भैरव जन सामान्य में एक प्रसिद्ध देव हैं जिनका पूजन अनेकों प्रकार की आपत्तियों से मुक्ति के लिए किया जाता है। भगवान भैरव की उपासना कई साधक अनेकों प्रकार की सिद्धियों की प्राप्ति के लिए भी करते हैं। ज्योतिष्य विज्ञान के अनुसार भगवान भैरव की पूजा राहु के कुप्रभाव से सुरक्षा प्रदान करती है। भगवान भैरव भगवान शिव के उग्र अवतारों में माने जाते हैं। भगवान भैरव का पूजन शत्रु मर्दन, भूत-प्रेत बाधा निवारण, भय पर पूर्ण रुप से विजय प्राप्ति के लिए प्रायः किया जाता है। कलियुग में भगवान भैरव शीघ्र प्रसन्न होने वाले देवों में से एक हैं। भगवान भैरव के स्वयं 52 स्वरुप हैं जिनमें से काल भैरव, असितांग भैरव, संहार भैरव, रुरु भैरव, क्रोध भैरव, कपाल भैरव, रुद्र भैरव, उन्मत्त भैरव आदि प्रायः जनसमुदाय में प्रचलित हैं।
भगवान भैरव मंदिर में प्रायः ज्यादातर ज्योर्तिलिंगों के पास जैसे काशी में काशी विश्वनाथ मंदिर के पास, उज्जैन में महाकालेश्वर मंदिर के पास देखने को मिलते हैं। इनके मंदिर सभी शक्ति पीठों पर भी हैं। जब विष्णु ने सती के शरीर के 52 टुकड़े कर दिये थे तो शिव ने उन सभी 52 स्थानों की रक्षा के लिए भैरव को नियुक्त किया था, इसीलिए भैरव के 52 स्वरुप माने गये हैं।
शिव महापुराण में भैरव की उत्पत्ति के बारे में विस्तार से बताया गया है। एक बार ब्रह्मा जी एवं नारायण में वार्तालाप चल रही थी। बातों-बातों में यह बात निकली कि श्रेष्ठ कौन है और इस ब्रह्माण्ड का संचालक कौन है। ब्रह्मा जी ने स्वयं को श्रेष्ठ बताया जिस पर भगवान नारायण ने उन्हें कहा कि स्वयं को श्रेष्ठ कहना श्रेष्ठता नहीं। फिर उन्होंने यह निर्णय लिया कि चारों वेदों का अध्ययन किया जाये जिससे यह बात पता चल सके कि श्रेष्ठ कौन है। ऋग वेद ने भगवान रुद्र को श्रेष्ठ कहा क्योंकि वो सभी के संचालक हैं, यजुर्वेद ने बताया कि भगवान शिव ही श्रेष्ठ हैं क्योंकि उनकी पूजा सर्वश्रेष्ठ है, सामवेद ने वर्णन किया कि भगवान त्रयम्बकं महादेव ही वे देव हैं जिनकी वन्दना सभी योगीजन करते हैं और जो समस्त संसार के संचालक हैं, अथर्ववेद में वर्णन है कि जो देव भक्ति मार्ग से प्रसन्न होते हैं और प्रसन्न होने पर अपने भक्तों के सभी पाप-दोषों का शमन करने वाले वह भगवान शंकर ही श्रेष्ठ हैं।
वेदों में वर्णित तथ्यों को पढ़कर ब्रह्मा जी और भगवान नारायण विस्मित हो हंसने लगे। तभी भगवान शिव वहां प्रकट हुए जिन्हें ब्रह्मा जी ने क्रोध से घूरना शुरु कर दिया। भगवान शिव ने तभी एक आकृति उत्पन्न की और भगवान शिव ने उसको सम्बोधित करते हुए कहा कि यह काल का राजा होगा और इसका नाम काल भैरव होगा। इस दौरान ब्रह्मा जी का पांचवा मुख अभी भी क्रोध मुद्रा में ही था जिसे काल भैरव ने एक झटके में खींच कर उनसे अलग कर दिया। काल भैरव के इस कर्म के कारण उन्हें ब्रह्म हत्या का दोष लगा जिससे मुक्ति प्राप्त करने के लिए भगवान शिव ने उन्हें समस्त तीर्थों के दर्शन करने का निर्देश दिया।
भगवान काल भैरव ने आज्ञानुसार क्रम से सभी तीर्थों पर जाकर पूजा अर्चना करनी आरम्भ कर दी। हर जगह पर वो ब्रह्मा जी के सिर को पकड़े हुए वहां की पावन नदी में डुबकी लगाते पर जिस जगह भी वह जाते, ब्रह्म हत्या का दोष उनके पीछे-पीछे चलता रहता। अनेकों तीर्थों के दर्शन के उपरान्त काल भैरव भगवान सदाशिव की नगरी, मोक्षपुरी काशी पहुंचे। उनके काशी पहुंचते ही ब्रह्म हत्या का दोष अपने आप गायब हो गया। उनके हाथ से भगवान ब्रह्मा का सिर भी गिर गया और वह स्थान फिर कपाल मोचन कहलाया। आज उस जगह पर एक तीर्थ है जिसे कपाल मोचन तीर्थ के नाम से जाना जाता है। उस समय के उपरान्त, भगवान काल भैरव ने काशी को ही अपनी स्थली बना ली और मान्यता है कि आज भी भगवान काल भैरव सम्पूर्णता के साथ इस पवित्र नगरी में विद्यमान हैं और अपने भक्तों को अभय, आत्मविश्वास, निडरता प्रदान करते हैं।
