" " . " " लेकिन ये सारे सम्बन्ध स्थायी नहीं हैं। केवल गुरू के साथ जो सम्बन्ध स्थायी सम्बन्
. गुरू दर्शन औेर ज्ञान दोनों का ही आधार तैयार कर ता " शेष जो कुछ दिखाई पड़ता है, वह त्रिगुण का आवरण मात इस परदे को हटाकर स्वयं का ज्ञान करना ही गुरू कि
गुरू ही शिष्य की परीक्षा लेता है, ऐसा नहीं है। " " " शिष्य की शत्ुवत भावना की क्षमता को समाप्त कका अनिवार्य होता है है।। फूल समान शिष्य में गुरू महक भरता है। परीक्षा भी लेता रहता है। " "
आज समय का अभाव है। शिष्य कुछ पाना भी चाहता है, गुगु देना भी चाहता है, किन्तु शिष्य कहता है।।। मुझे तो कुछ ऐसा दो की मुझे न न लगाना पड़े औ जो चाहता हूं वह मिल जाये। कैसे संभव है? इससे स्पष्ट है की शिष्य कितना संकल्पवान व जिज्ञासु है साथ ही लक्ष्य के प्ति दृढ़ है।।।।।। लक लक्ष्य चैतन्य गुरू के पास बैठने से ही मन शांत होने लगता ै विचारों का ताला टूटने लगता है। कुछ बोलने की या प्रश्न करने की भी आवश्यकता नहऀं ी यह भी आवश्यक है कि शिष्य स्वयं भी सद्भाव से ही बैॠ
गुरू मित्र होता है, सलाहकार होता है, प्रेरक होतै ै शिष्य के सामने अनेक चुनौतियां रखता है। गुरू- शिष्य का सम्बन्ध गहन आत्मीयता का होता है। सच तो यह है कि दोनों अलग होते हुये भी एक हो जाते है है भावों में सघनता आ जाती है। दोनों ही एक-दूसरे को समर्पित हो जाते हैं। गुरू का प्रतिबिम्ब तो शिष्य होता है। 'जानत तुमहि होई जाई' के अनुसार गु में ज्ञानमय प्काश पा जाने से अनवअनव शिष्य गुगु भाव में ही चला जाता है।।।। भाव " गुरू ही शिष्य को गुरूमय बनाता है। अपनी प्रतिकृति रूप बना देता है। शिष्य को आत्मदमद्शन का मा nächsten " अर्थात् वहां न गुरू, गुरू है, न ही शिष्य, शिष्य हैय दोनों एक हो जाते हैं। केवल ज्ञान शेष रह जाता है।
" ईश्वर से प्रार्थना करता है, चिन्तन-मनन करता है। " शिष्य के स्थान पप साी प्क्िया से पहले स्वयं गुजगुजा है।।।
, zu भावनाओं का पपिष्कार अत्यधिक महत्वपूवपू्ण भाग होता है औ अत अत्यन्त कठिन भी।।। " इसके बिना लक्ष्य प्राप्ति संभव ही नहीं है। समर्पण का भाव भी इसके बिना आगे नहीं बढ़ सकता। गुरू-शिष्य का एक ही सम्बन्ध है- आस्था का। यही समर्पण का जनक भी है। "
जीवन संकल्प-विकल्प के बीच झूलता रहता है। " " तभी व्यक्ति की प्राण शक्तियां केन्द्ीभूत हो सकती हैं हैं पाप क्षय का मार्ग प्शस्त हो सकता है।।।। मा kurz गुगु के ज्ञान औfluss
" मूल रूप से तो गुरू शिष्य का सम्बन्ध एक ऐसी प्रक्रिया का नाम है जिसमें गुरू शिष्य को प्रदान करें और शिष्य के लिये यह आवश्यक है कि वह अपना अहंकार अज्ञान छोड़ कर गुरू में ही अपना प्रतिबिम्ब देखे और उसके लिये प्रतीक स्वरूप कुछ विशेष दिन नियत किये गये है। " ये दिवस होता है- इन. संकल्प औfluss संकल्प से आवलम्बन नहीं छूटता बल्कि मजबूत होता होता ज यही एकाग्रता को शनैः शनैः तन्मयता में बदल देता ह तन्मयतामें व्यक्ति स्थिर भावापन्न हो जाता हैा उसकी स्वाभाविक तथा वातावरणजन्य चंचलता समाप्त ह
सद्गुरूदेव कहते जीवन में सारी वस्तुयें गौण ै " "
'श्री' का तात्पर्य किसी भी रूप में धन नहीं है, धन तो उसका हजारवां हिस्सा है, क्योंकि समुद्र मंथन के समय जो चौदह रत्न- ऐरावत, कामधेनु, कल्पवृक्ष, विष, अमृत, धन्वन्तरी, उच्चैश्रवा के साथ अंत में श्री प्रकट हुई और इसी 'श्री' का वरण भगवान ने स्वयं किया यह श्री शक्ति स्वरूप महालक्ष्मी, महासरस्वती, महाकाली सभी देवियों का संयुक्त रूप है। .
