गणेश उपनिषद् का यह एक महत्वपूर्ण श्लोक है। सभी साधकों के लिए इस श्लोक में प पiment "
प्श्न है- " "
यह. यह प्श्न उठना स्वाभाविक ही कि हम इतने द द द द द द द द द द द हम इतने प पपान क्यों हैं? "
" वे सब यहां आते तो बहुत अच अच्छे कपड़े.
24 घण्टे वे काम में लगे हते हते हैं, चाहे पति हो चाहे पत्नी हो, चाहे बेटा हो य बेटी बेटी हो स स स।। दिनों में वे एक दूस से मिल ही प प प प प प।।। दिनों में वे एक दूस से ही प प प प प प प प पiesen यहां जो पािवािक वाताव आपको मिलता है, उनको नहीं मिलता। " मैंने देखा है उनको तनाव में, दुःख में। जितना दुःख उनको है, आपको नहीं। वहीं पर आत्महत्या की दर 22 प्रतिशत हैं। हमारे यहां केवल 6 प्रतिशत है। ऐसा क्यों हो रहा है? इसलिये कि उनके. आपके जीवन में जितना धन है, उतना ही वहां है। यह केवल आपकी कल्पना है, कि वे वहां पर सुखी हैं। " वे आपसे ज्यादा परेशान, दुःखी और संतप्त हैं। " " हमारी केवल कल्पना है कि वे सुखी हैं। " "
समाधान तभी होगा जब आस्था हो, विश्वास हो। " भी कुछ ही समय में। " "
" बटन दबाते ही लाइट होनी चाहिये तो वह लाइट सही है। मंत्र को करते ही आपको लाभ होना ही चाहिये। " मगर आवश्यकता इस बात की है कि ट्यूब लाइट सही होनी होनी होनी " यदि. " "
" मेरे कहने के बावजूद भी विश्वास नहीं रहेगा। मैं कहता हूं, तुम्हें मंत्र जप कका है, तुम्हें सफलता मिलेगी तो अनमने मन से।। " ऊपर से आप मुझे गुरू भले ही कहेंगे, मगर मन में जो अटैचमैंट बनना चाहिये वह नहीं बन पाता और अटैचमैंट नहीं बन पाता तो मैं ज्योंही अपनी तपस्या का अंश, साधना और सिद्धि देना चाहूंगा, नहीं दे पाऊंगा और आप नहीं ले पाएंगे।
लेने और देने में, दोनों में एक समरूपता होनी चाहेिे " " "
भोजन मैं. " ताकत मिलने के लिए जरूरी है कि इंतजार करें कि खून े इधर आपने खाना खाया और उधर खून बन जाये, यह संभव नही एक मिनट में खून नहीं बन सकता। दो दिन तक आपको वेट करना ही पड़ेगा।
" मंत्र की स्थिति यही है। " मंत्र दिया है, तो चेतना बनेगी ही बनेगी। यह हो ही नहीं सकता कि मंत मंत्र दूं औ आपको सफलता नहीं मिले।। यह हो सकता है कि आपसे मिल मिल पाऊं, हो सकता है केवल केवल एक मिनट मिलें।। इससे आपके विश्वास में अन्तर नहीं आना चाहिये। जिसको एक बार शिष्य कहा, वह मेरा शिष्य है ही। मगर आवश्यकता इस बात की है कि शिष्य बुलाये और गु रि " संसार में सभी लोगों के जीवन में तनाव है। " —और श्लोक में यही बताया गया है कि पीड़ा है, बाधा है, अड़चन है, कठिनाइयां हैं तो सबसे पहले उस रास्ते पर चलना है, जहां एक दूसरे पर विश्वास बने। " तनाव में जीवन कट जायेगा, पूरे बीस साल कट जाएंगे। "
