भगवान श्ीीम अपा nächsten
वे धध्म निष्ठा, सत्य वाचक औ लोक कल्याणकाी भावों से युक्त हैं।।।।।। सताी भावों " " "
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" उनका सम्पूपू्ण जीवन मानवीय मूल्यों के सम समसम्पित हहा है।।।।
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" " " केवल. "
" " पति-पत्नी के मध्य राम-सीता के जैसा कोई भाव, विचार, सिद्धान्त मुश्किल से देखने को मिलते हैं औ औ नहीं नहीं र र देखने भ जैस जैसाईयों है पogr. " युवा वव्ग में माता-पिता का सम्मान या सेवा भाव समाप्त सा हो गया हैं।।। भाव समाप्त "
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माता सीता का आदर्शवान गृहस्थ जीवन श्री रामचरित मानस में एक प्रसंग है- जब श्री राम और सीता ने विवाह के पश्चात् पहली बार बात की तो राम ने सीता को वचन दिया कि वे जीवन भर उनके प्रति निष्ठावान रहेंगे। उनके जीवन में पराई स्त्री नहीं आयेगी। सीता ने भी वचन दिया कि ह सुख औ औ दुःख वे उनके साथ हेंगी।। " " दोनों एक-दूसरे के सुख की चिंता करते थे।
वव्तमान में सsal रिश्तों में समर्पण की भावना समाप्त सी हो गई हैं, और यदि हम वैवाहिक जीवन के मूल तत्व समर्पण व भरोसे को पुनः जीवन्त बना लें, अपने व्यक्तिगत स्वार्थ से परे हटकर अपने कर्तव्यों का निर्वाह करें, तो हमारा गृहस्थ जीवन राम-सीता की तरह सपफ़ल -सुखद और शांतिदायक हो सकता है।
" सास, बहू औ बेटे के बीच मतभेद औ कलह-क्लेश प्तिदिन होते हते हते हैं हैं।।। इन सभी का कारण अधिकार और कर्तव्य निर्वाह मुख्य रूप से होता है, सभी लोग अपने-अपने अधिकार की बाते करते हैं, परन्तु कर्तव्य निर्वाह की ओर कम ही ध्यान जाता है, ये बाते पति-पत्नी, सास सभी पर समान रूप से लागू होती है। " " "
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" सुख-शांतिमय व्यतीत कर सकेंगे।
" " ताकि बाधायें समाप्त हो सके, औऔ गृहस्थ जीवन आनन्दमय बन सके।।।।।। गृहस गृहस्थ "
मार्गशीगशी्ष शुक्ल पक्षीय विवाह पंचमी कि प्भु श्ीीीी-सीता जी के प प प पप्व है।।।। "
Dadurch kann der Hausbesitzer Vijayashree im Kampf gegen Unwahrheit, Ungerechtigkeit, Feind, Krankheit, Betrug, Verrat, Armut und dämonische Kräfte erreichen, genau wie Maryada Purushottam Shri Ram, und der Suchende wird erfüllt mit allen Freuden des Hausbesitzers und Seelenfrieden im Leben. Und Exzellenz kann erreicht werden.
" शक्ति औfluss " प्रेम जीवन का आधारभूत सत्य है।
" गुरू और गणपति पूजन कर। " इसके पश्चात् निम्न मंत्र का 5 दिन नित्य 5 माला मंत्र जप 'प्ेमाल्य माला' से सम्पन्न कβ-
साधना समाप्ति के बाद सम्पू्ण सामग्ी को किसी पवित्र जलाशय में विसविस्जित कक क।।।
बल, बुद्धि, पाक्मी, संकटो का नाश कक वाले औ दुःखों दुःखों दू दू क काले भगवान श्ीीम महावी हैं।।।। भगवान श्ी दुःखों महावी हैं।।। भगवान " वही पूर्ण सफ़ल होता हैं।
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साधना समाप्ति के बाद सम्पू्ण सामग्ी को किसी पवित्र जलाशय में विसविस्जित कक क।।।
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साधना समाप्ति के बाद सम्पू्ण सामग्ी को किसी पवित्र जलाशय में विसविस्जित कक क।।।
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साधना समाप्ति के बाद सम्पू्ण सामग्ी को किसी पवित्र जलाशय में विसविस्जित कक क।।।
मार्गशीर्ष मास जो कि पुरूषोत्तम साधनात्मक मास कहा जाता है साथ ही इसी मास में भगवान श्रीराम व सीता माता का परिणय पर्व उत्सव रूप में सम्पन्न करते है अतः उक्त सभी साधनायें इन्हीं पर्व स्वरूप दिवसों में सम्पन्न करने से जीवन की असुर राक्षसीमय रावणरूपी विषमतायें समाप्त हो सकेगी ।
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