किसी भी शुभ कार्य हेतु भैरव स्थापन अवश्य की जाती है क्योंकि भैरव रक्षा कारक देव हैं। जहां भैरव की स्थापना-पूजा होती है, वहां कार्य में किसी भी प्रकार की विघ्न-बाधा उत्पन्न नहीं होती। भगवान भैरव की कृपा से शत्रुओं पर व्रज की तरह प्रहार किया जा सकता है। दुनिया उसी की होती है जो अपने दम-खम पर जीना जानता है, भाग्य उसी का साथ देता है जो जोखिम उठाने से कतराता नहीं और ऐसा व्यक्ति ही जीवन में सफल जीवन जी सकता है। हममें नये जोखिम उठाने का साहस होना चाहिए, तभी हम सड़े गले जीवन का नवनिर्माण कर सकते हैं।
यह बात भी सत्य है कि जो जीवन में आगे बढ़ने के लिए प्रयत्नशील है, उसी के मार्ग में रुकावटें आयेंगी। जो कोल्हू के बैल की भान्ति एक ही ढर्रे पर अपने जीवन को जीने में खुश हो, भला उसके जीवन में शत्रु आयेंगे ही क्यों? शत्रु तो जीवन की शोभा है, वह आपके जीवन की सफलता का मापदण्ड है, यह इस बात का द्योतक है कि आप सफलता के मार्ग पर हैं पर उन पर विजय प्राप्त करना ही पौरुषता है और ऐसी पौरुषता व्यक्ति भैरव साधना से प्राप्त कर सकता है।
भैरव साधना किसी भी शनिवार या अष्टमी को सम्पन्न की जा सकती है। भगवान भैरव शीघ्र प्रसन्न होने वाले देव हैं और यदि कोई व्यक्ति इनकी साधना पूर्ण श्रद्धा युक्त हो कर सम्पन्न करता है तो उनके दर्शन भी संभव है।
साधक रात्रि को 10 बजे के उपरान्त स्नानादि से निवृत्त होकर स्वच्छ काले वस्त्र धारण करें और गुरु चादर को ओढ़ लें। साधक काले आसन पर पश्चिम दिशा की ओर मुख कर बैठ जायें और अपने सामने एक लकड़ी के बाजोट को स्थापित करें। बाजोट को भी काले वस्त्र से ढक दें। सर्व प्रथम संकल्प लेते हुए अपने दाहिने हाथ में जल लें और उच्चारित करें, मैं (अपना नाम) अपने निम्न शत्रु (शत्रु का नाम) पर विजय प्राप्त करने के लिए यह साधना कर रहा हूं। भगवान काल भैरव मेरी मनोकामना को पूर्ण करें। तेल का दीपक प्रज्ज्वलित करें।
अब एक ताम्र पात्र को बाजोट पर स्थापित करें और उसमें काले तिल की एक ढेरी बनायें। उस ढेरी पर शत्रुमर्दन काल भैरव यंत्र को स्थापित करें। यंत्र पर काल भैरव गुटिका को स्थापित करें।
अब यंत्र एवं गुटिका पर काले सरसों व काले रंग से रंगे चावल के दानों को अर्पित करें। भोग के रुप में गुड़ से बनी किसी वस्तु का भोग लगायें। गुरुदेव का संक्षिप्त पूजन कर एक माला गुरु मंत्र का जाप करें व साधना में सफलता के लिए आशीर्वाद का आग्रह करें। तदुपरान्त शत्रुमर्दन माला से निम्न मंत्र का 11 माला मंत्र जप करें।
मंत्र जप के उपरान्त 1 माला गुरु मंत्र का पुनः जप करें और भगवान भैरव से अपने शत्रु पर विजय प्राप्ति की कामना करें। दो दिनों के बाद सभी साधना साम्रगी को किसी नदी या तालाब में अर्पित कर दें। शीघ्र ही आपके शत्रु आपके सामने नतमस्तक होंगे।
प्रायः कुण्डली में ग्रह दोष के कारण ऐसे योग बनने लगते हैं कि व्यक्ति को हर दिशा से असफलता ही प्राप्त होने लगती है। कई बार तांत्रिकों द्वारा की गई मैली क्रियायें भी इसका कारण होती हैं। हालात कभी तो इतने बिगड़ जाते हैं कि हर वक्त किसी दुर्घटना का अंदेशा बना ही रहता है। ऐसी स्थिति में यह साधना रामबाण की तरह प्रभाव करती है।
