" के भी निश्चित अर्थ संस्थापित हो चुके है।
"
साधनाओं अथवा देवी-देवताओं को उनके विशिष्ट स्वरूप से कुछ अलग हटकर एक सम्पूर्ण दृष्टि से देखने की शैली या तो विकसित नहीं हुई अथवा साधकों के पास जीवन की व्यस्तता में इतना अवकाश नहीं रहा कि वे इस विषय पर चिंतन कर सकें क्योंकि इस तीव्र युग में "
यद्यपि ऐसा करने में कोई दोष नहीं है। प्रत्येक साधक से यह अपेक्षा नहीं की जाती है, कि वह पहले किसी साधना अथवा देवी-देवता के स्वरूप क ा तात्विक विवेचन कर ले तब साधना में प्रवृत्त हो किंतु एक सम्पूर्ण दृष्टि की अपेक्षा तो की ही जा सकती है और इसका सर्वाधिक लाभ भी अन्तोगत्वा किस ी साधक को ही तो मिलता है।
साधना एक व्यवसायिक विषय वस्तु नहीं होती कि मुँह मांगा दाम देकदेक अपनी मनोवांछित वस्तु को प्राप्त कक लिया जाये। " विवेचन के माध्यम से।
" इसका भी अर्थ केवल इतना ही है कि साधना कोई भी क्यों न हो, यदि साधक की अंतर्भावना उसमें रच-पच जाती है तो न केवल उसके तात्कालिक उद्देश्यों की पूर्ति संभव होती है वरन् वह उसी साधना के माध्यम से विशिष्ट आध्यात्मिक अनुभूतियों एवं चैतन्यता को प्राप्त करने में भी सक्षम होने लग जाता है।
" " " ही है।
यह सत्य है, कि जीवन की विषमताओं को समाप्त करने में भगवान भैरव की साधना के समक्ष कोई साधना नहीं प्रतीत होती, शत्रुहंता स्वरूप में उनकी सिद्धि प्राप्त करना वास्तव में जीवन का सौभाग्य ही होता है, श्मशान साधनाओं एवं उग्र साधनाओं में पूर्णता उनकी प्रसन्नता के "
" प्रकार का भौतिक अभाव रह जाये।
"
'इति भैरवः' (अर्थात् शत्रुओं को भयभीत करने वाले है, वे भैरव हैं) ही नहीं वरन् 'बिभर्ति जगदिति भैरवः' (अर्थात् जो समस्त जगत का भरण पोषण करने वाले हैं, वे भैरव है। यह बात और है कि उनकी जन सामान्य में छवि एक भीषण देव के रूप में ही सुस्थापित हुई।
" पूर्ति तक केंद्रित रखने के कारण ही होती है।
इसके उपरांत भी इस सत्य से तो कोई इनकार नहीं कर सकता कि जीवन में भौतिक लक्ष्यों की प्राप्ति करन ा, भौतिक बाधाओं को दूर करना जीवन का प्रथम एवं अत अभाव में चित्त मे ं पूर्णता और प्रसन्नता आ ही नहीं सकती।
साधक का चित्त जहां विभिन्न भौतिक बाधाओं की सम ाप्ति से सुस्थिर हो सके वहीं उसके जीवन में एक ते जस्विता का भी समावेश हो सके, इन्हीं क्रियाओं को Am 16. September 2022 wurde das letzte Jahr des Jahres XNUMX veröffentlicht अवसर पर एक विशिष्ट साधना प्रस्तुत की जा रही है।
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वस्तुतः काल भैरव का अर्थ है, जो काल चक्र में पड़े हुए जीव (साधक) को अपनी चैतन्यता से मुक्त कर श्रेयस्कर मार्ग की ओर प्रपर्तित कर दें और निश्चय ही ऐसे देव का पूजन, साधना अत्यंत आल्हाद के साथ सम्पन्न की जानी चाहिये। " "
" इस विधि. इसे सम्पन्न क क के इच्छुक साधक को चाहिये की समय हते हते काल चक्र मुक्ति भैभै यंत्र व भै माला को विशिष्ट दिवस 16. November 2022 " दक्षिण दिशा की ओर मुख कर बैठना आवश्यक है। "
इसके पश्चात् अक्षत, कुंकुम, पुष्प व ह हाथ में लेक दीपक के समक समक्ष छोड़ते निम निम्न मंत्र उच्चाित ककक-
Nimm die Lampe, oh Herr der Götter, oh Herr des Portemonnaies, oh großer Herr.
Tu mir, was ich mir wünsche, und befreie mich schnell von meinen Problemen.
-
Ja! मम् सम्मुखोभव, मम कार्य कुरू कुरू
इच्छितं देहि-देहि मम सर्व विघ्नान् नाशय नाशय स्स्
" यदि संभव हो तो.
मंत्र जप के पश्चात् पुनः दीपक के सम्मुख निम्न मंत्र का उच्चाण कक क।।।
Ich sende dir eine Lampe. Rette mich vor dem Ozean des Todes Mit einer Blume ohne den Buchstaben des Mantras
Vicklenwa Alles klar! तत्क्ष्मस्व मम प्रभो नमः
" दूसरे दिन सभी साधना सामग्री को नदी में श जीविकोपार्जन के क्षेत्र में ही ही बाधाओं को समाप्त कक के के यह एक अनुभव सिद्ध साधना है।।