" " " " हम किस बात पर गर्व करें? इस शरीर में क्या है जिस पर गर्व करें। " "
" श? "
" " क्यों नहीं बन सकती?
फिर मनुष्य शरीर हमने धारण क्यों किया? " " अपवित्र चीज नहीं चढ़ा सकते। " यदि. ऐसे.
" " उसको गुरू कहते हैं। वह केवल. कर सकता है।
" । " " तो इस जगह से उस जगह छलांग लगाने की कौन सी क्रिया ह? कैसे हम उच्च कोटि का जीवन प्राप्त कर सकते हैं? " जमीन से ऊपर उठकर साधना करने की क्या आवश्यकता है?
" " " " "
दो कमियां हमारे जीवन में आई। " " " पवित्र कहीं पर भी धरती है ही नहीं। " फिर तो सिर्फ एक मल मूत्र युक्त जीवन है। ऐसा जीवन क्या काम का है? इस जीवन के माध्यम से हम सिद्धाश्रम कैसे पहुँच सक? उसके माध्यम से हजाों व~ व व की प्राप्त योगियों के द द द द द द द द द द द द द द द क क सकते हैं हैं हैं हैं हैं और अगर ऐसा नहीं कर पायेंगे तो इस जीवन का अर्थ क्यया? फिर जीवन का मतलब क्या? क्या इसी प्रकार घसिट करके जीवन को समाप्त कर कर कर दे नत? ऐसे ही जीवन बर्बाद हो जाना है?
" " केवल जीवन घसीटते हुए उन्होंने बिता दिया।
" " " यह शशश कितना अपवित्र कि च च च भी बाह के वाताव को झेल नहीं सकता औ कल कल्पना कक क हैं हैं कि भगव कृषschieden के श अष अषsal प पsprechend प भगव कृष कृष कृष श अष अषsal प पsprechungswissen भगव कृष कृषsprechung सुगंध तब प्रवाहित होती थी जब गंध या दुर्गंध मिी ह " " ऐसी. यह गंध क्या है, यह क क्या है, इस व्यक्तित्व में क्यों हैं? "
" और एक दिन मर जायेगा। " " " "
" ऐसी कृष्ण में क्या विशेषता थी? राम में क्या विशेषता थी? और हममें क्या न्यूनता है?
" " " फिर अंदर एक चेतना पैदा हो सकेगी अंदर एक क्रियमाण पैदा हो सकेगा, फिर सारे वेद, सारे उपनिषद अपने आप कंठस्थ हो जायेंगे क्योंकि प्राणमय कोष में होने पर व्यक्ति को वेद पुराण, उपनिषद पढ़ने की जरूरत नहीं होती।
" इस जीवन को अद्वितीय कैसे बना सकेंगे? "
" हैं। फिर आपमें और उनमें अंतर क्या है? और फिर अंतर नहीं है तो मेरा या गुरू का उपयोग क्या ? फिर मैं गुरू बना ही क्यों? "
" कृष्णं वंदे जगद्गुरूं। " उनको गुरू क्यों कहा गया? " " " हजार साल के अध्ययन के बाद भी आप इस चीज को प्राप्त नहीं कर सकते, पुस्तकों से प्राप्त नहीं कर सकते, मंत्र जप से भी प्राप्त नहीं कर सकते, रोज गंगा में स्नान करके भी नहीं प्राप्त कर सकते। " " " उसने कहा-
" इसलिये ऐसा किया क्योंकि हिमालय में कहां सलमि " मगर फिर भी वे साधनाओं में उच्च कोटि के हैं। हम गृहस्थ में हते हुए भी उच्च कोटि व्यक्तित्व बन सकते हैं।।।।। वे उच्च कोटि के हैं मगर जरूरी नहीं ऐसा दिखाई दे। " शेर अपने मुंह से बोलता नहीं कि मैं शेर हूँ। " "
