" " हिंदू धर्म के सभी वर्गों के लोगों को एक करने के लिए उन्होंने भारत के चार कोनों में चार शक्तिपीठ दक्षिण में रामेश्वरम्, पूर्व में जगन्नाथ पुरी, पश्चिम में द्वारका, उत्तर में केदारनाथ शक्तिपीठ स्थापित किये और स्वयं अपने गुरू की स्मृति में पंचम शक्तिपीठ कांचीकामकोटि स्थापित किया। " " सद्गुरूदेव ने भी अपने एक प्रवचन में कहा कि ''जब किसी राष्ट्र में धर्म के प्रति आस्था समाप्त हो जाती है तो वह राष्ट्र एक नहीं रह पाता, उसमें सद्भाव समाप्त हो जाता है और जब आपसी सद्भाव समाप्त हो जाता है तो राष्ट्र की उन्नति रूक जाती है और यही उस समय हो रहा था। "
" वह एक स्थान पर अधिक समय तक रूकता नहीं है। उसके जीवन का उद्देश्य जन चेतना जाग्रत करना होतै होतै सच्चा सन्यास, सनsprechung
" शुकदेव. इस पर वेदव्यास ने कहा कि राजा जनक महान् मनीषी हैहैि " तब तुम सन्यास लेने के लिये स्वतंत्र हो।
" वहां देखा तो बड़ा ही्भूत दृश्य पाया, राजा जनक सुन्द द के आमोद-प्मोद क हे थे उनकी कई र र र र र र रानियां, दासियां थी।।।।।। थे कई र र र र दासियां थी।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।। कई र र र दासियां थी।।।।। कई र र र दासियां थी।।।। कई र र र र दासियां थी।। राजसी वस्त्र पहने संगीत, नृत्य का आनंद ले रहें थथे शुकदेवजी को लगा कि यह कैसे मनीषी हैं? "
यह सब कुछ अजीब लग रहा है। " संसार में लिप्त न हो। शुकदेव. " " उसके बाद सन्यास इत्यादि की चर्चा करेंगे।
दूसदूस दिन र र विश विश Entwicklungsmittel जनक पूछ पूछ कमी तो तो नहीं।।।।।।। विश विश्राम मुझे विश्वास है कि आपने भोजन औ विश्राम का आनन्द लिया होगा। " " " " " इसलिये मैं पूर्ण निष्ठा के साथ राज-काज चलाता हूं " अतः मैं किसी प पiment मन को वासना, तृष्णा, भोग इत्यादि में लिप्त नहीं होने देता हूं।।।।।। लिप लिप्त
" " राजा जनक बृहदाणण-
" "
वह आत्मा ही तो द्ष्टद्व्य है, श्ोतव्य है, मंतव्य है, निदिव्यासितव्य है को देख देख उसी को सुन सुन सुन सुन सुन।।।।।।।।।।।।। ज जान उसी धsprechend ध क क।।।।।।।। को जान मैत्रेयी! आत्मा के ही देखने से समझने से औ जानने से सब गांठे खुल जाती है। " " "
जब इन बातों से मनुष्य ऊपर उठता है तब कर्मशील बन ती जब तक कर्म कर्तव्य से जुड़ा रहता है। तब तक वह कर्म सात्विक होता है और जीवन सन्यास कहलसन्यास कहलस " जीवन का उद्देश्य ही स्वतंत्रता प्राप्त करना ा अपनी इच्छा से जीवन का प्त्येक क्षण जी इसी को सन्यास कहा गया है।।।। को सन सन्यास सन्यास भी एक प्रकार से कर्म का ही स्वरूप है।
" "
" " एक बार जो बोल दिया जो कर दिया वह कर्म बन जाता है। " " "
स्वामी वेदानंद जी जो कि सिद्धाश्रम संस्पर्शित योगीराज हैं उन्हीं के शब्दों में मैंने बराबर इस सन्यास को पानी में खड़े हुए देखा है, कल इसकी साधना का अन्तिम दिन था, इसने अपनी साधना जिस संकल्प-शक्ति के बल पर संपन्न की है, वह विरले लोगों को ही नसीब होता है। " " , उन्हें सहारा देकर बाहर लाया गया, उफ! " भी प्रकार की पीड़ा या विषाद के चिन्ह नहीं हैं वास्तव में ही यह सन्यास लौह पुरूष है, सारा आकाश उस सन्यास की जय-जयकार से गुंजरित हो रहा है, कुछ युवा सन्यास ने गर्म तेल से उसके पैरों की मालिश प्रारम्भ कर दी है, शायद ये युवा सन्यास दृढ़ व्यक्तित्व के शिष्य हैं जिस अप्तिम संकल्प-शक्ति के सहाे इस ने यह यह साधना सिद्ध की है अद अदschieden है! मेरा मन और शरीर स्वतः ही उनको चरणों में झुक गया है और वही सन्यास सिद्धाश्रम के प्राणाधार, संचालक, योगेश्वर परमहंस स्वामी निखिलेश्वरानंद जी हमारे पूज्य सद्गुरूदेव जी जिनको पूरा भारतवर्ष डाण् नारायण दत्त श्रीमाली के नाम से पुकारता है गीता के बुद्धि योग में भी यही कहा " " " उसका सही रूप से फल भी नहीं मिल पाता। " " " उन सब में से कर्मांश को निकालकर उपयोग में लाना चाचें इसलिए भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है कि-
