" . इसलिये बंधन तोड़ना बहुत मुश्किल भी ही और आसान भी ! " " " " अगअग बांधनेवाला शक्तिशाली होता तो से छूटना जजू नहीं था कि हो ही जाता।
" चाहे रस भ्रांत ही क्यों न हो! " " दौडे़गा।
यह सारी दौड़ सुख-दुःख के आसपास है। " शायद सुख-दुःख की संभावना ही बंधन का कारण है। सुख क्या है? और दुःख क्या है? " ऐसा है नहीं। सुख और दुख एक ही सिक्के के दो पहलू है। " कल तो बहुत दू है जिसे हम. यह भी हो सकता है कि जब हम कह हे है यह सुख तभी वह दुःख हो गय गया हो। जो. क्योंकि जब तक वह सुख होता है, तब तक कहने की भी सुविधा नहीं मिलती कि यह सुख है।।
सुख-दुःख के में पहली ब ब ब समझ समझ लेनी ज ज ज है है वे विप विप है है वे-दूस दूस में ूप ूप इस किन किन हते कभी उस उस उस है लह लह लह भ भ है है इस किन किन किन कभी उस किनाे ।ांति " लेकिन देखकर भी हमने निष्कर्ष नहीं लिये। शायद निष्कक्ष लेने के लिये हम अपने मन अवस अवस नहीं देते है।।।।। एक. फिर दुःख हो जायेगा? "
जिस चीज को आप जितना बड़ा सुख मानते है वह उतना बड़ा दुःख बदलेगा, जब बदलेगा। " अनुपात वही होगा। " " तो टुटेगा क्या? बिगडेगा क्या? बिखरेगा क्या? जितनी बड़ी अपेक्षा, उतना बड़ा दुःख फलित हो सकता ैै
" उन्होंने ठीक सोचा था। " जितना बड़ा सुख अपेक्षा में होगा, जब ूपांतंत होगा, उतना ही बड़ा दुःख होगा।
" " "
" " " पांच हजा nächsten समतल भूमि थी-न बड़ी खाइयां थी, न बड़े शिखर थे। " " अगर सुख ज्यादा चाहिये तो विवाह छोड़ दो। अब फिर वहीं भूल हो रही है। " " उस सुख की तुलना में यह खाई बहुत बड़ी मालूम पड़ती ै
" " " बदलते ही रहते है। एक क्षण को भी बदलाहट रूकती नहीं। इस समझ के कारण पूरब ने एक और प्रयोग किया। "
तपश्चर्या का सूत्र इस समझ से निकला। " और हमने दुःख को भी सुख में बदल कर देखा। " "
आपके र र से बदल बदलाहट होती- असल में आपके राजी होते ही बदलाहट शुरू हो जाती हैी " "
बड़े. क्यों? " उसका काण है कि जो दुःख तक को सुख में बदल लेता है, उसका सुख कैसे दुःख बन सकेगा? " " "
आकांक्षा से क्षमता निर्मित होती है। . " जब दुःख आपके ऊपर आये तो उसे स्वीकार कर लें। " दुःख की तरह देखा था, वह सुख हो गया है?