" दीक्षा के बाद, केवल यह नहीं है कि मंत्र आपको दे यि ऐसी दीक्षा मैं आपको देना भी नहीं चाहता औ ऐसी दीक्षा से लाभ भी है है।। " मैं चाहता हूं कि मैं दूं और आप पूरी तरह से ग्रहर इ ककक कण " "
—और ऐसा होगा, तो जो मैंने मंत्र दिया है, वह भी साथोक " हरिद्वार में तो कम से कम डेढ़ लाख लोग रहते हैं। " उनकी आस्था ही नहीं है हरिद्वार में। उनको गंगा में आस्था है ही नहीं। " ऐसा क्यों है? " " "
" यह तो आत्म विश्वास की बात है, आत्मचिन्तन की बात हह " " —और जब मैं दीक्षा देता हूं आपको, तो उस दीक्षा के माध्यम से उतनी ही चेतना पैदा होनी चाहिये, मंत्र को धारण करने की शक्ति पैदा होनी चाहिये। "
गुगु ने अग दिया है मंत्र, तो लाभ होगा ही उससे गु गु गु ने अग उपाय किया है ठीक होग ही ही दीक्षा दी आपके पूपू शशश नेsal को गsprechend किया किया किया कियाहण किया किया किया किया किया ।ा ।कियशश मंत मंतsprechend आप केवल कान से मंत्र ग्रहण करते हैं। " और वह कान बन जाता है दीक्षा के माध्यम से। "
" " " । —जरूर उन मंत्रें में और तंत्र में एक ताकत थी जो विश्वामित्र ने राम को दी, इस प्रकार अद्भुत शक्तियां प्रदान की, जिनके माध्यम से वे अपने जीवन में सफलता प्राप्त कर सके। " इस प्कार का अद्भुत तेजस्वी व्यक्तित्व पृथ्वी प कोई कोई नहीं है।।।।।। पृथ पृथ्वी
" इसलिए कि ये. "
" शास्त्र में, राज्य में, वैभव में और सम्मान में। तब विश्वामित्र एक पंक्ति में उत्त देते हैं कि दश दश दश योगीय योगीय मेव भवता वव्यं दीक्षां वदेम्यं भवतां ववव व वव व व।।।। दीक्षां वदेम्यं
" केवल मुझे ही गुरू मानें तो। इतना की मुझसे सम्बन्ध जुड़ जाये इनका। " " मुझे पू~ ूप ूप से स्वीका größer "
" " " यदि.
दो स्थितियां बनती हैं जीवन में। एक श्रद्धा होती है, एक बुद्धि होती है। " जो बुद्धि के माध्यम से प्र्त कक हैं जीवन को को वे जीवन में सुख प्र्त नहीं सकते सकते सकते आनन्द प्र्त नहीं क सकते सकते।।।।।। आनन missstreut वे हर समय तनाव में रहते हैं। " " " " वह पति अपनी पत्नी को सुख नहीं दे सकता।
" " " अगअग मेमे प्ति श्द्धा नहीं तो कोई लाभ नहीं दे पाऊंगा आपको।।।।। ल लाभ " " " ठीक कर लें,— तो ऐसा गुरूजी नहीं कर सकते। दो मिनट में भी.
" " " इस लड़की पर एकदम से कितना विश्वास हो जाता है! यह विश्वास हो जाता है कि यह लड़की मुझे धोखा नहथे दे दे यह मुझसे जुड़ी रहेगी। " " इसलिये विश्वास आपके अन्दद आवश्यक है। तो विश्वास कैसे बने? विश्वास तो करना ही पड़ेगा।
