" " मानव-जाति ने ज्यों-ज्यों अपना विकास किया है, उसके ज ज्योतिष का हाथ हा है।। आज मनुष्य उन्नति के उस सsprechung "
ज्योतिष-नियमों के अनुसार ज्योतिष के पांच अंग माने गये हैं।। सिद्धान्त, होरा, संहिता, प्रश्न और शकुन शास्त्र॥ "
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" वेदों में कई स्थानों पर ग्रहों को तथा चन्द्र-सूर्य को देवता का रूप दिया गया है और उसी प्रकार से इनकी स्तुति भी की गयी है, परन्तु ज्यों-ज्यों महर्षियों की दृष्टि स्पष्ट होती गयी, उन्हें लगा की इनका भली-भांति अध्ययन करना आवश्यक है, क्योंकि इनके अध्ययन से ही मानव के औऔ सृष्टि के मूल हस हस हस को समझा जा सकेगा। " यही नहीं, उन्होंने यह भी अनुभव किया कि मानव पर इन ग्रहों का प्रभाव व्यक्तिगत रूप से और सार्वजनिक रूप से भी पड़ता है, इसलिये मानव के सुख-दुख, हानि-लाभ, उन्नति-अवनति आदि पर इन ग्रहों का प्रभाव निश्चित हुआ। "
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" " भातीय अध्यात्म का लक्ष्य एकमात्र अपनी्मा का विकास क क क उसे प पपात्मा में विलीन क क देन देना है या आत्म को प पमogr. के केsprechend बनsal बना बना देना है है ।मworम केsprechend बनsprechend बना बना देन को हैपogr. के ok. "
यदि. " " वास्तव में देखा जाये, तो विज विज्ञान से अपने जीवन-म म सुख-सुख-दुःख आदि के हस को समझ सकें सकें सकें वह निश निश निश निश है है है है है है है है है है है है है है है है औ औ औ औ औ औ है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औschieden निश्चय ही इसे 'ज्योतिः शास्त्र' कहा जा सकता है।
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ऐसी स्थिति में मनुष्य प्रतिक्षण अपने जीवन के प्रति तथा अपने कार्यो और विचारों के प्रति सावधान बना रहता है, क्योंकि उसे प्रतिक्षण यह आशंका बनी रहती है कि यदि जरा-सी असावधानी से कोई निर्णय ले लिया गया, तो उसके परिणाम भी निकट भविष्य में ही भुगतने पड़ेंगे और तब उसका जीवन परेशानियों से भर यर जर
" इन आशंकाओं को ज्योतिषशास्त्र ही स्पष्ट कर सकता है कि आने वाला समय किस प्रकार का है और कौन-से क्षण हमारे जीवन में परेशानी पैदा करने वाले हैं या किस प्रकार हम उन क्षणों को पहचान सकते हैं, जिनमें हमारे निर्णय गलत हो सकते हैं। " . "
" " " " इसीलिये 'काल-पुरूष' को ईश्वर के समकक्ष रखा गया हैहैा
चिकित्साशास्त्; तत्व, ज, तम- जिस व्यक्ति में तमोगुण की प्धानता होती है वह व्यक्ति उसी प्कार का बन जाता है।।।। प्कार उसमें क्रोध की मात्र जरूरत से ज्यादा आ जाती है। " " " "
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