निश्चित ही बीजों के साथ की गई मेहनत की फसळ "
" हम वही पाते हैं जो हम अपने को निर्मित करते हैं। हम वही पाते हैं जिसकी हम तैयारी करते हैं। हम वहीं पहुंचते हैं जहां की हम यात्रा करते हैं। हम वहां नहीं पहुंचते जहां की हमने यात्रा ही न की ो " मैं नदी की तरफ़ नहीं जा रहा हूं। " सोचने से नहीं पहुंचता है आदमी। किन रास्तों पर चलना है उनसे पहुंचता है। मंजिलें मन में तय नहीं होती, रास्ते पर तय होती है
" आपके सपनों से फल नहीं निकलते! फल आपके बोये बीजों से निकलते हैं। इसीलिए आखि में जब नीम के कड़वे फल ह ह ह आते हैं तो श श आप होते होते हैं हैं पछत पछत पछत के फल कड़वे कैसे आये आये आये आये आये आये आये आये आये आये आये आये आये आये आये? ध्यान रहे, फल ही कसौटी है, परीक्षा है बीज की। फल ही बताता है कि बीज आपने कैसे बोये थे। आपने कल्पना क्या की थी उससे बीजों को कोई प्योजन नहीं है।।।।।।। बीजों को प पseites हम सभी आनंद लेना चाहते हैं जीवन में लेकिन आता कहां है आनंद! हम सभी शांति चाहते हैं जीवन में में लेकिन मिलती कहां है शांति! " " हम चाहते कुछ हैं, बोते कुछ हैं। हम बोते जहर है और चाहते अमृत हैं। इसलिये जब फल आते. हम सब अपने जीवन को देखें तो ख्याल में आ सकता है। " रोज दुःख घना होता चला जाता है। रोज रात कटती नहीं और बड़ी होती चली जाती है। " " उस खुशी में जिस खुशी की हम तलाश में है। क्योंकि कहीं न कहीं हम हम ही- क्योंकि औ कोई नहीं है कुछ गलत बो लेते हैं।। उस गलत बोने में ही हम अपने शत्रु सिद्ध होते हैं।
जो हम बोयेंगे वही हमको मिलेगा। " थोड़ा समय अवश्य लगता है। ध्वनि टकराती है बाहर की दिशाओं से, और लौट आती है। "
बुद्ध का एक शिष्य रास्ते से गुजर रहा था। उसके साथ दस-पंद्रह सन्यासी थे। " " तब उससे पूछते हैं कि आप क्या कर रहे थे? " शिष्य ने कहा, बस यह एक मेरा विष का बीज बाकी रह, गया किसी को कभी पत्थर मारा था, आज उससे छुटकारा हो गयाा "
" " " पत्थर को दी हुई गाली भी बीज बनेगी। सवाल यह नहीं है कि किसको गाली दी। सवाल यह है कि आपने गाली दी, वह वापस लौटेगी।
" उसी रास्ते से एक ऋषि निकल रहे थे । वह आदमी अपने बैलों को बेहूदी गालियां दे रहा था। बड़े आंतरिक संबंध बना रहा है गालियों से। ऋषि उसे रोकते हैं, पागल, तू यह क्या कर रहा है? " वह आदमी ठीक कहता है। हमारा गणित बिल्कुल ऐसा ही है। " इसलिये अपने से कमजोर को देख कर सब गाली देते है हम बेवजह गाली देते हैं, जब कोई जरूरत भी न हो। कमजोर दिखा कि हमारा दिल मचलता है कि थोड़ा इसका इसक। ति ति
" लेकिन वे गाली नहीं लौटा सकते, लेकिन गाली तो लौटेेी तू महंगे सौदे में पडे़गा। यह गाली देना छोड़! " उसने उनके पै छुये औ कह कहा कि कसम कसम लेता हूं, इन को को गाली नहीं दूंगा।
ऋषि दूसरे गांव चले गये। दो-चा nächsten रुकावट होती है समझ से! दो-चार दिन में प्रभाव क्षीण हुआ। वह आदमी अपनी जगह वापस लौट आया। उसने कहा, छोड़ो भी, ऐसे तो हम मुसीबत में पड़ जायें बैलगाड़ी से आना मुश्किल हो गया। हिसाब बैलगाड़ी चलाने का रखें कि गाली न देने कख ूरे बैलों को जोते की अपने को जोते। बैलों को सम्भालें कि खुद को संभाले यह तो एक मुसी
गाली उसने वापस देनी शुरू कर दी। चार दिन जितनी रोकी थी उतनी एक दिन में निकाल ली। रफ़ा-दफ़ा हुआ, मामला हल्का हुआ, उसका मन शांत हुआ। कोई तीन- चार महीने बाद ऋषि उस गांव में वापस निकल वापस निकल र उनको पता भी नहीं था कि वह आदमी फिर मिल जायेमल जायेमा इइथससि वह धुआंधार गालियां दे रहा है बैलों को। ऋषि ने खड़े होकर कहा, यह क्या है मेरे भाई? उसने देखा ऋषि को और जल्दी ही बात बदली। " अब मेरे प्यारे बेटो, जरा तेजी से चलो!