सुख दुःख में बदल सकता है, दुःख सुख में क्योंे? क्योंकि वे एक ही सिक्के के दो पहलू है और बदल क्जो क्यो क्यो ? इस बदलने का क्या कारण है? असल में जब एक आदमी में में जीता है, तो सुख भी ऊब जाता है।।। जो चीज भी निरन्तर मिलती है उससे ऊब पैदा हो जाती हहो ऊब स्वाभाविक है। सुख भी ऊबाने लगता है। " " " यह ऋषि कहते है- रूचि अरूचि में बदल जाती है, अरूचि रूचि में बदल ऀा
ऋषि ने कहा, इंद्ियों के लिये जो अनुकूल है है सानुकूल है, वह ूचिक ूचिक ूचिक है।।। " " उससे व्याघाद पैदा नहीं होता, उपद्व पैदा नहीं होता, बल्कि विपविप विप के भीत चलता हुआ उपद्व शिथिल होता है, शांत होत है है है है।। उपद उपद्व शिथिल होता है शा होता है है है। उपद्व शिथिल विप विप शा है है।। उपद उपद्व शिथिल विप श होता है है।।।। उपद उपद्व शिथिला है होता होत है है।।।।। उपद उपद उपदice। है है है।। उपद ok लेकिन जरूरी नहीं है। "
" सबसे कम उपद्रव है उसमें। है तो उपद्रव, क्योंकि है तो आखिर स्वरों का आघात ऀह " चीन का एक बहुत बड़ा संगीतज्ञ हुआ, हुई हाई। " एक दिन उसने अपने वाद्य को उठाकर फेंक दिया। दूदू- औऔ जब दूस दूस दिन नये य यात्ी आये उसका संगीत औ औ उसे उन्होंने बैठा वृक्ष के देखा बिना वाद्य के, तो उन्होंने पूछा, तुम्हाद्य कह कह कह कह है है है है? तो हुई हाई ने कहा अब वाद्य भी संगीत में बाधा हो गय " उसका कारण है—-
" उस अराजकता में यह सुलानेवाली दवा की तरह मालू़ थ़ प़ " रूचिकर है।
लेकिन अग अग संगीत अस्तव्यस्त हो, सिसि्फ शोशो हो आवाजों का तो अ अ अ हो ज जाता है, क्योंकि कान को पीड़ा होती है।।।।। क क्योंकि कान को होती होती।।।।।। क कsprechung " " " बस इससे ज्यादा प्रीतिकर "
जैसे, एक नया आदमी रेलवे की नौकरी पर जाता है, स्टेशन पर सोता है, नींद नहीं आती-स्टेरश्न की आवाजे है, इंजन की आवाजें है, शंटिग है और शोरगुल है और सब तरह का उपद्रव है-नींद नहीं आती, बड़े बेचैन होते है कान। लेकिन नींद एक जरूरी चीज है। " तो यह हो तो ही यह सो सकता है, यह न हो तो यह नहीं सक ससह यह इसका क्रियाकांड का हिस्सा हो गया। इतना उपद्रव चाहिये ही।
बहुत लोग मे मे पास आते है, वे कहते हैं बड़ी मुसीबत है बड़ी बेचैनी है है बड़ी शांति है।। " उनको पता नहीं है वह वह उनका क्ियाकांड है, वे उसके बीच ही जी सकते है।। " सार वहीं है, जहां सारा उपद्रव चल रहा है। क्यो?
" "
एक बड़े कवि मुझे मिलने आये थे। बातचीत चलती थी, तभी एक संगीतज्ञ भी आ गये। उन संगीतज्ञ ने कवि को कहा कि कोई एकाध कविता सुनेेे उन कवि ने कहा, क्षमा करें। कविता से बुरी तरह ऊब गया हूं कि कुछ और चलेगा, कविा कविा बड़े कवि है, कविता से ऊब गये है। "
" " क्या हो गया है इस हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस को? यह ऊब गया है बुद्धिमानी से। काफी बुद्धि इसने झेल ली। " फिर इसको देखकर न मालूम कितने नासमझ इसके पीछे आयेंगे, क्योंकि वे इसे बुद्धिमान समझकर चले आ रहे है— कि जब यह बुद्धिमान जा रहा है कहीं, तो अब तो गेर बुद्धिमानों को जाने के लिये रास्ता खुल गया। " बुरी तरह ऊब गया है——!
रूचिकर सदा रूचिकर नहीं रहता। इसके और भी कारण है, क्योंकि आप पूरे समय विकसित हो हो हो " खिलौने फेंकने ही औ औ ये वे ही खिलौने है. इन्हीं को वह छोड़कर एक दिन हट जायेगा। क्योंकि उसकी चेतना विकसित हो रही है।
जो कल रूचिकर था, वह आज रूचिकर नहीं रहा। आज वह नये खिलौने खोजेगा, हालांकि उसे ख्याल में नहीं होगा, ये भी खिलौने है।। कल उसने गुडि़या सजाई थी, आज वह पत्नी सजायेगा। सजावट वही होगी, ढंग वही होगा। " लेकिन गुडि़या थी गुडि़या, इसलिये दिन फेंक फेंक दिया तोाई हुई।।। " तब अपने.