" " " " इसमें कुछ है ही नहीं अच्छा जिसकी आप प्रा कर सक यह ऐसा है जिसका कोई उपयोग ही नहीं हो सकता। " आपके शरीर को केवल राख बन जाना है।
मगमग इसके साथ-साथ इस श श श श में विशेषत विशेषत है यह यह श श श अपने आपमें दैदीप्यमान बन सकता है, तेजस्विता युक्त बन सकता है।।।।। तेजस तेजसsprechend " " " "
" मगर उससे पहले गुरू अपने आपमें पूर्ण प्राणवान हो, तेजस्विता युक्त हो, उसकी वाणी में गंभीरता हो, शेर की तरह दहाड़ हो, एक क्षमता हो, आँख में ताजगी हो, एक तेजी हो, जिसको देख ले वह सम्मोहित हो। " " " " " "
याद करने से क्या हो जायेगा आप क्रियमाण नहीं बइ यइ यग " हो। ऐसे जीवन की कोई सार्थकता नहीं है। ऐसे जीवन का कोई अर्थ नहीं है। " चार बच्चे पैदा कर पाये और छः रोग पैदा कर पाये। मुठ्टी भर दवाइयां लेते हैं और जिंदा रहते हैं। और हमने जीवन में किया क्या? " " आज आप मुझे मिलने आये कल आप अपने घ चले चले जायेंगे हम बिछुड जायेंगे। फिफि चार छः महीने बाद मिलेंगे, फिफि बातचीत कक औ हम हम फि बिछुड बिछुड जायेंगे। " फिर वह भावना आपमें आयेगी कब?
" " " साधनाये आप दो सौ साल कर नहीं सकते। अगअग मैं अठ अठाह घंटे एक आसन प बैठने के लिये कहूं तो आप बैठ नहीं सकते।।। " " आपमें सुगंध कहाँ से आयेगी? " अगर वैसा नहीं हो सकता तो जीवन बेकार है। हम रिटायर हो जायेंगे और मर जायेंगे। " फिर शुद्ध मन कहां से पैदा होगा? शुद्ध मंत्र आपको कहां से प्राप्त होगा?
गायत्ी मंत्र का उदाह है, कहा गया है कि चौबीस अक्षष की गायत्ी मंत्र पूपू्ण गायत्ी मंत्र माना जाता है।।।।। गायत्ी मंत्र मा जा है।।। ग गायत्ी मंत्र मा त है है।।। गायतsprechung यह गायत्री मंत्र ही आप अधूरा पढ़ रहे हैं। " ब्रह्मा ने उस श्लोक में बहुत महत्वपूर्ण बात कही हही ऋगवेद से भी पहले ब्रह्मा ने यही बात कही। उसने कहा कि एक ही क्रिया है। यदि गुरू प्रसन्न हो तो वह हो सकता है।
" जब आपके प्राण मेरे प्राणों से जुड़ जाये, जब आप हर क्षण यह चिंतन करें कि इस व्यक्ति को जिंदा रखना है, जब आप हर क्षण यह चिंतन करें कि मेरा जीवन चाहे बर्बाद हो जाये मगर इस व्यक्ति को स्वस्थ रखना है, जब आप हर क्षण यह चिंतन करें कि यह व्यक्ति तेजस्विता युक्त है, प्राणास्विता युक्त है मेरा शरीर तो छोटा सा शरीर है, हजार-हजार शरीर भी इनके आगे समर्पित हो सकतें हैं, यह व्यक्तित्व जिंदा रहे जब ऐसी भावना आपके अंदर आये तब आप मेरे शिष्य हैं, तब मैं आपका गुरू हूँ।
" " मुझे कुछ देने की जरूरत नहीं है आपको। मुझे इस बात की आवश्यकता नहीं है। इस बात की आवश्यकता है कि आप कुछ बनें। बार-बार मेरा जोर इसी बात पर है। " कोई आपको रोशनी नहीं मिल पाएगी। कोई आपको भटकाएगा और आप भटक जायेंगे। " " ऐसा आपके शरीर में विराट कैसे स्थापित हो पायेगा?