" " " अगअग 19 साल हिमालय में ह सकता हूं मैं आपको भी बता सकता हूं कि मंत मंत्र सही है।।।।। सकता सकत सकत सकत सकत।।। बत सकता सकता हूं हूं सही है।।।।। सकता सकत सकत मंत है।।।।। सकत सकता सकत हूं मंत है।।।।।। सकत सकत सकत।।।।।।। सकता सकत कि मंत सही है।।।। सकता सकत सकत मंत मंत सही है।।।। सकता ह सकत मंत मंत मंत है।।। सकता सकता हूं यह मंत सही है। बत सकता सकता हूं सकत है। मैं कोई बिना पढ़ा लिखा मनुष्य नहीं हूं। मैंने भी पढ़ाई, लिखाई की है। एम-ए- किया है, पी-एच-डी- " मैंने अपना ही उदाहरण लिया।
यह एक बीज था, छोटा सा बीज एक बीज की कोई हिमोमत नह ीह " " बड का पेड़ बन जाता है औ उसके उसके 5 सौ व्यक्ति बैठ सकते हैं हैं।।।। उस बीज में इतनी ताकत थी, कि एक पेड़ बन जाये। " " मैं बीज से पेड़ बना, तो आप भी बन सकते हैं।
" " " मैं हिला ही नहीं, विचलित नहीं हुआ, डगमगाया नहीं। " आज से पच्चीस तीस साल पहले, दस हजार की बहुत कीमत ऀी मगर मैंने ठोकर मारी उसको कि यह जिन्दगी नहऀं हक ससी ऐसे प्रोफेसर तो पूरे भारत में एक लाख होंगे। इससे जिन्दगी पार नहीं हो सकती। मुझे कुछ हट कर करना पड़ेगा या तो मिट जाऊंगा या कग कर
यदि मैं ऐसा बन सकता हूं, तो तुम्हें सलाह देने का हक खत खता हूं।। " " " यदि गु गु मुझे कह कि सब छोड़ क क चले तो मैं पत्नी से मिलूंगा ही नहीं।। सीधा यहीं से रवाना हो जाऊंगा, क्योंकि मेरी आस् था
मैंने जिस समय संन्यास लिया, उस समय शादी हुये बस 5 महीने हुए थे।।।।। पांच महीनों में मैं छोड़ कर चला गया। पत्नी की क्या हालत हुई होगी, आप कल्पना कर सकते होा मगर मैंने कहा, ऐसे तो जिन्दगी नहीं चलेगी। " हिमालय में जाऊंगा तो या तो समाप्त हो जाऊंगा या कुछ्राप्त का।।।।। ।ा।
आप, पंडित, पु पु औ ब्राह्मण_ पोथी पढ़क पढ़क उपदेश देते हैं।।।।।।।।।।। मैंने. पोथियों में सही लिखा है या गलत लिखा है, वह अलग ब ाई हो सकता है उनमें गलत भी लिखा हो, हो सकता है सही खी भी मगर मैं देखना चाहता था छानकर, कि यह सब क्या है? मैं केवल सत्य तुम्हारे सामने रखना चाहता हूँ,, क्योंकि तुम मेरे शिष्य हो और मैं तुम्हें शिष्य बना रहा हूँ और दीक्षा दे रहा हूँ और दीक्षा देने के बाद भी मेरा अधिकार समाप्त नहीं हो जाता कि दीक्षा दी और आप अपने घर, मैं अपने घर । तुम्हारी डयूटी है कि तुम मुझसे जुड़ोगे। " " " "
ऐसा नहीं है कि आपके प्रति अश्रद्धा है। " " आप. " यों लॉटरी लगती, तो ये बिरला और 25 फैक्टरी खोल लेतेी " यह तुमsprechung ऐसा संभव नहीं होता। तुम आये, तुमने गुरू जी के पांव दबाए और कहा, गुरू!जी! मेरी लड़की की शादी नहीं हो रही है।
अब मैं तो यही कहूंगा कि हो जाएगी, चिंता मत कर। मगर इसके बाद अनुभव करना होगा कि मैंने दिया क्या हाा प्रश्न पैसे का नहीं है। " आप में धैर्य है ही नहीं और फिर तुम आलोचना करो! आलोचना करने से जीवन में पूर्णता नहीं प्राप्त ऀो ऀो ऀो आलोचना तो कोई भी, किसी की भी कर सकता है। " ये ही आपके गुण भी.
