ऋषि कश्यप व उनकी दैत्य पत्नी दिति जिनकी दो जुड ़वां संताने थी, उनमें से हिरण्याक्ष का भगवान वि ष्णु ने वराह अवतार में अंत किया था। अपने भाई के वध से दु:खी और क्रोधित हिरण्यकश्यप ने भाई की मृत्यु का बदला लेने के लिए अजेय होने क ा संकल्प कर हजारों वर्षों तक भगवान विष्णु को प् रसन्न करने के लिए घोर तप किया। तपस्या से खुश होकर ब्रह्माजी प्रकट हुये। हिरण्यकश्यप ने ब्रह्मा से वरदान प्राप् त किया कि उसे कोई देवता, देवी, नर, नारी, असुर, यक्ष या कोई अन्य जीव, न दिन में, न रात में, न दोपहर में, न घर में, न बाहर, न आकाश में और न ही पाताल में, न ही अस्त्र से और न ही शस्त्र से मार पाए। ऐसा वरदान प्राप्त कर हिरण्यकश्यप स्वयं को तीन ों लोका का स्वामी समझने लगा। वह इतना अहंकारी हो गया कि उसने अपनी प्रजा से खु द को भगवान की भांति पूजने का आदेश दे दिया और ऐसा न करने वालों को वह कठोर सजा देने लगा। उसके अत्याचारों की कोई सीमा ही नहीं रही। इसी हिरण्यकश्यप का एक पुत्र था, प्रहलाद जो भगव ान विष्णु का परम भक्त था।
हिरण्यकश्यप को जब इस बात का पता लगा तो उसने अपन े पुत्र को समझाया कि उसका पिता ही ईश्वर है और वह उसी की भक्ति करे। लेकिन प्रहलाद को यह सही नहीं लगा और वह भगवान वि ष्णु की भक्ति में लगा रहा, इसी में उसे आनन्द की अ नुभूति होती थी। हिरण्यकश्यप को यह बिल्कुल पसंद नहीं था, प्रहल ाद द्वारा श्री विष्णु की भक्ति करना उसे स्वयं क ा अपमान लगता था। जिसके चलते उसने कई बार अपने पुत्र का वध करने की कोशिश की लेकिन भगवान विष्णु की कृपा से वह भक्त प्रहलाद का कुछ भी बिगाड़ नहीं पाता था। एक बार हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन होलिका को प्रह लाद को मारने का आदेश दिया कि वह जलती अग्नि में प् रहलाद को लेकर बैठ जाये क्योंकि होलिका को वरदान था कि अग्नि उसे जला नहीं सकती थी। लेकिन जब होलिका विष्णु भक्त प्रहलाद को गोद मे ं लेकर आग में बैठी तो भगवान की कृपा ऐसी हुई कि उन के भक्त प्रहलाद का प्रचण्ड अग्नि में बैठने के ब ावजूद बाल भी बांका नहीं हो पाया, वहीं होलिका खुद उस आग में जल गयी।
हिरण्यकश्यप यह देखकर अचंभित था और प्रहलाद के प्रति उसका क्रोध बढ़ता ही जा रहा था, वह उसे कई तर ह की यातनाये देता रहा। एक दिन उसने पुत्र प्रहलाद को दरबार में बुलाकर विष्णु भक्ति छोड़ देने को कहा लेकिन इस बार भी प् रहलाद ने नम्रतापूर्वक ऐसा करने से मना कर दिया। इस बात से हिरण्यकश्यप अत्यन्त क्रोधित हो गया और प्रहलाद का वध करने के लिये उसे खंबे से बांध दि मैं आज तेरा अंत करने Was ist los mit dir? भक्त प्रहलाद ने शांत भाव से कहा कि वे हर जगह प र है, वे इस खम्बे में भी है। क्रोध व अहंकार में अंधे हिरण्यकश्यप ने जैसे ह Es ist nicht einfach, es zu tun, aber es ist kein Problem और उसमें से नृरसिंह भगवान प्रकट हुये। उनका रूप विकराल एवं क्रुद्ध अवस्था में था जिस े देख हिरण्यकश्यप डर से कांप उठा।
भगवान नृसिंह ना पूरे पशु थे और न पूरे मनुष्य, उनका मुख विशाल सिंह का था और आधा शरीर मानव का, उ न्होंने हिरण्यकश्यप का वध अस्त्रों या शस्त्रो ं से नहीं बल्कि अपनी जांघ पर लेटा कर, अपने बड़े-ब डाखूनों से उसकी छाती चीर कर किया था िंह भगवान ने उसे उसके महल की देहलीज पर ले जाकर म ारा जो न अंदर था न बाहर। हिरण्यकश्यप का संहार करने के बाद भी नृसिंह भग वान का क्रोध शांत नहीं हुआ, वे हिरण्यकश्यप के सिंहासन पर बैठ गये। उनके इस क्रोध को शांत करने के लिए भक्त प्रहलाद उनके चरणों में बैठकर उनकी स्तुति करने लगा। यह देख नृसिंह भगवान ने उसे अपनी गोद में बैठा लि या, उनका क्रोध अब शांत हो चुका था, उन्होंने प्रह लाद को अपना परम भक्त माना और आशीर्वाद दिया कि उन के भक्तों में उसका नाम सदा सर्वप्रथम लिया जाये गा। उन्होंने आशीर्वाद दिया जो भी भक्त वैशाख मास क े शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को उनका स्मरण करेगा उस Mehr anzeigen
नृसिंह चतुर्दशी के दिन भगवान विष्णु के नृसिंह रूप में साधना, व्रत, पूजन करने से भक्तों की हर प ्रकार के संकट एवं दुर्घटना से रक्षा होती है एवं अभय वर की प्राप्ति होती है।
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