मेरे पास युवा समस्या लेकर आते हैं। मैं कहता हूं, तुम इतने दुःखी क्यों हो? " " अध्यात्म खुद को निगेटिव से पॉजि़टिव विचा nächsten
हमारे जीवन के संदेह, मोह और भ्रम मिटते हैं। " " "
" उठकर! जीवन की ओर नई आशा से, नई ऊर्जा से देखा है। " " यह समय हमें नए अनुभव दे रहा है। " "
" " फिर इसकी पकड़ से छूट पाना भी उतना ही कठिन होता हैी देखा जाए तो जीवन का सबसे बड़ा व्यसन भोजन है। नहीं. कुछ व्यसन व्यक्ति की पपिस्थितियों के काण होने वाले मानसिक प्भाव से पैदा होते हैं।।।।। पानसिक प्भाव कुछ व्यसन भोग की प्रवृत्ति के कारण होते हैं। कुछ लोग अधिक खाने के शौकीन होते हैं। " , हर व्यसन के पीछे व्यक्ति की इच्छा शक्ति कार्य कर " साथ ही सकारतunder "
सभी व्यसन या तो अज्ञानतावश शुशु होते हैं, अथवा मन की किसी अभावग्स्त स्थिति में। गांव का बालक छोटी उम्र में ही बीड़ी पीना साा ती वह कुछ तो घर में देखता है, कुछ संगत का प्रभाव होता साथ ही इसमें अज्ञानता का अंश अधिक होता है। " बड़ी उम्र के व्यसनों में की की अभावग्स्त दशा अधिक झलकती है।।।।।।।। " " " यौनाचार इसका भयंकरतम रूप है। जीवन को नारकीय बनाकर ही छोड़ता है। उनके भविष्य नि~ म की उम्र कुव्यसनो में ही व्यतीत हो जाती है।।।।। व व्यतीत परिणाम में भी केवल पशुभाव ही मिलता है। आज विश्व का यह सबसे बड़ा व्यसन मनोमनो की स्थिति का बन गया। लाखों की संख्या में इसने मनोरोगी पैदा कर दिए हैं टी-वी- इंटरनेट ने आग में घी का ही काम किया है। यह भोगवादी संस्कृति का चरम बिन्दु बन गया। आज-कल तो इंटरनेट और मोबाइल फोन से लोगों से चैट करना, फिल्में देखना भी युवाओं में एक व्यसन बन गया है, अतः जिस उम्र में ज्ञान, शिक्षा के माध्यम से अपने जीवन को उज्ज्वलमय स्वरूप प्रदान कर सकें, उस समय का उपयोग यदि उक्त " शिक्षा व्यक्ति परक न होकर विषय परक हो गई। " यदि बीस वर्ष का बालक कहता है कि मैं गरीब हूं तो इसका तात्पर्य परिवार की आर्थिक स्थिति बहुत न्यून है और यदि वही बालक 30 वर्ष की उम्र में कहता है कि मैं गरीब ही हूं तो वह निर्धन रूप में न्यूनता उस बालक की स्वयं की है क्योंकि " "
मां-बाप के चंगुल से भागना चाहता है। . व्यसन में समा जाना चाहता है। मानव स्वभाव से पशु होता है। पशु योनियों से चलता-चलता ही मानव योनि में आता हैि उसके सभी संस्कार उसके साथ आते हैं। मानव समाज पाशविक संस्कारों को नकारता रहा हैं। क्रोध, हिंसा, लोभ आदि सभी वृत्तियां तो प्राकृत िक इन वृत्तियों को स्वीकार कका अथवा दबा देना ही व्यसन का जनक होता है। इन वृत्तियों को दबाना भी हिंसा का ही रूप है। " " फिर वह जाग्रत होकर भीतर ही प्रस्फुटित होती है।
" दबी हुई वृत्ति ही भय का कारण बनती है। " " " अपनी कमजोरी को स्वीकार करना ही श्रेष्ठ मार्ग हैी " अतः कहा जाता है कि- पशुता से मानवता की ओर अग्रसर ही तब नारायणमय बनने का मार्ग खुलेगा।
हर व्यसन के साथ एक भय भी होता है। यह भय मन को द्वन्द् की स्थिति में खड़ा कर देता हैहैहैा मन की इच्छाशक्ति इस पाशविक शक्ति के आगे हार जा ती इच्छाशक्ति से अधिक शक्तिशाली होती तो नहीं है। " इससे मुक्त होना पूर्णता का मार्ग है। अपूर्ण व्यक्तित्वको भारी कीमत भी चुकानी पड़ती यह तो व्यसन की गहनता पर ही निर्भर करेगा। इस कीमत से ही व्यसन मुक्त होने का महत्त्व समझा जा सकता है।। एक भय को दबाने के लिए व्यसन शुरू होता है। " प्रकृति के तीन कड़वे नियम, जो सत्य है। " "
"
1-सुखी सुख बांटता है। 2-दुःखी दुःख बांटता है। 3-ज्ञानी ज्ञान बांटता है। 4-भ्रमित भ्रम बांटता हैं। 5-भयभीत भय बांटता हैं। "
1- Wenn Nahrung nicht verdaut wird, nehmen Krankheiten zu. 2- Wenn das Geld nicht verdaut wird, zeigen Sie Erhöhungen. 3- Wenn die Angelegenheit nicht verdaut wird, nimmt der Klatsch zu. 4- Wenn Lob nicht verdaut wird, wächst das Ego. 5- Wenn Kritik nicht verdaut wird, wächst die Feindschaft. 6- Wenn das Geheimnis nicht verdaut wird, steigt die Gefahr. 7- Wenn Trauer nicht verdaut wird, nimmt die Verzweiflung zu. 8-Sünde nimmt zu, wenn das Glück nicht verdaut wird.