" " मल मूत्र से भरा हुआ शरीर चढ़ा रहे हैं। गुरू के चरणों में क्या चढ़ाया जा सकता है? क्या है कुछ ऐसा जो चढ़ाया जा है? चढ़ाया जा सकता है सुगंधित कमल, चढ़ाया जा सकता है सुगंधित जीवन, चढ़ाया जा सकता है प्राणस्विता युक्त जीवन और ऐसा जीवन जो जमीन से ऊपर उठकर साधना सम्पन्न कर सके और इसके लिये जो गुरू इतना ज्ञानवान है, उसको ही अपने शरीर में समाहित कर लें तो फिर शरीर अपने आप ही सुगंधित बन जायेगा। "
" ऐसा घिसा पिटा जीवन जीना ही नहीं हैं। " दोनों में से एक ही होना चाहिये, घिसा पिटा जीवन नहीं चाहिये।।
" लोग आपको देंखे तो मुड़-मुड़ कर देखें। " मैं जो कुछ हूँ वह तो मेरे गुरू की देन है। " " मगर यह एक दूसरा ही प्रसंग है। " " दोनों जीवन में सामंजस्यता लाने में अंद कितना विलोड़न होगा। आप शायद इसकी कल्पना नहीं कर सकते।
" " " ऐसे कंदराओं में छिपकर बैठने की जरूरत नहीं है। "
ब्रह्मा ने कहा हम उन मंत्रें के माध्यम से, चेतना के माध्यम से, तेजस्विता के माध्यम से, अपने शरीर को एकदम से सुगंध युक्त, दैदीप्यमान, सूर्य के समान प्रखर और तेजस्वी, हजारों-हजारों सूर्य के समान तेजस्विता वाला बना सकते हैं। एक सूर्य नहीं हजार सूर्य के समान बना सकते हैं। सारे शरीर से एक सुगंध प्रवाहित हो। हम. जब मल मूत्र युक्त नहीं होगा जीवन। पवित्र होने पर ही अंदर उतर सकेगा वह। गंदगी में वह नहीं बैठ सकेगा।
अंदर उतरना गुरू का कर्तव्य है, गुरू का धर्म है। " " ऐसा होने पर ही अपने आपमें सौंदर्य निखरता है। " मैं स्वयं देवता हूं। मैं देवताओं को प्रणाम करता हूँ इसका मतलब यह नहीं कि मैं एक घटिया व्यक्तित्व हूँ, मैं ओछा व्यक्तित्व नहीं हूँ, उन देवताओं के समक्ष खड़ा रहने वाला व्यक्तित्व हूँ और मैं हूँ यह बहुत बड़ी बात नहीं है आपको भी वैसा उच्चकोटि का व्यक्तित्व बना दूं यह बड़ी बात है और मैं ऐसा ही बनाना चाहता हूँ आपको। यह हो सकता है गुरू रक्त रूपेण स्थापन क्रिया द्ावा " " "
जो मंत्र इस गुरू रक्त स्थापन क्रिया में गुरू बोलता है या उच्चारण करता है वह फुल स्केच के चौदह पंद्रह पृष्ठों में एक मंत्र आता है और वह कही पुस्तकों में वर्णित नहीं है क्योंकि वह मंत्र ही नहीं है, पूर्ण स्वामी सच्चिदानंद और समस्त योगी, यदि " " तब आप समझ पायेंगे की मंत मंत Entwickel
इसके लिये तीस दिन बहुत होते हैं। " जाती है और निकल जाये तो समझें कि आप जमीन से ऊपर उठ आज के युग में यह सब असंभव लग सकता है। परंतु यह एक प्रमाणिक क्रिया है जिसे आप गुरू के माध्यम से सम्पन्न कर सकते हैं, जिसे आप गुरू से प्राप्त कर अपने जीवन को और की उच्चता श्रेष्ठता ओर अग्रसर कर सकते हैं और गुरू वह है जो आपको हर प्रकार का ज्ञान दे सके, हर क्षेत्र " " "
