पुराणों में प्रसंग आता है, कि जब प्रजापति दक्ष ने यज्ञ का आयोजन किया, तो उसमें अपनी पुत्री सती एवं उनके पति भगवान शिव को आमंत्रित नहीं किया, इस कारण सती को क्रोध आया और वह बिना आमंत्रण ही यज् ञ में जाने को उद्यत हो गई क्रोध से उनका स्वरूप अत्यन्त उग्र व प्रचण्ड हो गया, ज िसे देखकर भगवान शिव भागने लगे, तब अपने ही शरीर स े सती ने दस महाविद्याओं का प्रस्फुटन किया। जिन्होंने शिव को दस अलग-अलग दिशाओं में मार्ग अ वरूद्ध कर भागने से रोका।
दक्षिण दिशा में रोकने वाली देवी भगवती त्रिपुर भैरवी थीं। वे शत्रुओं का दमन करने वाली सर्वःदुख तारिणी त था षट्कर्मों में उपास्या हैं। पंचमी विद्या भगवती छिन्नमस्ता का सम्बन्ध 'महा प्रलय' से है, जबकी त्रिपुर भैरवी का सम्बन्ध 'नित ्य प्रलय' से है। प्रत्येक पदार्थ प्रतिक्षण नष्ट होता रहता है। नष्ट करने का कार्य रूद्र का है और उन्हीं की शक् ति का नाम त्रिपुर भैरवी है। "
क्षीयमान विश्वे अधिष्ठान दक्षिणामूर्ति कालभ ैरव हैं। उनकी शक्ति ही त्रिपुरभैरवी है। ये ललिता या महात्रिपुरसुन्दरी की रथवाहिनी है ं। ब्रह्माण्डपुराण में इन्हें गुप्त योगिनियों की अधिष्ठात्री देवी के रूप में चित्रित किया गया है। मत्स्यपुराणमें इनके त्रिपुरभैरवी, काली भैरव ी, रूद्र भैरवी, चैतन्य भैरवी तथा नित्या भैरवी आद ि रूपों का वर्णन प्राप्त होता है। इन्द्रियों पर विजय और सर्वत्र उत्कर्ष प्राप् ति हेतु त्रिपुर भैरवी की उपासना का वर्णन शास्त ्रों में मिलता है।
ये कमलासन पर विराजमान हैं। भगवती त्रिपुर भैरवी ने ही मधुपान करके महिष का हृदय विदीर्ण किया था। संकटोंसे मुक्ति के लिये भी इनकी उपासना करने क ा विधान है। घोर कर्म के लिये काल की विशेष अवस्था जनित मानो ं को शान्त कर देनें वाली शक्ति को ही त्रिपुर भैर वी कहा जाता है। इनका अरूण वर्ण विमर्श का प्रतीक है। इनके गलें में सुशोभित मुण्डमाला ही वर्णमाला ह ै। "
इनका भगवान् शंकर की उपासना में निरन्तर उमा का दृढ़ निश्चयी स्वरूप ही त्रिपुर भैरवी का परिचाय क है। त्रिपुर भैरवी की स्तुति में कहा गया है कि भैरव ी सुक्ष्म वाक् तथा जगत् के मूल कारण की अधिष्ठात ्री है।
'भैभै यामल तंत्र' में त त्िपुिपु भैभै के स्वव को निम्न प्कार से missbraucht
यह तंत्र की एक निश्चित मर्यादा है। प्रत्येक साधक, चाहे वह युवा हो अथवा वृद्ध इसका उल्लंघन कर ही नहीं सकता, क्योंकि भैरवी 'शक्ति' क ा ही एक रूप होती है तथा तंत्र की तो सम्पूर्ण भाव भूमि ही 'शक्ति' पर आधारित है। कदाचित इसका रहस्य यही है, कि स्त्री शक्तिमय स् वरूप है
" Iel सुपात्र बन जाता है।।। भैरवी साधना इसी श्रेणी की साधना है, किन्तु श्य ामा पीठ साधना से कुछ कम स्तर की। वस्तुतःजब भैरवी साधना का संकेत सद्गुरूदेव से प्राप्त हो जाये, तब साधक को यह समझ, कि वे उसे तंत्र की उच्च भावभूमि पर ले जाने का मन बना चुके हैं।
व्यक्ति के अनेक बंधनों में से सर्वाधिक कठिन ब ंधन है उसकी वासनाओं का और तंत्र इसी पर आघात कर व् यक्ति को एक नया आयाम दे देता है। वास्तविक तंत्र केवल वासना पर आघात करता है, न कि व्यक्ति की मूल चेतना पर। इसी कारणवश एक तांत्रिक किसी अन्य योगी या यति स े अधिक तीव्र एवं प्रभावशाली होता है।
साधना प्रारम्भ करते समय सद्गुरू का ध्यान कर म ां भगवती त्रिपुर भैरवी का निम्न मंत्र से आवाहन करें-
भगवती त्रिपुर भैरवी की देह कान्ति उदीयमान सहस ्त्र सूर्यों की कांति के समान है। उनके ललाट पर चन्द्रमा की कान्ति शोभायमान है। रक्त- कमल जैसी शोभा वाले उनके तीन नेत्र हैं। उनके मस्तक पर रत्न जटित मुकुट तथा मुख पर मन्द म ुस्कान है।
।। अस्य त्रिपुर भैरवी मंत्रस्य दक्षिणा मूर्ति ऋ षिः
शक्तिश्छन्दः त्रिपुर भैरवी देवता ऐं बीज ह्री ं शक्तिः
Klim Keelaka ist das größte Wunschobjekt und wird zur Erfüllung des Wunschziels gesungen.
Daumen hoch für Hasara.
Hasarim Daumen hoch.
Hasru-Mittelfinger.
ॐ Hasarai Namah.
ॐ Hasarau bis zu den Unterarmen.
Ome zu den Handflächen des Hirsches.
निम्न ध्यान मंत्र से भगवती त्रिपुर भैरवी का का ध्य
Singen Sie nach der Meditation 7 Runden des folgenden Mantras mit Tripura Mala:
मंत्र जप समाप्ति के बाद दुर्गा आरती व गुरू आरत ी तथा समर्पण स्तुति सम्पन्न कर दूध से बना भोग लग ाएं। अगले दिन यंत्र, माला और गुटिका को किसी नदी में विसर्जित करें।
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