अर्थात् गृहस्थ के बाद वानप्रस्थ ग्रहण करना चिहे इससे समस्त मनोविका nächsten " किन्तु मनु स्मृति ने इस संबंध में बहुत उचित व्यवस्था दी
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" " पपिवार के प्ति अपने कक्तव्यों को्यक्ति अधिकांशतः पूपू्ण कक लेता है है।। अतः तब उसे लोभ, मोह आदि को त्यागने का उपाय करना चययया .
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" " " " वानप्रस्थी को सर्वप्रथम स्नानादि के पश्चात् पीले वस्त्र धारण करने चाहिये इसके बाद संस्कार के स्थल पर आसन ग्रहण के समय पुष्प अक्षत से मंगलाचरण बोला जाता है। वानप्स्थी को संस्कार के महत्त्व व उसके दायित्वों के बाे में उपदेश दिया जाता है।।। " वानप्रस्थी हाथ में पुष्प अक्षत एवं जल लेकर वानप्रस्थ व्रत ग्रहण करने की सार्वजनिक घोषणा करते हुये संकल्प लेता है कि उसका जीवन अब उसका अपना या परिवार का न होकर समस्त समाज का है, अब वह स्वयं या पारिवारिक लाभ के लिये नहीं बल्कि विश्वकल्याण के लिये अपने दायित्वों का निर्वाह करेगा।
Zu diesem Zeitpunkt wird der folgende Beschluss gefasst.
इसके पश्चात् वानप्रस्थी अपना ज्ञान व समय उच्च आदर्शो के अनुरूप जीवन ढ़ालने, समाज में निरंतर सद्ज्ञान, सद्भाव एवं लोकोपकारी रचनात्मक सत्प्रवृत्तियां बढ़ाने तथा कुप्रचलनों, मूढ़ मान्यताओं आदि के निवारण हेतु कार्यो में व्यतीत करते है। "
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