।। हूं हूं हूं हूं हूं हूं हूं अतः प प " 'अग्नि कहती है कि यदि श शशी पा ता-पिता, पत्नी का अधिकार होता तो प्राण जाने के बाद वे इसे घ में में कsal नहीं खते खते खते खते खते खते खते खते खते खते खते खते खते खते वे इसे घ घ में क क नहीं खते खते खते खते खते खते खते खते खते खते खते खते खते ब ब वे वे इसे घ में क कsal खते खते खते बाद वे इसे घ में कsal नहीं खते खते बाद वे इसे घ में कsal नहीं खते ब बाद वे इसे घ में क कsprechung खते खते बाद वे इसे घ में क कsprechung " 'इस तरह सभी इस शरीर पर अपना-अपना अधिकार बतंाते है
प्रभु कहते हैं, 'यह शरीर किसी का नहीं है। मैंने इस जीव को अपना उद्धि यह शरीर मेरा है।
संसार में दुखों का प्रधान कारण मोह है। " इसका कारण मोह ही है। हमारा एक मकान है, यदि कोई आदमी उसकी ईंट निकाल लेता है तो हमें बहुत बु बु लगता है।।।। है तो हमें बहुत बहुत लगत है। लेत लेत लेत लेत लेत लेत लेत लेत लेत लेत लेत लेत लेत लेत लेत लेत लेत लेत लेत लेत लेत लेत लेत लेत लेत लेत लेत लेत लेत लेत bis लेत। लेत लेत लेत लेत है है है है तो है है है है bis लेत लेत लेत लेतika लेत लेता है है लेत लेत लेत लेत लेत लेत है हैschiedenes हमने उस मकान को बेच दिया और उसकी कीमत का चेक ले यि "
अब चाहे मकान में आग लग जाय, हमें कोई चिन्ता नहीं। चिन्ता है उस कागज के चेक की। बैंक में गये चेक के रूपये हमारे खाते में जमा हय गय गें अब भले ही बैंक लिपिक उस क कागज के चेक टुकड़े को फाड़ डाले, हमें चिन्ता नहीं।। अब उस बैंक की चिन्ता है कि कहीं बाऊन्स ना हो जाये क्योंकि हमारे रूपये जमा हैं। " " उसमें कहीं दूस दूस के लिये मोह हत हत हत हत ही नहीं इसलिये शोक शोक शोक हुआ।।।।। सर्वदा आनन्द में मग्न रहता है।
" " धन का सदुपयोग करना जान जाये तो सुख अवश्य मिलेगाे "
liebe deine Mutter
Shobha Shrimali
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