पप र रामकृष्ण जी का जन्म 18 फ Kar फ क कामापूक नामक गांव में एक ब ब्राह कुल हुआ हुआ थ था।। ग ग ग हुगली हुगली हुगली थ थ थ।। ग ग ग ग ग में एक एक ब ब ब्र्मण कुल हुआ था। " "
स्वामी जी बाल्यकाल से ही अत्यन्त नम्र स्वभाव के वाणी बहुत ही मधुर और मनोहारिणी थी। " " "
" " उनका मन पढ़ने में बिल्कुल नहीं लगता था। " " " निनि्तत ईश्वव उपासना ध्यान चिन्तन साधना औऔ वन्दना में ही निमग्न हने लगे।। "
" " " " " माँ ! मुझे अब दर्शन दो। दया करों, देखो जीवन का एक दिन और व्यर्थ चला गया। क्या दर्शन नहीं दोगी? अन्त में हालत इतनी बिगड़ गयी कि उन्हें पूजा त्यागनी ही पड़ी।।।।
परमहंस जी अपनी धुन में मस्त हो गये। दिन-रात उन्हें काली दर्शन का ही ध्यान रहने लगा। उन्होंने 12 वव्ष की कठिन तपस्या की, जिसमेंाना-पीना छोड़क एकटक, ध्यान में हते थे।।। "
शास्त्ों में बताया गया है कि भगवान की भक्ति नौ प्कार की जिसे नवधा भक्ति भी हैं- श श्वण, कीकी्तन, स्ण प प सख अ अ अ अ अ अ अ अ अ अ अ अ अ अ अ अ अ अ अ अ अ अ अ अ अ अ अ अ अ अ अ अ अ अ अ अ अ अ अ अ अ अ अ अ अ अ अ अ अ अ अ अ अ अ अ अ अ अ अ अ अ अ अ अ अ अ अ अ अ अ अ अ अ अ अ अ अ अ अ अ अ अ अ अ अ अ अ अ अ अ अ अ अ अ अ अika " यही नहीं उन उन्होंने सिख स स्वीकार कक उसमें पूपू्ण सफलता प्राप्ति कीं।।। तीन-चार दिन एक मुसलमान के साथ हक मुहम्मदीय पंथ का भी निचोड़ देखा। ईसा मसीह के चित्र को देखक देखक कुछ कुछ के लिये आत्म-विस्मृत हो गये।।।। कई दिन तक ध्यान करते रहें।
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Mit dieser Entschlossenheit begab er sich auf eine Pilgerreise und machte einmal, nachdem er ganz Indien durchstreift hatte, Halt in Dakshineswar und zwang Mahakali durch die Verehrung von Maa Adya Shakti Mahakali zu einem direkten Darshan in Form eines Zeugen.
" उनका कहना था, 'ब्ह्म, काल-निमित-निमित्त आदि से कभी मम्यादित नहीं हुआ न हो सकता है।।। " " " हजारो लहरे उठ रहीं हैं कैसा गर्जन हो रहा है इत्दययि इसी तरह ब्रह्म को समझो। यदि आत्मज्ञान प्राप्त कक की इच्छा खते हो हो पहले अहंक अहंकार भाव को दू कक क।।। अहंक अहंकार भाव " "
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" धीरे-धीरे रोग कलिष्ट हो गया। " " एक दिन अपने एक भक्त से पूछा, ''आज श्रावणी पूर्णिमै ? तिथि पत्र में देखों।'' भक्त देख कर कहाँ, ''हाँ''। बस स्वामी जी समाधि मग्न हो औ औ प्तिपदा को प्रातःकाल इह लीला समाप्त क दी दी।।।। लील लीला समाप्त घर-घर यह दुःखद समाचार फैल गया। बात ही बात में सहस्त्रों नर-नारी एकत्रित हो गए। पंचतत्त्वमय शरीर पंचतत्त्व में विलीन हो गया।
स्वामी जी सदैव शान्त व प्रसन्नमय रहते थे। उन्हें उदास या क्रोध करते हुए तो कभी भी देखा हय नय उनमें अद्धभूत आकर्षण शक्ति थी। अनुयायी उनके उपदेशों से पूर्ण प्रभावित जाते हो . "
जगत प्सिद्ध स्वामी विवेकानंद रामकृष्ण प प जी के ही प्धान शिष्य थे।।।। के ही प्धान आरंभ में वे रामकृष्ण परमहंस से बहुत तर्क-विर्तक किया करते थे, किन्तु धीरे-धीरे गुरू की संगति में उन्हें आध्यात्मिक सत्यों की स्पष्ट अनुभूति होने लगीं साथ-ही-साथ श्री रामकृष्ण परमहंस के प्रति उनकी श्रद्धा और गुरू-भक्ति भी बढ़ती चली गई । "
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