" अकर्म ब्रह्म का नाम है तथा कर्म माया का नाम है। ज्ञान के आधार पर माया कर्म चलती है। यह दृष्टि ही कर्म बंधन से छुड़ाने वाली होती है। यह श्लोक ही कक्मण्येवाधिकधिक्ते का स्पष्टीक है जो कि ईश ईशावास्य के मंत्र के आधार प भगवान ने यहां स्पष्ट किय है।।।।।। भगवान मंत्र है-
" " " " " " यह चक्षु जाग्त हो जाते हैं तो व्यक्ति स्वतंत्र हो जाता है।।
" हर संयोग किसी कार्य का निमित्त बनता है। लेकिन ऐसा कौन सा कार्य है व व्यक्ति स्वतंत्र ूप से क सकत सकता है? जब व्यक्ति सम भाव से जीवन जीना प्रारम्भ कर देता है, स्वध्याय और स्वयं से वार्तालाप प्रारम्भ कर देता है तथा समदृष्टि भाव आ जाता है तो व्यक्ति स्वतंत्र हो जाता है और वही सन्यास बन सकता है। " जीवन चक्र से मुक्त होने के लिए जीवन से भागना नह ीीह "
" " " " उनके द्वारा दिये गये दस सूत्र हैं-
" "
" "
ज्ञान कर्म और धन का प्रवाह पाराशर ऋषि ने सिद्धांत दिया कि सत्यनिष्ठ मनुष्य के शरीर में ज्ञान, कर्म और धन का प्रवाह रहना चाहिये और वह प्रवाह सत्यनिष्ट व्यक्ति के जीवन में स्पष्ट रूप से दिखाई देना चाहिए। धन का प्रवाह रूकने से समाज का निधन होता है। "
"
" इसलिए ज्ञानी व्यक्तियों को समाज में हक हक हक सन्यास भाव में हक हक धन औ क कक्म के में समन समन्वय स्थापित खना चाहिये।। "
" " " वही सच्चा तत्वदर्शी, कर्म सन्यास बन सकता है।
" " "
" "
जिस समाज में स्त्ियों का शोषण होता हो, उन्हें उचित मान सम्मान प्रप्त नहीं होा ऐसा समाज उन्नति नहींक सकता। ऐसे समाज में व्यक्ति समाज की आधी शक्ति को व्यय्थ, नष्ट कक हा होता है। " "
" " इन तीनों के समन्वय से ही सुदृढ़ समाज की रचना हक सी
पा nächsten ब्राह्मण वही जो ज्ञानी हो। " " " " "
दशम सsal "
" "
" " "
"
" " " " इसी को ''विद्यायासि सा भगवती परमा हि देवी'' कहते है विश्व में समस्त विद्याएं इन्हीं के भेद हैं। ''विद्या समस्तास्तव देविभेदाः।'' मंत्रों में श्री विद्या को श्रेष्ठ माना गया है- ''श्री विद्यैव हि मंत्रणाम्।'' राजराजेश्वरी श्री विद्या वाग्देहरूप ओंकार का दोहन करती है- जो शांत और शान्ततीता है। "
" " "
साधक हो अथवा शिष्य सन्यास दिवस के दिन उसे राजर ाजेश्वरी साधना अवश्य ही सम्पन्न करनी चाहिए और यह ध्यान रखना चाहिए की जीवन मं कर्म, ज्ञान, क्रि या, भोग के साथ उपासना, साधना, विद्या, ज्ञान भी आव श्यक है और जब इनका समन्वय होता है तब व्यक्ति जीवन में सच्चा सन्यास बनता है। यही सद्गुरूदेव द्वारा स्थापित कैलाश सिद्धाश ्रम साधक परिवार का लक्ष्य है, राजराजेश्वरी सन्य ास दीक्षा प्राप्त करना तो जीवन का सौभाग्य है जि समें भगवती श्री- विद्या त्रिपुरा सुन्दरी राजर ाजेश्वरी की पूर्ण कृपा एवं वरदान प्राप्त होता ह ै और जीवन बंधनों से अर्थात समस्याओं से मुक्त क् रिया प्रारम्भ कर देता हैं।
परम् पूज्य सद्गुरूदेव
Herr Kailash Shrimali
Es ist obligatorisch zu erhalten Guru Diksha von Revered Gurudev, bevor er Sadhana ausführt oder einen anderen Diksha nimmt. Kontaktieren Sie bitte Kailash Siddhashram, Jodhpur bis E-Mail , Whatsapp, Telefon or Anfrage abschicken um geweihtes und Mantra-geheiligtes Sadhana-Material und weitere Anleitung zu erhalten,