" " " वह. योगेश्व के दृष्टिपात से में सौन सौन्द्य, सुगन्ध, संगीत, हास्य तथा जीवन्तता का उद्भव हो उठता हैं हैं।।। जीवना जीवना का उद्भव " फिर कौन होगा, जो सौन्दर्य और वह भी निष्कलंक सौन्दर्य से प्रभावित न हो?– और उसे अपने रोम-रोम में आत्मसात करने की चाह न हो उसका चित्त निर्मल है, तो वह उस सौन्दर्य के प्रवाह में स्वयं ही भगवान श्रीकृष्ण रूपी सभी कलाओं से युक्त होने की क्ियाओं को अग्सस होना प्र्म हो जाता है।।।।। पsal " "
" भी, जब ऐसा हो जायेगा तो व्यक्ति अपने अन्दर ही अनुभव करता है एक दिव्यता, चैतन्यता, सुगन्ध, संगीत, जो आपके जीवन को ही नहीं, आपके आस-पास के लोगों के जीवन को भी प्रेम, हास्य निर्मलता, शांति तथा चैतन्यता से सराबोर कर देगा। जिसे श्ीकृष्ण स्वव चौसठ कला युक्त पौपौ शक्ति दीक्षा कहा गया है।।
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