जिसके. जिसमें यदि धाणा नहीं है, तो उसमें औ पशु में कोई अन्त नहीं है है।।।।
Lass es sein! उसी गुरूत्व का जिसका परिचय गुरूदेव से मिलने के बाद ही बोध हो सकता है, जीवन को परिपूर्णता देने के मार्ग का, सत-असत के व्यर्थ द्वन्द्वों से मुक्त हो उस धर्म को धारण करने का, जो युग धर्म हो और आज का युगधर्म है पौरूष तीव्रता ओज बल और सहास।
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गुगु का निनिनografen "
गुरू जीवन का सर्वस्व है, पूर्णत्व का आधार है, श्रेष्ठता का प्रतिरूप है, आकाश से भी अनन्त और पृथ्वी से भी विशाल उनकी महिमा है और जिसके जीवन में गुरू स्थापित हो जाते है, जिसके रक्त के कण-कण में गुरू की प्रतिस्थापना हो जाती है, उसका जीवन भी धन्य हो जाता है, उसे में पू पूपू्णता औऔ सफलता प्राप्त हो जाती है।
, गुरू का मस्तिष्क कहा गया है क्योंकि गुरू अपने आप में कोई साकार बिम्ब नहीं है, निराकार को एक मूर ्ति का आकार दिया गया है ये सारे शिष्य मिलकर के ए क गुरूत्वमय बनते हैं, एक आकार बनाते हैं।
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