" पत्नी ने कहा कि कल्पवास करते हैं। कल्प वास का अर्थ है कि महीने भर तक गंगाजी के तट पर रहना, गंगाजी के पानी से आटा गूंथना, खुद के हाथ से रोटी बनाना और खाना या पत्नी के हाथ से रोटी बनाना और खाना और वहीं कुटिया बनाकर के रहना तो हमने कहा चलिये कल्पवास कर लेते हैं। वहां पर एक सन्यासी था। साधू, संन्यासी वहाँ बहुत भटकते रहते हैं।
" " " " मैं घुटा हुआ हूँ। वह बिहार का था, कहीं का। मैंने कहा-तुम बिहारी हो। उसने कहा-हंड्रेड परसेंट बिहारी हूँ। तो मैं समझ गया कि ऐसी बात कोई कह ही नहीं सकता। मैंने कहा- चलो कोई बात नहीं, होशियार हो तुम। तुमने सेवा की क्या सिखाऊं तुम्हें। तुम जो भी कहो, मगर एक ही विद्या सिखाऊंगा तुम्हइंी
उसने कहा- मैंने तीस दिन सेवा की आप एक ही विद्या खगि? मैंने कहा- एक ही सिखाऊंगा। उसने कहा- मैं महीने भर बाद आपके घर आकर सीख लूं तोे मैंने कहा- महीने भर बाद आ जाना। उसके बाद तीन चार महीने तक वह आया ही नहीं। मैं भी भूल गया, मैं भी दूसरे कामों में लग गया। एक दिन वो जोधपुर पहुँच गया। मैंने सोचा इसे कहीं देखा है, मैं उसे कुछ भूल सा ाय मैंने कहा- मैंने तुम्हें कहीं देखा है, साधू हो तुुु? उसने कहा- गुरू जी महीने भर तक मैंने आपकी सेवा की ह आपने कल्पवास किया था।
मैंने कहा- हाँ, हाँ ठीक बिलकुल सही बात है, बोलो क्या चाहते हो तुम? उसने कहा- बस एक बार पिशाच किसी के पीछे लगा दिया तो रोयेगा। जिंदगी भर। किसी को भूत लगा दिया तो मरेगा। पहले भूत लगा दूंगा, फिर पांच हजार रूपये लेकर उत ातूूत
मैंने कहा- उसने कहा- नहीं गुरू जी आपको आती है। आती है और मुझे सिखानी पड़ेगी। " चमत्कार भी हो जाएगा और कमा भी लूंगा। अब मैं वचनबद्ध अलग। हाँ भरू तो खोटा, न कहु तो खोटा। मैंने कहा कल बताऊंगा। उसने कहा- गुरू जी कल आप मना कर देंगे। आप बस बता दीजिये कि कल सिखाऊंगा या महीने भाद सिखाऊंगा। आप बता दीजिये मैं यहां बैठा हूँ।
" अगले दिन पत्नी ने कहा- मैंने कहा- . यह गड़बड़। मैंने उसे बताया कि तू यह नहीं करेगा। पर वह कहता है कि फिर तो सीखना ही बेकार है।
" बस तुझे जो भूतों का नृत्य देखना है, शमशान जाग देखना है वह दिखा दूंगा। वह बोला- मैंने कहा- जोधपुर में शमशान है, घर से, करीब सात आठ किलो य " " " पहले करता था, अब तो छोड दिया, पंद्रह साल हो गए। "
चले अंदर। " पर डरने की बात नहीं है। भूत होंगे, प्रेत होंगे, कोई अट्टहास करेंगे, किसी के सींग होंगे और तुम डर जाओगे तो बहुत मुश्किल हो जायेगी, मैं मंत्र दे रहा हूँ उसका जप करना मगर यह याद रखना कि जो यह घेरा है इसके अंदर कोई नहीं आ पायेगा, बाहर चाहे कुछ भी झपट्टा मारे, तुम घबराना नहीं, न मेरग कु़़ि ब़ि मैंने कहा- बस तू अपना ध्यान रखना। उसने कहा-
