मगर अपने व्यक्तित्व की कोई सीमा नहीं है। वह अनंत है, और उतना अनंत है कि हम एक स्थान से पूरी दुनिया को देख सकते हैं, और हम साधनाओं के द्वारा उन सिद्धियों को प्राप्त कर सकते हैं जिसके द्वारा जान सकते हैं कि जगदम्बा क्या है, लक्ष्मी क्या है, सिद्धाश्रम क्या है और ऋषि-मुनि, योगी यति सब क क्या हैं, जैसा कि गु गु कहते हैं अपने जीवन को बहुत ऊंचाई प उठा देना है किस प प्कार से ऊंचायें, क्या क क क क?? सीढि़यों पर खडे़ होने से तो ऊंचा नहीं हो पायेगाो उसके लिये कुछ छोड़ना पड़ेगा अपने काम, क्ोध, अहंकार को छोड़ना पडे़गा। " ।
शरीर को भी हम बाहर से ही जानते हैं। " बाहर से दिखाई जो पड़ता है, शरीर वही नहीं है। श? " भीतभीत से श श की वस वस्तुस्थिति दिखाई पड़ती है, जैसा शशश है है।।।।
" " जिससे छूटना हो, उसे ठीक से जान ही लेना पड़ेगा। अज्ञान में ही बंधन निर्मित होते हैं। " " सभी भिक्षु चकित हुये। " " औऔ फिफि पूछा कि यह ूम ूम ग मैं लेक आय आया था, तब कोई ग गांठ न थी अब इसमें पांच गांठें हैं मैं पूछता हूं तुमसे यह ूम ूम बदल या य वही वही है?
निश्चित ही कठिनाई हुयी होगी। क्योंकि यह कहना भी गलत है कि रूमाल बदल गया। क्योंकि रूमाल बिलकुल वही हैं। " जितना था, जैसा था, वैसा ही है रूमाल अब भी। " इतनी बदलाव जरूर हो गया है।
तो एक भिक्षु ने खड़े होकर कहा, बड़ा कठिन सवाल पूई! " हो गया है। आकार बदल गया है, आकृति बदल गई है। " जिस ूमाल में पांच गांठें लग गयी हो काम में भी नहीं आ सकता। " " गांठें और छोटी हो गयी और बारीक होकर कस गयी।
" तो बुद्ध ने कहा, पहले जानना होगा कि गठान कैसे बंहध " तो पहले देखना होगा कि गांठ बंधी कैसे है। " गांठ और मुश्किल हो सकती है, सुलझाना और कठिन हो सक
" " " "
" गांठ जब रूमाल पर लगती है तो बाहर से कहीं से आती नह कभी आपने गांठ अकेली देखी है बिन रूमाल के बिना रसल? शुद्ध गांठ आपने कभी देखी है? जब भी होगी किसी चीज पर होगी, अकेली तो बाहर से ीेक बाहर से आयी नहीं क्योंकि बाहर कभी गांठ पायी नह ीं " "
इसी तरह संसार जो है, हमारा अर्जन है, एचीवमेंट है। हमने बड़ी चेष्टा करके निर्मित किया है। हमने बड़े उपाय किये हैं, तब निर्मित किया है। " " " लेकिन दर्पण वह भूल नहीं करता। " "
" " " आज. अपनी समस्यायें बताइयें।
यह सुनते. " अपनी-अपनी समस्या एक पर्चे पर लिखकर मुझे दीजिये।
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आप साधनाओं में प्रयत्न नहीं कर पा रहे हैं। पूर्ण मनोयोग से उनमें जुट नहीं पा रहे हैं। " " समेटे. वे घौंचे, पत्थर नहीं है, वे हीरे हैं।
" जीवन में एक ही क्षण दूसरी बार नहीं आ सकता। एक बार जो क्षण आ गया और उसे आपने नहीं पकड़ा तो कय यप " अगर चूक गये तो चूक गये आप। चूक गये तो बहुत बड़ी चीज चूक गये आप। छोटी-मोटी चीज नहीं चूके। "
अभी कुछ दिनों पहले श्रावण मास के पूरे महीने रूद्राभिषेक की क्रिया सम्पन्न करवायी आप में से काफी साधकों ने सम्पन्न की किन्तु उस समय जो नहीं कर पाये उनके लिये वह क्षण फिर से नहीं आयेगा इस लॉकडाउन के समय आप सभी का सौभाग्य था कि आप ने अपने घर में बैठ कर, अपने ईष्ट, अपने सद्गुरूदेव के सानिध्य में अनेकों साधना, शक्तिपात दीक्षाओं की क्रियायें सम्पन्न की किन्तु यह समय जरूरी नहीं कि दुबारा आयेगा ही। " " "
एक आदमी. की जंजीर की जगह बस एक छोटी सी रस्सी से बंधे हुये हुये हये " " " " " " " "
औऔ मेमे ब बबाब यही चिंतन हत हत हत हत है मैं उन दीक्षाओं, प्योगों को, उस ज्ञान को, उन प्वचनों को स्पष्ट ककक।। " जो कुछ अंदर है वह मैं आप सब को देना चाहता हूं, और इतना अधिक हिलोर है, समुद्र का कि मैं देता ही रहूं पत्रिका के माध्यम से, प्रवचनों के माध्यम से, दीक्षा, साधनाओं के माध्यम से और आपको जीवित जाग्रत चैतन्य व्यक्तित्व बनाकर कृष्ण और राम की तरह ऊंचा उठा सकूं। वे भी एक व्यक्तित्व थे, आपके जैसे सामान्य। " मैं तो आपको प rieben " जगह-जगह आपकी स्तुति हो पायेगी, तब आपको एहसास होगा कि आपके पूपू्वज क्या थे।।
" " " " " उसके लिये फिर कोई जरूरी नहीं कि सिद्ध मुहुर्त हो " " " फिर भगवान शिव तो सोये हुये हैं? फिफि शादीय नवात्ि में हम जगदम्बा की पूजा कैसे कक हैं, जगदम्बा तो सोई हुई हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं?
