" " सबसे आखिरी में अमृत का प्रादुर्भाव हुआ। समुद्र मंथन का मर्म गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने कहा जिस प्रकार सैकड़ों नदियों का जल अचल प्रतिष्ठा वाले समुद्र में विलीन होकर भी समुद्र को विचलित नहीं करते और उसी में समाहित हो जाता है, उसी प्रकार मनुष्य को जीवन में सभी भोग प्राप्त करते हुये विकार उत्पन्न नहीं करने चाहिये। "
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लक्ष्मी की पूर्ण व्याख्या के प्रारम्भिक श्लोक में यही विवरण आया है कि लक्ष्मी जो 'श्री' से भिन्न होते हुये भी 'श्री' का ही स्वरूप है, जो पालनकर्ता विष्णु के साथ रहती है, जिनके चारों ओर सृष्टि स्वरूप में सारे नक्षत्र, तारे विचरण " "
" 'श्री सूक्त' जिसे 'लक्ष्मी सूक्त' भी कहा जाता है, इसमें लक्ष्मी की श्री रूप में सोलह भावों में प्रार्थना की गई है, उस लक्ष्मी की प्रार्थना की गई है, जो वात्सल्यमयी है, धन धान्य, संतान सुख देने वाली है, जो मन और वाणी के दीपक को प्रज्ज्वलित करती है, जिनके आने से दानशीलता प्राप्त होती है, जो वनस्पति और वृक्षों में स्थित है, जो कुबेर, इन्द्र और अग्नि आदि देवता को तेजस्विता प्रदान करने वाली है, जो जीवन में कर्म करने का ज्ञान कराती है , कर्म भाव के फलस्वरूप जीवन के प्रति सम्मोहन आकर्षण शक्ति स्थित होती है, जिनकी कृपा से मन में शुद्ध संकल्प और वाणी में तेजस्विता आती है, जो शरीर में तरलता और पुष्टि प्रदान करने वाली है, उस 'श्री' को जीवन में स्थायी रूप से "
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जिस व्यक्ति में लक्ष्मी की नौ नौ कलाओं का विकास होता है, वहीं लक्ष्मी चिचिाल के लिये वि वि वि वि वि है होती है है।।।।।।। चि के लिये वि वि वि वि वि वि लक है।।।।।। चि चिाल होत होत है होती है।।।।।।।।।। चिाल होत होत होत होती है।।।।।।।। चिाल होताजम है है है।।।। चि चिाल
Diejenigen, die in ihrem Leben bewusste Zustände von Vibhuti, Demut, Kanti, Tushti, Kirti, Sannati, Affirmation, Exzellenz und Riddhi mit Lakshmi haben, werden nur zu vollständigem Lakshmiwan und ihr Leben dient ihnen selbst sowie der Familie und der Gesellschaft. Kann auch sein nützlich.
प्रत्येक साधक को अपने जीवन में दिव्य लक्ष्मी स्वरूपों को पूर्णता से उतारने की क्रिया और समुद्र रूपी बल-बुद्धि व कर्मशक्ति के मंथन द्वारा अमृतमय लक्ष्मी सद्गुरूदेव के सानिध्य से ही पूर्णता स्वरूप प्राप्त होती है, क्योंकि गुरू ही वो पारस है जो सभी प्रकार के ज्ञान , चेतना शक्ति का स्पदंन प्रदान करते है, जिससे साधक-शिष्य में जागृति के फलस्वरूप अपने जीवन की अलक्ष्मी, दूषितता, मलिनता रूपी कुस्थितियों से निवृत होकर सर्वश्रेष्ठता की ओर बढ़ने लगता है।
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संकलsprechend-
समय-
" " " अतः देवालय, पवित्र नदी अथवा श्ेष्ठ ूप में गुगु सानिध्यता की भाव-भूमि हो।।।
" इस महोत्सव में प्वचन, हवन, अंकन पूजन, साधना सामग्ी युक्त विशिष्ट दीक्षायें शुभ सांध्य बेला में 03:04 PM से 05:32 PM प्दद की जzogenes।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।। bis।।।।।।।।।। bis।।।।। ज ज ज sich बेल ज जika "
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साधना सामग्ी-
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