" इससे थोडे़ सावधान होने की जरूरत है। आपको पता ही नहीं होता वह बात भी आप दूस दूस को बताने लगते है।।। लेकिन ऐसा आदमी खोजना मुश्किल है। " "
" उसको कहते है, गुरूकुल-द फॅमिली ऑफ द मास्टर। " पर यह निकटता दोहरी है, सभी निकटताएं दोहरी होती ही " गुरू भी एक बड़ी साधना है। सभी जानने वाले गुरू नहीं हो पाते। " एक राजा को राज भोगते हुये अनेक वर्ष व्यतीत हो ग थे "
" " नaz तकी एक दोहा पढ़ा- " " " "
" " " दोहे से यह. महाराज! मैं तो चला। यह कहकर गुरुजी तो अपना कमण्डल उठाकर जंगल की ओत चर राजा की लड़की ने कहा- पिताजी! " "
" Lass es! आज नहीं तो कल आखिर राज तो तुम्हें ही मिलना है। " " " " " " " "
Bahubiti blieb jeden Moment eine Weile beschäftigt
Werde nicht wegen eines Augenblicks stigmatisiert.
" तात्पप्य यही कि छोटी सी गलती से भी जीवन हो ज जाता है।।। जो पूरे जीवन को अस्त-व्यस्त कर देता है। " " " मानसिक चिन्तन का व्त व्यक्ति के की न्यूनता को से से समाप्त का है है।।।। से समाप्त " जिस तरह से साधारण स्वरूप में व्रत के समय अन्न का परित्याग करते हैं, ठीक उसी तरह जीवन के विकारों और व्यसनों को समाप्त करने के लिये व्रत रूपी संकल्प लें साथ ही दृढ़ता से अपने आत्मशक्ति को मजबूत करते हुये अटल रहें कि मेरे विकार और व्यसन पुनः जीवन में लौट कर नहीं आयेंगे। सही अर्थो में यही व्रत का भाव चिन्तन होता हैं। वही मन के विकार रूप में अनर्गल व्यसनों और कुविकारों स्वरूप में आलस्य, प्रमाद, कर्महीनता, अनर्गल खान-पान, स्वयं के प्रति लापरवाहमय स्थितियां क्रोध व दूसरों पर आधिपत्य बना कर रखना ये सभी कुस्थितियां जीवन में निरन्तर बिखराव उत्पन्न करती है और जीवन का कोई " "
" साधना पथ पर, कितने लोग इनमें से आप जैसे हो गये? कितने लोग बुद्ध बन गये? " . " " " उन्हीं का हाथ हाथ में लेकर। " " " "
" हम दोनों साथ ही साधना करें। " " जो. इसलिए गुरू कहते है, हम दोनों साथ ही पुरूषार्थ करू हम दोनों की विद्या तेजस्वी हो।
Wenn es nach dem Ausprobieren nicht klappt, was ist dann los?