" अभी मंदिर बिलकुल नासमझों की जमात दिखाई पड़ती थीई लेकिन आज नहीं कल, मंदिर सार्थक हो जायेगा। कार्ल गुस्ताफ जुंग ने अपने जीवन के संस्मरणों में लिखा है कि मेरे पास इलाज करानेवाले हजारों मरीज मन के जो आये है, उनमें अधिकतम वे है जो चालीस के ऊपर है और उनकी एक ही तकलीफ यह है कि वे मंदिर का द्वारा भूल गये है और कोई " "
" सुख. " "
इसलिये पांच श Karon " इससे विपरीत अगर हम कर सकें, उसी का नाम तप है। " " "
" भोग और तप का यही भेद है। " " " " क्योंकि दुःख को हटा-हटाकर देख लिया, वह हटता कहां हटता! वह बना ही रहा चला जाता है। उलटे उसे हटाने में औ सुख भोगना पड़ता है—- न. यात्र भीतर की तरफ शुरू हो गयी, बाहर कोई संघर्ष न ररा यह अंतर्यात्र ही शरीरों से छुटकारा दिला सकती हैी
सुख-दुःख के लिये जो क्रियाएं करता है व्यक्ति, ऋषि ने उसे ही कर्ता कहा है-द डुअर, जो सुख-दुःख के लिये क्रियाएं करता है- जो मांगता है कि सुख सुख मुझे मिले और दुःख मुझे न मिले, यह कर्ता है, लेकिन. इसी से भाग्य की कीमती धारणा पैदा हुई।
भाग्य का मतलब ज्योतिषी से नहीं है, भाग्य का ख्याल बहुत आध्यात्मिक है।।।। ख ख्याल " " दुःख न मिले, तब तक संघर्ष करता हूं तो कर्ता होता ं " "
" करना था ही क्या? एक ही था, सुख कैसे पाये और दुःख से कैसे बचें——- वकररररर अब कर्म का कोई उपाय न रहा—– फिर भी चीजें तो होती ही चली जाती है-जब व्यक्ति कर्ता नहीं रह जाता तो परमात्मा कर्ता हो जाता है और जब परमात्मा ही कर्ता हो जाता है, इस भावदशा का नाम ही भाग्य है, विधि है । ऐसे व्यक्ति की गर्दन काट दो तो वह कहता है, कटनी थी वह इसमें उसको भी. "
" ऐसा व्यक्ति अगअग पप शांति को प प संतोष को उपलब्ध हो जाये तो आश्च्य क्या है?
" जिसने सुख-दुःख का भेद ही छोड़ दिया, वह संतुष्ट हैट "
लोग कहते है, संतोष में ही सुख है। " " जो सुख चाहता है वह से से बचेगा ही, नहीं तो च चाह नहीं सकता। तो संतुष्ट कैसे होगा? सुख संतोष नहीं है। संतोष सुख नहीं है, संतोष सुख-दुःख के पार है। और संतुष्ट वही है, जिसने सुख-दुःख का भेद ही त्याग संतोष दोनों को अतिक्रमण करता है। " नियति, भाग्य, विधि, परम आध्यात्मिक शब्द है। व्यक्ति अहंका nächsten
इंद्रियां ही सुख और दुःख के कारण है। ''शब्द, स्पर्श, रूप, रस और गंध -ये ही सुख दुःख के कारण है।'' ''पुण्य और पाप कर्मो का अनुसरण करने वाला आत्मा प्राप्त हुए शरीर के संयोग को अप्राप्त होते हुये भी स्वयं की तरह समझने लगता है, " शरीर में हूं, ऐसा जो जानता है, वह आत्मा है, शरीर ही हूं, ऐसा जो जानता है, वह जीव है-उपाधिग्रस्त हो गया,भ्रम में पड़ गया, भूल में पड़, भ्रांति में पड़ गया, जो है, नहीं समझ रहा अपने को और जो नहीं है वह समझने लगा।
शरीर हूं मैं, यह क्यो पैदा हो जाता है? " इसीलिये जिससे हमें सुख मिलता है उससे हम अपने को एक क लेते है।।। " अब. यह बहुत मजे का मामला है। यह बहुत ही मजे का राज है। जब. सुख के लिये हम.