" ऋषि ने कहा, हो सकता है मैं दुबारा इस गांव फिर कनी आनी " लेकिन किसलिये याद दिला रहा था? "
" प्राथमिक रूप से हम अपने ही साथ कर रहे हैं। क्योंकि अंतिम फल हमें भोगने हैं। वह जो भी हम बो रहे हैं, उसकी फसल हमें काटनी है। इंच-इंच का हिसाब है। इस जगह में कुछ भी बेहिसाब नहीं जाता है। हम अपने शत्रु हो जोते हैं। "
" " पहला पाप अपने साथ शत्रुता है, फिर उसका फैलाव हो तह
" फिर जहर फैलता चला जाता है, हमें पता भी नहीं चलता। जैसे कि झील में पत्थर फ़ेंक दे! " लहरें चलती जाती हैं अनंत तक। ऐसे. " आप कहेंगे, कितना अहित हो सकता है एक गाली से? " आपने उठाईं वे लहरें। आपने ही बोया वह बीज। अब वह चल पड़ा। अब वह दूर-दूर तक फैल जायेगा। एक छोटी सी दी हुई गाली से क्या-क्या हो सकता है। " लेकिन इस जगह में कोई भी घटना निष्परिणामी नहीं है उसके परिणाम होंगे ही। " "
अभी. " दोनों हिस्से आपके भीतर हैं। " आपका गलत हिस्सा नीचे दब जाता है, आपका श्ेष्ठ हिस्सा ऊपऊप आ जाता है।।। "
" " " " एक भिक्षु ने पूछा, इससे क्या फ़ायदा? बुद्ध ने कहा, इसके दो फ़ायदे हैं। पहला तो यह कि तुम्हें गाली देने का अवसर न मिलेगार तुम्हें बुरा ख्याल करने का अवसर न मिलेगा। " वह भी तुम्हारे लिये मंगल की कामना करता है।
" उस आदमी को देख कर हमने प्रभु का स्मरण किया। " उन्होंने उस आदमी को देख कर प्रभु का स्मरण किया। " उसके भीतर भी कुछ ऊपर आयेगा।
जीवन बहुत छोटी-छोटी घटनाओं से निर्मित होता है। " " " " " " वे भी हो जाते हैं।
" भरा हो वह अपने लिये अमंगल से कैसे भर सकता है? " " जो अपना मित्र हो गया वह धार्मिक हो गया। अब वह ऐसा कोई भी काम नहीं क सकता जिससे स्वयं को दुःख मिले।।। " दिन में हम हजार काम कर रहे जिनसे हम दुःख पाते हजार बार पा चुके हैं। " वही बात जो आपको हजार बा nächsten वही सब दोहराए चले जाते है यंत्र की भांति!
" " दो-चार मकान बना लेने की जीवन पद्धति को जीवन मान लिया है।।। " जब तक जीवन के. Was ist das? कौन बतायेगा कि यह जीवन व्यर्थ है? " शास्त्रों में तो इसको जीवन नहीं कहा जाता है। शास्त्रों में तो इस क्रिया को मृत्यु कहा जाता है और हम सही अर्थो में जीवित मुर्दे हैं, जो चलते तो हैं, मगर होश नहीं है, खाते-पीते तो हैं, मगर उसका, कोई अर्थ नहीं है, क्योंकि हमने कभी इन रहस्यों को, " जीवन का आनन्द तो वे लेते हैं, जो जीवन को समझते हैे " "
" दिया जाये तो उतने अथाह जल देखक वह आश आश्चच्य में पड़ जायेगा, अ Kar! मैंने तो. " " सा हिस्सा था, वह जीवन था ही नहीं।
" " " एक विवशता है, एक मजबूरी है। समाज में जिन्दा रहना तुम्हारी मजबूरी है। परिवार का पालन-पोषण करना तुम्हारी मजबूरी है। समाज सदैव तुम्हाे साथ, या पपार तुम्हाे साथ नहीं चल सकता, पार का सहयोग तुम्हें जीवन नही नही मिलग मिलगा।
" " ली।
नारद् ने कहा- अरे! तुम एक साधु को लूट रहे हो, तुम ये क्या कर रहे हो। उसने कहा- " " नाद ने कहा- क्या तुम्हार पार तुम्हार साथ देगा, क्योंकि तुम तो पाप कक हे हो हो हो।।।। क्योंकि तुम प पाप क हे हो हो।। कsprechung वाल्मीकि ने कहा- अपने परिवार के लिये कर रहा हूं। परिवार मेरा साथ देगा ही।
. " " क्या यह पाप है और क्या तुम भी मेरे पाप में भागीर ाप यह पाप तो है ही। मां ने कहा-बेटा जरूर पाप है। " " कहा भी नहीं, मैं इसमें भागीदार नहीं हो सकती।
वाल्मीकि पत्नी के पास गए, पत्नी से कहा-देख, डाकू हुं और सैकड़ों लोंगों की हत्याएं की हैं, लूटा है, खसोटा है, मारा है, औरतों के गहने छीने हैं और तुझे दिए है, तुझे पहनायें हैं, क्या छीनना, झपटना, लूटना,मारना पाप है। पत्नी ने कहा-निःसन्देह पाप है। " में भागीदार हो। पत्नी ने कहा- ।
