" विश्वामित्र ने तो यहां तक कहा है- " "
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भगवती मातंगी की मंत्र दीक्षा से गृहस्थ सुख प प्र्ति होती है।।।।।। प missbraucht " साधक को कुटुम्ब सुख, पुत्र, पुत्ियों, पत्नी, स्वास्थ्य, पूपू्णायु आदि कुछ प्राप्त होता है है उसक गृहसsprechend जीवन पूान होता जा सकता सकत सकत है है गृहसsprechend
यह दीक्षा वस्तुतः रस एवं सौन्दर्य की दीक्षा ह ै, इसको सम्पन्न करने से व्यक्ति के अन्दर गजब का स म्मोहन एवं सौन्दर्य व्याप्त हो जाता है, जिसके प हुये बिना नहीं रह पात े।
मातंगी दीक्षा से साधक के जीवन में ऐशlteilen "
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" इस दीक्षा के बाद जीवन में उमंग और उल्लास का वातावरण सदैव बना रहता है।
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इस दीक्षा के प्भाव से साधक में अदम्य उत्साह तथा सब कुछ क गुज गुज गुज की्षमता स्वतः ही आ जाती है।।। क्षमता स्वतः व्यक्ति के अनाद भय तत्व को समाप्त कक की यह श्ेष्ठ दीक्षा है।।।। "
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इस दीक्षा को मातंगी जयंती या किसी भी सोमवार को प्राम्भ किया जा सकता है है।। " तत्पश्चात् दक्षिणाभिमुख होकर बैठ जायें। " यंत्र का कुंकुम अक्षत से पूजन करें तथा धूप-दीपक क इसके पश्चात् दोनों हाथ जोड़कजोड़क भगवती मातंगी का ध्यान कρें-
" " , अंशक, कमल है, जिनसे शत शत्ुओं का नाश क साधक को अभीष्ट फल देती है है ऐसी आनन्ददात्ी भगवती मातंगी को मैं नमस्कार क क हूँ।।।।।। को मैं नमस्कार हूँ हूँ।।।. "
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