" इसीलिये कोई आदमी यह नही पूछता कि संसार में सुख कर मुझसे लोग आकर पूछते है, संसार में इतना दुःख क्य ोा? " " होना ही चाहिये, ऐसा है। दुःख क्यों है यह सवाल है। Was ist das? oder? जीवन तो होना ही चाहिये? लेकिन मृत्यु क्यों? ऐसा लगता है कि जीवन तो हमाे भीत है, मृत्यु कहीं बाह से आती है।। " आती है, लेकिन है बाहर। आती है और हमको मार डालती है-इससे कैसे बचे? और हम है जीवन।
" " " भगवान दयालु है समझ में आता है। " " यह मरा हुआ ही पैदा हुआ। अगअग मा हुआ ही पैदा होना था, तो भगवान ने इसको पैदा ही किसलिये क्या? जब मरा हुआ ही पैदा करना था तो यह नासमझी क्यों की? "
" " " . अब यह बुरा कहां जाये? यह कौन कर रहा है? तो इसके लिये एक दूसरा भगवान पैदा करना पड़ता है। उसको हम शैतान कहते है। वह बुराई का भगवान है। वह करवा रहा है। डेविल-वह यह सब काम कर रहा हैं
" " " वही— जहर भी, अमृत भी-एक। बड़ी हिम्मत की बात है यह कहनी और ऐसे भगवान के साथ अपने को एक समझना बड़ी क्रांति है, क्योंकि हमारा सारा तर्क गिर जायेगा वह जो तर्क है हमारा अच्छे को अपने साथ जोड़ने का और बुरे को कहीं और हटा देने का, वह तर्क गिर जायेगा । अगअग चो चो क क क है आप कहते है शैत शैतान ने क क क औ औ अग प प्रार्थना क है तो आप क क क हे हे हे हे हे हे हे हे हे हे हे हे हे प पप पअग प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प पchte! बहुत मजेदार आदमी है! "
भले से हम अपने को जोड़ना चाहते है, बुरे से नहीं। लेकिन जगत दोनों का जोड़ है। " " " "
" मैं उनको कहता था, जागेगा, संभावना है, प्रयास करने करनेय " यह भी काफी उनकी प्रसन्नता थी। महीने-पन्द्रह दिन में आकर मुझसे वे यह सुन जाते थथ इससे उनको फि से गति. " एक दिन आये तो मैंने कहा कि अब यह कोई संभावना नहीं? कहा, कोई संभ संभावना नहीं, बुद्धि तुम में ही नहीं नहीं जो विकसित हो सके औ औ विवेक इतनी आसान बात नहीं? तुम्हारे बस की नहीं, तुम छोड़ो यह ख्याल। एकदम चेहरे पर से उनका रंग उड़ गया, बड़े दुःखी लौट अब मेरे खिलाफ हो गये है कि यह आदमी ठीक नहीं है। तब तक मैं ठीक था, जब तक कहता था, संभावना है। प्रसन्न होकर वे लौटते थे-प्रफुल्लित— गद्गद्! अब मैं बुरा हो गया हूँ।
यह. " हम. सुख मिल रहा है, हम शरीर के साथ बंध जाते है।
" यही है उपाधि, यही है बीमारी। " जिससे न दुःख मिलता, न सुख मिलता, जिससे आनंद मिलतै मिलतै आनंद न दुःख है, न सुख, आनंद दोनों का अभाव है। उस खोज पर हम निकलें।
परम् पूज्य सद्गुरूदेव
Herr Kailash Chandra Shrimali
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