देव सोये हुये नहीं हैं, वे तो सदैव चैतन्य हैं। वह तो हमारे अन्दर जो ज्ञान है वह सोया हुआ है। " " " " "
" लेकिन पहले ये तो बताओ तुम्हें आखिर चाहिये क्या? " " और ऐसा कहते हुये साधु ने अपना हाथ आदमी की हथेली पर रखते हुये कहा पुत्र मैं तुम्हें दुनिया का सबसे अनमोल हीरा दे रहा हूं, लोग इसे समय कहते हैं, इसे तेजी से हाथ में पकड़ लो और इसे कभी मत गंवाना, तुम इससे जितने चाहो उतने हीरे बना सकते हो।
" " " " फिर कोई बाधा, परोशानी आपके मार्ग की बाधा नहीं बनबनी " मैं कह रहा हूं कि वैसे घौंचे, पत्थर आप बटोरिये मतप " "
" " " आपको समझना होगा। " " " लक्ष्य दायक हों। यों तो साल का प्रत्येक दिन महत्वपूर्ण है। 365 दिन ही महत्वूवू्ण हैं मग कुछ कुछ क्षण ऐसे होते हैं अपने आपमें बहुमूल्य बन जाते हैं।। उन क्षणों की कोई तुलना नहीं हो सकती। "
मुझे तुम्हें कुछ बदलना है, तो मुझे चोट करनी ही प़े़ी " तुम अनगढ़ पत्थर हो। तुमसे बहुत से टूकड़े पत्थर के तोड़ डालने हैं। " उनके टूटने पर ही तुम्हारी आत्मा प्रगट होगी। " " "
" लेकिन तब तुम्हें मिलता अगर तो पहचानते भी नही " " क्योंकि निखारा गया, काटा गया। उस पर कारीगर की छैनी चलती रही। जितनी छैनी चली उतनी चमक आयी है। वजन कम हुआ है, चमक बढ़ी है। मूल्य बढ़ा है। तब हीरा नहीं था, तब अनगढ़ा पत्थर था। अब हीरा है।
ठीक इसी प्रकार तुम अनगढ़ पत्थर की तरह मेरे पास आ ॹ आये ही इसलिये हो कि अनगढ़ पत्थर हो। खदान से सीधे निकाले गये हो। मैं तुम्हें काटूंगा, छाटूंगा, तुम्हाे टुकड़े-टुकड़े ककूंगा। पीड़ा भी होगी, कष्ट भी होगा। तुम्हारी बहुत दिन की पोषित मान्यतायें टूटेंगीी . लेकिन अगर समर्पण है तो मेरे साथ चलने का निश्चकर े थिय " तुमने मेरे हाथों में अपना जीवन सौंपा है। गुरू सर्जन है। " तो फिर सर्जन काम नहीं कर पायेगा। ऐसे लोग तो बहुत हैं, जिनके मन में अवज्ञा भी आती हो हो ज्यादा नहीं हैं, कोई पांच-सात लोग होंगे। उनमें कुछ ऐसे होते हैं, जिनके मन में अवज्ञा होती होती ैी " मगर लोभी भी है लेकिन लोभी के संबन्ध गुरू से बनतह " जहां प्रेम है, वहां लोभ नहीं।
कृष्णमूर्ति और मेरे काम में बुनियादी फर्क है। कृष्णमूर्ति किसी को शिष्य की तरह स्वीकार नहीं कक " कृष्णमूर्ति ने जो कहा वह बात समाप्त हो गयी। मानना हो तो मान लो, न मानना हो न मानो। जो तुम्हें करना है करो। कृष्णमूर्ति तुम्हारी जिम्मेवारी नहीं लेते। मैं तुम्हारी जिम्मेवारी लेता हूं। कृष्णमूर्ति तुम्हारे साथ तटस्थ नहीं हैं। उनका कुछ लेना-देना नहीं है, मैं तटस्थ नहीं हूं मैं तुमसे प्तिबद्ध हूं।।।। प प प्तिबद्ध हूं। . मैंने अपने को तुम्हारे साथ दांव पर लगाया है। कृष्णमूर्ति ने एक बात कह दी। चलना हो, तो चलो न चलना हो तो न चलो। मैं तुम्हारा हाथ पकड़कर चल रहा हूं। मैं तुम्हाे साथ तुम्हाी यात्रा के साे कष्ट उठा हा हूं हूं। कुछ मैं चलूं, कुछ तुम चलो तो यह यात्रा पूरी होनइ व
शिष्य तो वही है, जो कहे, माधव, जन्म तुम्हारे लेखेे वह कहे कि अब यह जीवन तुम्हारा, यह जन्म तुम्हारा। अब तुम जैसा चाहो बनाओ, अब तुम जैसा चाहो मिटाओ। मैं तुम्हाे हाथों में मिट्टी की त हूं हूं, घड़ा बनाओ या मूमू्ति। " "
" " मगर तुम दो नावों में पैर रखना चाहते हो। तो तुम मुश्किल में पड़ जाओगो। दो नावों में कोई यात्रा नहीं कर सकता। " मैं सिर्फ इतना कह रहा हूं कि किसी एक नाव में सवाज ओवार "
Mein Segen ist mit dir.
Seine Heiligkeit der Sadhgurudev
Herr Kailash Shrimali
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