" " सृष्टि, स्थिति संहार में उत उत्पत्ति, वृद्धि औऔ आशक्तियों का क्षय है तथा अनुग्ह श्ी ूपी महालक्ष्मी की पूsal कृपा ही है।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।। महालक्ष verursacht महालक्ष्मी स्वयं कहती है की मैं नित्य निर्दिष्ट परमात्मा नारायण की शक्ति और उनके सब कार्यों का सम्पादन करती हूं मैं जो भी कार्य करती हूं वह नारायण का ही कार्य है। "
" यह साधना स्त्री व पुरूष दोनों को सम्पन्न करनी चयययि " "
Sadhana-Material- भगवती जगदम्बा यंत्र, श्ी फल, गुगु चच पादुका, इच्छा पूपू्ति त्िशक्ति माला व जगदम्बा लॉकेट।।।। " " ताम्बें या स्टील की थाली में कुंकुम से ऐं ह्रीं श्रीं लिखकर ऊपर पुष्प बिछायें, उसके ऊपर भगवती जगदम्बा यंत्र को और यंत्र के बायें तरफ गुरू चरण पादुका स्थापित करें, माला को यंत्रों और पादुका के चारो तरफ गोलाकार में रखें। " पवित्रीकरण करें-
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ऊँ अपवित्रः पवित्रे वा सर्वावस्थां गतोऽपि वा ।
यः स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स बाहृाभ्यन्तरः शुचिु
Halte Akshat und Pushpa unter dem Aasan.
Nicht wahr! त्वया धृता लोका देवि! त्वं विष्णुना धृता।
Und du hältst mich, Göttin! Mache den Sitz heilig.
Treffen Sie einen Vorsatz, indem Sie Wasser in Ihre rechte Hand nehmen.
ऊँ विष्णु र्विष्णु र्विष्णुः संवत् 2078 पौष मासि अमुक बासरे(वार का उच्चारण करें), निखिल गोत्रेत्पन्न, अमुकदेव शर्मा (अपना नाम उच्चारण करें) अहम, मम सपरिवारस्य तंत्रबाधादि सर्वबाधा निवारणार्थं, धर्म अर्थ काम मोक्ष चतुर्बिध पुरूषार्थ सिध्यर्थं, शृति-स्मृति पुराणोक्त फल प्राप्त्यर्थं , अभीष्ट सिध्यर्थं, श्री गुरू भगवती जगदम्बा प्रीत्यर्थं, इच्छा पूर्ति त्रिशक्ति माहेश्वरी साधना कर्माहम करिष्ये। (जल भूमि पर छोड़ दें)
" ऊँ भ्रां भ्रीं भ्रौं भैरव क्षेत्रपालाय नमः। श्री फल को और दीपक को कुंकुम से तिलक करें।
हाथ में पुष्प्प लेकfluss
Glückseligkeit, Freude, Glück, Glück
Die Form des Wissens ist die Selbstwahrnehmung.
Dieser Yogindrami ist der Arzt der Geburtskrankheit
Ich verehre den gesegneten Guru täglich.
चंदन, पुष्प, अक्षत आदि ऊँ ऊँ ह्ीं गु गु नमः मंत्र से संक्षिप्त गुगु पूजन क क क म माला गुगु मंत्र का जप कक क।।।। माला गुगु्र " "
दुर्गा आरती और गुरू आरती सम्पन्न करें। "
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चरण पादुका को पूजा स्थान में रहने दें। " "
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