अनsprechend तो द्वन्द् समाप्त हो जाता है, तब गुरूदेव एक शुद्ध ज्ञान का, शुद्ध विचार का बीजारोपण करते हैं और फिर उस विचार के आनन्द में व्यक्ति निर्द्वन्द् हो जाता है, एक खुमारी में डूब जाता है और फिर वह जिस कार्य को हाथ में लेता है, उसे सफलता मिल जाती है।
द्वन्द् जीवन के चाहे किसी भी क्षेत्र का हो, द्वन्द् का उत्पन्न होना तो पsal पsprechend होने होने एवं आवश आवश आवशschieden अंग अंग जीवन एक उपलब उपलबsprechend " ऐसा हो पायेगा या नहीं हो पायेगा?
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" " " तो भौतिक जगत में भी सफलता प्राप्त हो पाती है।
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" यदि स्वयं प्यास किया जाये, चेष्टा की जाये तो मन में शुभ विच विचाों का स्थापन हो सकता है।। "
गीता में कहा गया है, कि 'संशयात्मा विनश्यति'
" द्वन्द् की यह स्थिति तो अर्जुन के साथ भी थी। " "
होगा या नहीं होगा, कर पाऊंगा या नहीं कर पाऊंगा जैसी स्थिति व्यक्ति को अन्दर तक तोड़ देती है, परन्तु शायद ये बात अनुभव सभी ने की होगी, कि ऐसी स्थितियों में ही व्यक्ति बड़ी आतुरता से ईश्वर को याद करता है, सद्गुरू को याद करता है और जब उसके कदम गुरू चरणों की ओर बढ़ते है, तब उसे आनन्द का अथाह सागर लहराता हुआ मिल जाता है और वह अपने द्वन्द् से विमुक्त होता हुआ निश्चिन्त हो जाता है, वह यह समझ जाता है, कि उसकी प्रत्येक क्रिया में गुरूदेव सहायक है । " " जो स्थिति पैदा होती है वह एक अस्थायी (अल्प कालिक) ही प्तीत होगी।। " करता ही है।
" " आविष्कार या सिद्धान्त बनकर समाज के सामने आया। " है, कैसे करूं, किस से पूंछू और पूछने के लिये उसे कोई नहीं मिलता है, उसके प्रश्नों का उत्तर स्वयं उसके अन्दर से ही मिल जाता है, एक द्वन्द् की एक निश्चित अवधि के बाद।
" सिदsprechung उभर कर सामने आता था।
साधक जीवन में भी द्वन्द्वात्मक स्थिति को सक सकारत्मक दृष्टिकोण से लेना चाहिये। साधना सफल होगी या नहीं होगी, मंत्र प्रामाणिक है अथवा नहीं, विधि में दोष है अथवा नहीं, कमी मेरे अन्दर है या उच्चारण में अशुद्धि है- यह सब द्वन्द् ही तो है, जो साधना काल में व्यक्ति को झकझोरते रहते है, परन्तु व्यक्ति यदि शान्त चित्त से इन द्वन्दों को साक्षी भाव से देखता हता है, तो ज्ञान का बोध होता है है है है है है तो ज्ञान का है है है है है है तो उसे ज्ञान "
इसीलिये सद्गुरूदेवजी ने एक बार कहा था- 'यदि तुम्हारे मन में द्वन्द् आया है, यदि तुम्हारे मन की भटकन बढ़ी है, तो यह प्रसन्नता की बात है, क्योंकि तुम्हारी यही भटकन, तुम्हारा यही जिज्ञासु भाव, तुम्हारी यही खोजी प्रवृति एक दिन तुम्हें सफलता "
liebe deine Mutter
Shobha Shrimali
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