यानी यत्न क क के बावजूद कार्य सिद्ध न तो उसमें उसमें मानव का क्या दोष? कई बार मनुष्य का nächsten " इन तीनों की मदद से ही व्यक्ति समस्याओं से उबर सकं " " जबकि अधिकांश सांसारिक मनुष्यों का कोई ध्येय, उद्देश्य नहीं होता, केवल मात्र मनुष्य जीवन प्राप्त हो गया, उसे येन-केन प्रकारेण व्यतीत करना है। ऐसे मनुष्यों के जीवन का कोई हेतु, उद्देश्य नहऀं ऋ के जीवन " " इसके. . " " अपने आप को और तैयार कर लें। इस वक्त का, उपयोग हम अपने व्यक्तित्व विकास में कइ " "
जब हम कहते कि कि प्रारsprechung इस परिस्थिति में भी उच्च ऊर्जा विचार बनाना हैं। प्रार्थना के समय यही भावना हो कि मुझे मेरी प्रार्थना को प्रैक्टिकल में लाना है अर्थात् प्रार्थना में जो भी भाव-चिंतन है, उसे जीवन में पूर्णरूपेण उतारने की क्रिया करनी है तब ही हमारे द्वारा प्रार्थना करना सार्थक होगा और उस सार्थकता से ही उच्च ऊर्जा वाले विचारों से युक्त व्यक्तित्व का निर्माण कर सकेंगे क्योंकि संकल्प से सृष्टि बनती हैं संकल्प की शक्ति से ही जीवन धारणायें, इच्छायें पूर्णरूपेण सकारात्मक रूप में क्रियान्वित हो सकेंगी। " . "
संघर्षमय जीवन का उपसंहार ही हर्षमय होता है। एक-दूसरें के प्रति प्रेम ही जीवन की सार्थकता हैी " " " हमें इसे मिलकर ठीक करना है। साहस से ही गाड़ी आगे की ओर बढ़ चलेगी। " " इसका आपको अंदाजा भी नहीं है। "
" " अगअग ह जवाब अगले सवाल भी बढ़ते जाएं तो फि यह उलझनों उलझनों मानसिक अशांति औ जीवन में मौजूद शो कभी कभी खत्म नहीं होने वाला। " हमाे ज्ञान, असीमित्धिमत्ता से हम जीवन के ब बाे में कुछ खास नहीं समझ सकते।।।।।।।। ब बाे में ख समझ।।।। ब ब ब बाे में से सकते।।।।।।।।।। ब ब बुदाे में से सकते।।। ब बाे में से सकते।। ब बाे में से सकते।। ब ब बika " " जीवन-मृत्यु, लेना-देना, आत्मकेंद्ित या जुडे़ हन हना, साम्य या बिखबिखाव सार जीवन ही वि वि वि वि वि वि वि वि वि वि से से भ भ भ भ हुआ है।।।।।। जीवन ही वि वि वि वि से से हुआ है।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।. " इन.
आप इस खोज में जीवन की दौड़ में भागे जा रहे हैं। " " जैसे कि महान दा nächsten " ये उम्मीदें फिर उसी मानसिक अशांति को ओर ले जाएीग सवाल है कि क्या यह वाकई उतना मायने रखता हैं? सवाल यह भी है कि जीवन का मकसद क्या है? " शांति! यानी भविष्य की चिंता छोड़कर वर्तमान को भरपूर जि " जीवन अच्छे भविष्य की कामना के साथ भी जिया जाना चिया जाना चया हमें इस क्षण को भी महसूस करना शुरू करना होगा। अभी मुस्ककाइयें, क्योंकि खुशी-प्सन्नता इसी क्षण सामने है औ औ अभी है।।।।। क्षण सामने " जो कुछ होगा इसी क्षण में घटित होगा, होने दीजियइंेंी अब फिर से एक गहरी सांस लिजियें। "
आइयें जीवन के हर क्षण को महत्वपूर्ण बनायें। इस क्षण के लिए सजग, जीवंत और सचेत हो जायें। " " "
जीवन अच्छे भविष्य की कामना के साथ जिया जाना चाहियें, लेकिन इस सब में मौजूदा वक्त, इस्षण को जीना भूलना नहीं चाहियें। वहां जैसी कोई जगह नहीं है, जहां पहुंचने की बात की जाती है।। कोई अंत नहीं है, कोई शुरूआत नहीं है। जीवन एक सतत प्रवाह हैं। इसके हर पल को जिये, इसके हर पल का पूरा उपयोग करेंे " शांति! यानी चिंता छोड़ वर्तमान को भरपूर जियें। " भविष्य कल घटित होगा। यह क्षण सामने है और अभी है।
Seine Heiligkeit der Sadhgurudev
Herr Kailash Shrimali
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