मैंने सोचा चलो ठीक है। " " " कर रहा है, किसी के सिंग निकले है, किसी के दांत निै के दांत निै मेaz तो ोज का अभ्यास था, संन्यास जीवन मैं मैं था ही तो मे मे मे कोई बड़ी ब ब ब नहीं थी।।।।। ही ही ही ही ही ही ही।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।। थ थ थ ही ही ही ही ही ही ही ही ही bis थ ही ही ही ही ही ही ही ही तो मे मे मे मे ही थ ही ही ही ही ही ही तो मे मे लिये कोई ब ब बika पर उसने तो दो चार मिनट देखा फिर आंखें बंद कर ली। " लेकिन तीन मिनट हुए नहीं कि खट्ट-खट्ट, खट्ट-खट्ट आवाज होने लगी।।। मैंने सोचा यह आवाज कहां से आ रही है? उधउध देखा तो थ थ कांप हा है, दांत बज हे हैं औ हा हा हा हा कक हा है। "
मैंने फटाफट शमशान को बंद किया उसे जगाया। मैंने कहा क्या हुआ अब तो उठ जा। वह चिल्लाया- " " मैंने सोचा यह तो हट्टा-कट्टा था, यह क्या गड़बड़ हड़ हड़बड़ हट्टा-कट्टा? माता जी ने कहा यह क्या लाये। मैंने सिखाया। "
" वह उठा औऔ बोला- मैंने कहा- कितना तू महान शिष्य मुझे मिला, बहुत कृपा की तूनेेे कक आधे घंटे, पौने के के बाद उसने खोली मैं मैं कहां हूँ? कहां हूँ? मैंने कहा तू मेरे घर में हैं। तू मेरे पास बैठा है। वह बोला- भूत आया, भूत आया।
मैंने कहा- " वह बोला- यह क्या हुआ?
मैंने कहा- कुछ नहीं हुआ। यह तो शु शु हुई थी अब जब शु शु शु यह खेल है अंत अंत कहां होगा। उसके बाद छोड़ ही दिया मैंने शमशान जागरण करना खि नि " " आप लें और पूरी क्षमता के साथ लें यह आवश्यक है। " और गुरू रक्त स्थापन क्रिया एक ऐसी क्रिया है, एक ऐसा चिंतन है, एक ऐसी साधना है जिसके द्वारा शिष्य अपने भीतर का सब मल, मैल, ओछापन, न्यूनता समाप्त करता हुआ पूर्णता की ओर अग्रसर हो सकता है और अगर वह इस तेजस्वी क्रिया को " " " गुरू तो हर क्षण आपके साथ है अगर आपकी श्रद्धा है त वह तो हर क्षण आपको सही मार्ग पर गतिशील करने को तत्पर है और मैं आपको हृदय से आशीर्वाद देता हूँ कि मैं प्रतिक्षण आपके साथ हूँ हर सेकेण्ड आपके साथ हूँ, जीवन के प्रत्येक क्षण का मैं रखवाला हूँ, मैं आपके जीवन की रक्षा करूंगा, उन्नति कका औ आप भी जीवन में उच्चता प्राप्त क पाये सफलता प्राप्त क पाये ऐसा ही आपको आपको आशीआशीआशीाद देता हूँ, कल्याण क कककता हूँ हूँ।। ।ा हूँ हूँ हूँsal कलामन क क क क हूँ हूँ हूँ देता हूँ हूँsal यामन कका हूँ हूँ। देता हूँ कलsprechend क कका हूँ हूँ। देत देत हूँsprechend हूँ क क क क क हूँ हूँ हूँ। देत देता हूँ कल्याण क कका हूँ हूँ।। देता हूँ हूँ कलsprechend क क क क क क हूँ हूँ हूँ हूँ देता हूँ कलsprechungswissen
परम् पूज्य सद्गुरूदेव
Herr Kailash Shrimali
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