" क्या तुम भी वाल्मीकि डाकू से कुछ कम हो? क्या तुम छीना-झपटी नहीं कर रहे? छल नहीं कर रहे? झूठ, कपट, और असत्य नहीं कर रहे? " " तुम्हें अकेले ही यह पाप भोगना पड़ेगा, तुम ही इसके जिम्मेदार हो।।।
फिर तुम कब इस चेतना को, इस जीवन को समझ सकोगे? कब तुम्हें नारद् मिलेंगे? कब तुम्हें ऋषि मिलेंगे? कब तुम्हें समझा सकेंगे? कि यह जीवन नहीं है, जो तुम कर रहे हो। जब. युक्त पाप पूर्ण कार्य बेकार है।
" नहीं कर रहे हो जो कुछ तुम प्राप्त कर रहे हो यह मकान, यह धन, ये चांदी के टुकड़े, ये कागज के चंद नोट, यह पत्नी, यह पुत्र ये तो मृत्यु के साथ पीछे खड़े रह जाएंगे, यह तुम्हारे साथ-साथ चलेंगे ही नहीं, तुमsprechung वे तुम्हारे सहयोगी नहीं है। साथ तो तुम्हाे जीवन के क कक्म चलेंगे, तुम्हाी प्राणश्चेतना चलेगी, तुम्हाी भावनायें चलेंगी।।।
" , जो तुम्हे समझा सके, कि तुम जो कुछ क हे हे वह तुम खुद क क हे हे हो उसके लिए सहयोगी नहीं है है।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।। खुद खुद खुद खुद क क क।।।।।।।। है है है है है तुम्हाे पाप का nächsten " "
ऐसा तुम्हार जीवन किस काम आयेगा, क्या प्योजन है इस जीवन क का? " " दो-चार कदम प प ही इनका सामना कका पड़ेगा, फि कोई तुम्हार साथ नहीं देगा, घघ वाले भी नहीं नहीं पतsal नहीं नहीं पुतsal भी बन बन बन ब ब पत नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं सम सम पुतsal भी बन बन बन ब ब भी नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं सम पुत पुत्र बन बन बन ब नहीं पत नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं सम पुत पुतsprechend "
किसी आंख, नाक, कान, हाथ, पैर वाले को शिष्य नहीं कहइत चलने-फिरने वाला व्यक्ति को शिष्य नहीं कहते, शिष्य तो उसे कहते है, जिसमें श्रद्धा और समर्पण है, जो इन दोनों से निर्मित होता है वह शिष्य कहलाता है और अगर शिष्य बनता है, तो उसे रास्ते का ज्ञान होता है, भान होता है , वह जीवन के रास्ते पर गतिशील हो सकता है।
" कि. ऐसे. तुम. इस यात्रा में तुम्हारे अन्दर कई प्रकार की भ्रांतियां आयेगी, क्योंकि तुमने इन भ्रांतियों को ही पाल रखा है, तुमने अपने अन्दर शक,संदेह,कपट,और व्याभिचार को पाल रखा है और वे सब तुम्हारे सामने तन कर खड़े हो जायंगे, तुम्हारे मार्ग को " तुमने अपने जीवन में छल को प्रश्रय दिया है। " क्योंकि इससे उनका स्वार्थ सिद्ध होता है।
" " वाला है, ऐश्वर्य प्रदान करने वाला है, जो सही अर्थो में पूंजी देने वाला है और उसकी खोज में जो पहला कदम आगे बढ़ा देता है, वही साधक है, शिष्य है।
" " " " निश्चय ही उस जीवन -पथ पर तेजी के साथ अग्रसर हो जा तत
" योगी, तपस्वी उसके सामने कहीं ठह नहीं नहीं पाते उसके सामने कोई औकात नहीं होती।।।।। स सामने उसके सामने यक्ष, गन्धर्व, किन्नर और देवता अपने आप में कोई मूल्य नहीं रखते, क्योंकि शिष्य एक चेतनापुंज होता है, एक दीपक होता है वह अपने आप में श्रद्धा का एक पूर्ण स्वरूप होता है, समर्पण की साकार प्रतिमा होता है, जो गुरू के जागने से पहले जागता है, गुरू के सोने के बाद सोतथा ह " " किस युक्ति से बने? जो केवल इतना ही चिन्तन करता है, वही सही अर्थो में शिष्य कहलाता है और सच्चा शिष्य सही अर्थो में बना हुआ सच्चा शिष्य ही अपने आप उस रास्ते पर खड़ा हो जाता है, जो पूर्णता का रास्ता होता है, जो पवित्रता का रास्ता होता है, जो ब्रह्म तक पहुंचने का रास्ता होता है। इसीलिए शिष्य की समानता तो देवता, यक्ष, गन्ध्व कक ही सकते सकते सकते तपस तपस्वी औ साधु तो छोटी सी सी बात है।
Seine Heiligkeit der Sadhgurudev
Herr Kailash Shrimali
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