" भारतीय खगोल शास्त्रियों ने पृथ्वी की घूमने की गति और सूर्य की स्थिति के अनुसार यह गणना की है कि मकर संक्रान्ति के दिन अर्थात् 14 जनवरी को सूर्य हेमन्त ऋतु से शिशिर ऋतु में प्रवेश करता है तथा यह दक्षिणायन से उत्तरायण में आता है। महाभात काल में यह विवेचन विवेचन आया है भीष भीष्म पितामह को इच्छा मृत्यु का ववान था औऔ युद्ध में जब वि पड़े दक दक दक दक दक दक दक दक दक। पड़े पड़े पड़े पड़े पड़े पड़ेगि पड़े पड़े पड़े दक दक दकsprechend
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मकर संक्रान्ति दान का दिवस है और इस दिन अपनी इच्छानुसार योग्य व्यक्ति को दान करना चाहिये, तीर्थ स्थानों पर स्नान करना चाहिये, पंजाब में तो यह मकर संक्रान्ति के एक दिन पूर्व 'लोहड़ी' के रूप में सम्पन्न किया जाता है। "
गुजगुजात औऔ महारष्ट्र में यह सौभाग्य दिवस ूप ूप में मनाया जाता है।।।। ूप में मनाया जाता है। सौभाग्यवती स्त्ियां पूां साज-सज्जा क एक दूस दूस दूस से मिलने जाती हैं।।। "
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मकर संक्रान्ति का पर्व हिन्दू परम्परा में प्राचीन काल से ही अत्यन्त श्रद्धा से मनाया जाने वाला पर्व है। " " " "
" ये तो उसका निश्चय ही्गामी फल प्राप्त होता है।।।।। प missbraucht
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शास्त्रों में वर्णित है कि पौष माह में भगवान सूर्य अपने पूषा नामक आदित्य स्वरूप में रहकर समस्त मंत्रों में पुष्टि का कार्य करते है तथा पौष के पश्चात् माघ माह में भग के स्वरूप में अवस्थित हो समस्त पृथ्वी व पर्वतों में समाहित हो जाते हैं। मकर संक्रान्ति का पर्व एक प्रकार से पौष व माघ माह के संक्रमण काल पर घटित होने वाला पर्व है और कदाचित यही मकर संक्रान्ति को सर्वोच्च संक्रान्ति मानने का कारण भी है, क्योंकि इस अवसर पर समस्त मंत्रे को पुष्ट व जाग्रत कर भगवान सूर्य का आगमन इस " "
आगे की पंक्तियों में भगवान सूर्य के इन्हीं द्वादश आदित्य रूपों से सम्बन्धित साधना विधान को प्रस्तुत किया जा रहा है, जिससे साधक को सम्पूर्ण वर्ष भर के लिए एक प्रकार की सर्वांगीणता प्राप्त हो सके या अधिक स्पष्ट रूप से कहें, तो उसके लिए सम्पूर्ण वर्ष ही मंत्रमय, साधनामय होने की दशा निर्मित हो सके। " "
" मनुष्य के मन में व्याप्त निराशा दूर हो जिती "
" जिसके फलस्वरूप ज्योति तीव्र होकर चश्मा भी ाईर ज
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इस साधना को सम्पन्न करने एवं सूर्य की तेजस्विता को अपने प्राणों में समाहित कर सर्वांगीण रूप में उन्न्ति प्राप्त करने के इच्छुक साधकों को चाहिये कि वे दिनांक 14-01-2022 को प्रातः सूर्योदय से पहले उठकर स्नान आदि नित्य कर्म कर या तो श्वेत वस्त्र धारण करें तथा गुरू चादर ओढ़ लें। पूर्व की ओर मुख करके बैठ जाये। "
अपने समक्ष किसी तामपत्र में 'सूर्य यंत्र' स्थापित कर उसके चारों ओर सूर्य के द्वादश स्वरूप 'द्वादश आदित्य हकीक' को स्थापित करें तथा यंत्र व द्वादश आदित्यों का पूजन कुकुंम, अक्षत, पुष्प, धूप व दीप से कर, सम्पूर्ण वर्ष के लिए तेजस्विता "
मंत्र जप के पश्चात् नेत्र बंद करके, अपने आसन पर बैठे-बैठे ही भावना करें कि सूर्य भगवान अपनी सम्पूर्ण तेजस्विता के साथ उदित होते हुए अपनी रश्मियों के माध्यम से आपके सम्पूर्ण शरीर व प्राणों में समाहित हो रहे हैं और एक प्रकार के आवहान की भावना से सम्पूर्ण शरीर आप्लावित होता जा रहा है। "
इस प्रकार से इस दिवस पर यह साधना सम्पूर्ण होती हहर सायंकाल यंत्र, हकीक पत्थ व माला को किसी पवित्र स्थान पप विसविस्जित क दें दें।।। "
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