साधक को चाहिए कि वह रात्रि 10 बजे के उपरान्त स्नानादि से निवृत्त होकर स्वच्छ सफेद वस्त्र धारण करे पर आसन आदि नीले रंग का प्रयोग करे। साधना काल में जलाये गये दीपक में इतना तेल अवश्य हो कि वह पूरे साधना काल तक जलता रहे। पूर्व विधि के अनुसार ही संकल्प ले व संकल्प लेते समय अपनी समस्या का उच्चारण करें। इस साधना में सौम्य भैरव यंत्र, अनिष्ट निवारक माला व कपाल विग्रह की आवश्यकता होती है। पूर्व साधना विधि से पूजन सम्पन्न करें व निम्न मंत्र की 11 माला 8 दिनों तक जप करें।
यदि साधना के दौरान या साधना के उपरान्त भगवान श्री भैरव सौम्य रुप में प्रकट हो जायें तो निर्भय हो कर तेल के दीपक को उनके हाथों में सौंप दें व साष्टांग प्रणाम कर अभय की कामना करें। सभी साधना उपकरणों को अगले दिन जल में अर्पित कर दें।
आज की हमारी जीवनशैली इस प्रकार छिन्न-भिन्न सी हो गई है कि अधिकांश लोग किसी न किसी प्रकार के रोग से ग्रस्त है ही। किसी को मानसिक रोग है तो किसी को शारीरिक, पर रोगी तो आज के शायद हर वर्ग के लोग हैं ही। ज्यादा दुःख तो तब होता है जब छोटे-छोटे बालक-बालिका भी मानसिक रोगों से पीडि़त होते दिख रहे हैं। पर भगवान भैरव हर प्रकार के रोगों से मुक्ति देने में सहायक हैं और इनकी साधना तो हर वर्ग, हर उम्र का साधक कर सकता है।
इस साधना के लिए स्वास्थ्य वर्धक भैरव यंत्र, बटुक भैरव माला आवश्यकता होती है। यह साधना दिन या रात में कभी भी सम्पन्न की जा सकती है, पर श्रेष्ठ है कि साधक रात्रि को 10 बजे के उपरान्त स्नानादि से निवृत्त होकर स्वच्छ लाल वस्त्र धारण करें और गुरु चादर को ओढ़ लें। साधक लाल वस्त्र से ही बाजोट को ढकें। पूर्व में ही दिये गये विधान से संकल्प, गुरु पूजन व यंत्र-गुटिका पूजन सम्पन्न करें। अपनी मनोकामना के रुप में रोग मुक्ति की कामना करें। यदि किसी अन्य रोगी के लिए साधना कर रहे हैं तो उसके नाम का उच्चारण कर के उसके रोग निवारण की कामना करें। अपने पास एक लोटे को जल से भर लें व उसे लाल रंग के वस्त्र से ढक दें। अब निम्न मंत्र की 3 माला का जप करें।
शीघ्र ही रोगी स्वस्थ होने लगता है और उसमें जीवन को ले कर एक नई उमंग होती है। यदि रोग जटिल हो तो उसी सामग्री पर 3 बार यह प्रयोग किया जा सकता है। इसके उपरान्त सभी सामग्री को किसी जलाश्य में अर्पित कर दें। एक सामग्री का प्रयोग एक व्यक्ति पर ही करना चाहिए।
वास्तव में ही भगवान भैरव की साधना इस युग में हमारे लिए किसी वरदान से कम नहीं। ‘शीघ्र सिद्धि भैरवाय कलियुगे’ अर्थात कलियुग में भगवान शीघ्र प्रसन्न होने वाले देव हैं। एक ओर जहां भैरव साधना से साधक को बल, साहस, अभय, रोग-मुक्ति, अकाल मृत्यु निवारण प्राप्त होता है तो वहीं दूसरी ओर इनकी साधना करने से साधक को अनन्त धन की प्राप्ति होती है, समाज में उसका नाम होता है व उसका व्यक्तित्व पूर्ण सम्मोहक बन जाता है। अतः श्रेष्ठ साधक इन सभी उपलब्धियों के लिए अलग-अलग साधना न कर के मात्र भगवान भैरव की साधना कर ही अपने अनेकों मनोकामनाओं की पूर्ति कर सकता है। साधक को चाहिए कि वह भगवान भैरव से सम्बन्धित दीक्षा अवश्य प्राप्त करे ताकि साधना काल में उत्पन्न शक्ति को वो आत्मसात कर सके।
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