" जीवन में मैं तलवार की धार पर चला हूं और आगे भྀ चलू न मैं कभी झुका हूं और न कभी झुक सकता हूं। " क्यों झुकें? " " संससंस में तुम्हार कोई कुछ बिगाड़ ही सकत सकता, तुम्हें ड ही नहीं किसी का।
मैं तुम्हें दीक्षा देता हूं तो इसका अाथ यह कि तुम तुम्हारा मेा सम्बन्ध समाप्त हो गया। " कायरता से और आलोचना से जिन्दगी नहीं जी जाती। " आप एक बार मुझे परख करके देखें, टैस्ट तो करके देखेेेख! " "
मगर तुम्हें विश्वास बनाना पड़ेगा, श्रद्धा रखनी रखनी रखनी " विश्वास टूटने से काम नहीं चल सकता। " "
ऐसा नहीं हो सकता। " " " " एक अटूट विश्वास था। " मैं अगअग किताब दे दूं एम-ए- पहले. अब साधना में तुम क क्लास में औ औ वह साधना एम-ए- Tag 16 साल मेहनत करनी पड़ेगी, तब समझोगे।
पहली क्लास का बच्चा ए, बी, सी, डी प्ढ़ लेगा किन्तु उससे मिल्टन की किताब तो पढ़ी पढ़ी जायेगी। अगअग 16 साल मेहनत क क से साधना सिद्ध होती है एक दिन में में कहां से हो जायेगी? तुम कहोगे, लक्ष्मी ने आक घुंघ घुंघ घुंघ बज बजाये ही नहीं पांच दिन गये गये लक्ष्मी आई नहीं नहीं।।। oder? " " मेरे कहने का तात्पर्य है कि धैर्य चाहिये। " कभी तो सफलता मिलेगी ही, क्योंकि मंत्र सही है। "
—पर एक विश्वास कायम रखना पड़ेगा और जीवन में इन मंत्रें से वह सब कुछ प्राप्त होता ही है, जो कुछ मैं कहता हूँ कि लक्ष्मी साधना के माध्यम से धन मिलेगा, कर्जा कटेगा, ऐसा होता ही है, बस तुम में धैर्य कम है। " ऐसा नहीं है। " " " वे तुम्हें गलत गाइड करते हैं। तुम तो सही हो, पर वे कहते हैं- और तुम गए थे, क्या हुआ?
तुम कहोगे- लक्ष्मी का मंत्र लाया। " हम तो पहले कह. तुम्हारा विश्वास खत्म हो जायेगा। " चलो जाने दो जाने दो, कुछ नहीं। अब उस पति के माइंड में घूमता रहेगा। वह पूछेगा पत्नी से, कहां गई थी औ वह कहेगी कहीं नहीं गई थी।।। बस वो कितना ही समझाये पति के दिमाग से कीड़ा निकलेगा ही नहीं।। वो कहीं भी जायेगी, वह पीछे-पीछे जायेगा। बस पूरा जीवन उनका तबाह हो जायेगा। बस किसी ने कह दिया इस मंत्र से क्या होगा? और तुम्हारा माइंड खराब हो गया। " " " "
तुम्हारे अपने अन्दर ताकत है तो तुम सफलता पाओगेे मेरे साथ भी यही घटना घटी। ? क्या फायदा है? सब ने सलाह दी-
मैंने कहा, कोई बात नहीं, मूर्ख हूं तो मूर्ख ही सही " पर पांव तुम्हारा मजबूत रहेगा तो तुम सफलता पाओगेेफलता " " आप अपनी पैंट. यह रास्ता सीधा है, इसमें खतरा कम है। —और मैं जो रास्ता बता रहा हूँ, उसमें खतरा बहुत है। " तुम्हारे जैसे लोग और नहीं होंगे। तुम अद्वितीय बनोगे। " " " " और ऐसा ही दशरथ ने किया। " तुम्हारे मेरे बीच वचनबद्धता है। गारंटी के साथ बनाऊंगा, यह मेरा विश्वास है।
" राजा के में हने हने वाला राजकुमा größer "
" " " अद्वितीय आप भी बन सकते हैं मगर पैसों के माध्यम सह पैसों के माध्यम से भगवान! ऐसे भगवान नहीं बन सकते। भगवान बनने का रास्ता है तुम्हारी नैतिकता, तुम्हारी चैतन्यता, तुम्हारे मंत्र, तुम्हारे ज्ञान, तुम्हारी चेतना और देवताओं को अपने साथ लेने की क्षमता। " चाहे आप हों या मैं हूं, चाहे साधु हों या संन्यासी या संन्यासी या कुछ लोग ऐसे होते जो घिसी- 60 Jahre alt लोग हैं। " आप जिस भी क्षेत्र में जायें उच्च कोटि के बनें। साधक बनें तो ऐसा साधक बनें कि पूरा भारत आपको यकद यकद "
