" भातवतव्ष की सांस्कृतिक पप्पपाओं में चाहे वैदिक निष्ठा वाले हों अथव जैन-बौद्ध की तमाम पपsal मsehisches केβ वपellt वा वellt " मानव-जीवन की सार्थकता राग-द्वेष, कामना के समस्त द्वन्द्वों को समाप्त क शाश्वत शांति की प्राति में मानी ज है।।।।।। श श श श श श की की प Entwickelt "
आत्मा की मोक्षावस्था के लिये उसके कक्माशय को दग्ध कका होता है।। " इस प्रकार चित्त अशुद्ध होता रहता है। " " " .
" " " " " " जैसे-जैसे ध्यान की प्गाढ़ावस्था प्राप्त होती है मनुष्य के चच्र का उदाीकीक होता जाता है। वह विनम्र बनता है, सsprechung उसके अन्तः प्रान्तर में सदाचार के बीज अंकुरिज अंकुरित हिह
वैदिक परम्परा में ध्यान, योग-दर्शन का तत्ह मानय ाना ाना " " ऐसी स्थिति को प्राप्त कका गहन आध्यात्मिक साधना की प्तिश्ुति है।।। साधना के क्षणों में सsal अन्ततः वह ब्रह्मस्वरूप में स्थित हो जाता है।
योग-शास्त्रें में सिद्धान्ततः यह माना गया है, कि स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मन रहता है और स्वस्थ मनुष्य ही साधना के लिये उपयुक्त होता है। " " "
श्वेताश्वेत) वह हलका, विकार वासनाओं से अनासक्त औऔ प्काशवान हो जाता है।।। " ऐसा इसलिये होता है, क्योंकि ध्यान के क्षणों में्य आत्मा या शक्ति के विशुद्ध स्वव का चिन्तन ककता है।। इस तरह उसका जीवन पापों से शुद्ध होता जाता है।
" बहिरंग और अंतरंग इसके दो पक्ष हैं। " समाधि, सम्पूर्ण साधना की परिणति है। इस अवस्था को प्राप्त मनुष्य ईश्व के तुल्य हो जाता है तथा समस्त सिद्धियां उसके नतमस नतमस्तक होती हैं।।।।।।। सिद्धियां जैन धर्म-दर्शन का सार आत्म-तत्व चिन्तन में है। इस चिंतन में ध्यान एक महत्वपूर्ण आयाम है। " जैन-धध्म में यह माना गया है कि बिना कक्माशय के नष्ट हुये आत्मा के missbraucht इसके लिये ध्यान प्रधान साधन है।
बौद्ध-दर्शन में भी ध्यान का महत्व स्थापित कियय गयय गया इस प्रक्रिया से चित्त-शुद्ध होता है। " " समाधि, कुशल चित्त की एकाग्रता कही गई है। इसका प्रारम्भिक सोपान शील में प्रतिष्ठित है। " " " "
" " यह प्रकाश-वृत्त शनैः शनैः प्रखरतर होता जाता है। " षड्चक्रों का स्वरूप भी भासित होता है। " सर्पाकृति में कुण्डलिनी का बोध होने लगता है। स्वयंभू शिवलिंग भी साफ-साफ दिखाई देने लगता है। यह सब अनुभव ब्रह्मरन्ध्र के खुल जाने से होता हैे तब सूक्ष्म शरीर के प्रत्यागमन का भी बोध होता हैी " ऐसी विलक्षण होती है ध्यान की शक्ति।
liebe deine Mutter
Shobha Shrimali
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