जैसा कि प्रा weil " एक गृहस्थ की अपेक्षा अधिक तीव्रता से गतिशील है। " जीवन में गति की. "
" सहज आनन्द, सहज हास्य, सहज गति उनके में सम समाप्त हो गयी है है।।।।। में सम समika " आजीविका का साधन, धन-संग्रह करना जीवन का एक आवश् अा एक आवश् अा "
जीवन की इसी विसंगति, गृहस्थ व संन्यस्त, दोनों ही धाराओं में प्रवाह की न्यूनता को समझ कर सिद्धाश्रम ने यह व्यवस्था दी जिससे साधक अपने जीवन की खोई हुई गति प्राप्त कर सके, चाहे वह साधना के माध्यम से हो या शक्तिपात दीक्षा के द्वारा, जिससे " प्रतिदिन नवीनता का अनुभव हो।
गृहस्थ संन्यासियों के जीवन के सभी अटकाव, बाधा ओं, न्यूनताओं, साधना में असफलता, विकार, अष्ट पाशो ं, धनहीनता की समाप्ति हेतु सद्गुरूदेव से गृहस् थ चेतना युक्त सिद्धाश्रम शक्ति दीक्षा प्राप्त कर सद्गुरूदेव जी की ही भांति गृहस्थ और संन्यास Es ist nicht einfach और गृहस्थ के सभी रंगों से सराबोर होंगे।
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