हमारे जीवन का सार एक आधार भोग है, एक मोक्ष है। " , भगवा कपड़े पहनने कोई कोई साधु नहीं होता, लंबीा बढ़ाने से कोई साधु नहीं होता। " "
जो खुद ही हाथ जोड़क कहे- उन लोगों में है ही नहीं । " " उसकी बोली में क्षमता होनी चाहिये। "
" जो सभी बंधनों से मुक्त हो, वह मोक्ष है। औ औ आपके में में कोई बंधन है।। लड़की की शादी करनी है, बीमारी से छुटकारा पाना हैी घर में कलह है- ये सब बंधन है। उन बंधनों से मुक्त होना ही मोक्ष कहलाता है। मोक्ष का मतलब यह नहीं, कि मरने के बाद जन्म ले हह नह " हम क्यों कहें कि हम वापस जीवन नहीं चाहते। " मोक्ष का अर्थ यह नहीं कि पुनर्जन्म हो ही नहीं। " " " " . इसलिये उनके प्रति सम्मान कम हो गया है।
या तो एक रास्ता है मोक्ष का और दूसरा रास्गा है भ ोक " यदि ऐसा नहीं क सकते तो फि घिस घिसा-पिट जीवन जीने का मतलब ही नहीं है है।। आपके मन में कभी चेतना पैदा नहीं होती कि कुछ अद्वितीय कβ! " " एक तोता है, पिंजरे में बंद है। " " " वह जो उसे आजादी है, वह उस तोते को नहीं सकती जो च च च पिंज पिंज पिंज में बंद है।। " " " "
- तुम भी दो मिनट निक निकाल कक गु के प प आते हो औ फि फि व वापस अपने घ में घुस जाते हो। गुरूजी ने जो कहा उसमें खतरा है, मंत्र जप सब गड़़ैड वापस अपने पिंजरे में घुसे- पत्नी भी खुश, आप भी खुश " पत्नी कहती है, तुम्हें क्या तकलीफ है? " तुमने कभी आकाश को नापने की हिम्मत नहीं की इसलिये वह आनन आनन्द नहीं उठा सकते। उसके लिये तो तुम्हें चैलेंज उठाना पड़ेगा मीवन तू " मैं ऐसा नहीं कह रहा कि तुम गृहस्थ से अलग हट जाओ। गृहस्थ में रहो, मगर संन्यासी की तरह रहो। " मैं देख रहा हूं और मुझे तटस्थ रहना है।
" मैं उन्हें संन्यासी नहीं बना सकता। " " बिना लक्ष्मी के गृहस्थी नहीं चल सकती। यदि तुमsprechung उसके लिए भी जरूरी है, तुम पहले ऐश्वर्यवान बनो। इतना धन हो कि तुम्हें याचना करने की जरूरत न पड़ेथ इतना धन हो कि सारी समस्याओं से मोक्ष प्राप्त कर ूू " "
" " उठाना चाहिये, जिससे आप लाभ उठा सकें औऔ औ को भी ल लाभ हो सके।। आपके मन में ने एक. मिटा सकते। ? " यह संभव ही नहीं था। पिछले जीवन के सम्बन्ध ही इस जीवन में बनते हैं। " "
और मैं भी वही कहता हूं, तुम खुद ब्रह्म हो। मगर तब, जब तुम्हें अपना पूरा ज्ञान हो। " " " " औऔ साधना द्वार हम उस स्थान प पहुँच सकते हैं जहां विवि होता ही नहीं।।।।। हैं हैं जह जहां हम. . आपके जीवन में ऐसा आनन्द हो, ऐसा संतोष हो, आपके जीवन में पूर्णता हो, आप भी ध्यान लगाने कि प्रक्रिया में संलग्न हो सकें, अपने इष्ट के दर्शन कर सकें और अपने आपको पूर्ण रूपेण गुरू चरणों में समर्पित करते हुए उस ज्ञान को प्राप्त कर "
परम् पूज्य सद्गुरूदेव
Herr Kailash Shrimali
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