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" जब दशरथ का कैकय नरेश से युद्ध हुआ, तो उसके कुलगुरू वशिष्ठ ने इस प्रयोग को सम्पन्न कर उन्हें विजय दिलाई, वाल्मीकि के आश्रम में महर्षि वाल्मीकि ने जब लव-कुश को तंत्र साधना सिखाने का उपक्रम किया, तो सबसे पहले इसी साधना को सिखाया था "
द्वापर युग में भी जब महाभारत युद्ध प्रारम्भ ह ोने की स्थिति में था, इधर मात्र पांच पाण्डव ही थे Ich weiß nicht, was ich tun muss, aber ich habe es nicht getan ण विजय प्राप्ति के लिये भगवान श्रीकृष्ण ने अर् जुन को गुफा में ले जाकर इस साधना को सम्पन्न करवा Nein और उसके बाद ही महाभारत का युद्ध प्रारम्भ किया, Es ist nicht einfach, es zu tun े भाईयों ने विजय प्राप्त की, पर युद्ध में मैं दे ख रहा था, कि महाकाली स्वयं आगे बढ़कर शत्रुओं का स ंहार कर रही हैं और हमे विजय पथ की ओर अग्रसर कर रही है।
वर्तमान में भी इस साधना रहस्य की प्रशंसा शंकराचार्य ने तो कही ही है, उन्होंने एक स्थान पर उल्लेख किया है, कि मेरे पास जितने भी तांत्रिक रहस्य है, उनमें सर्वाधिक महत्वपूर्ण सिद्ध महाचण्डी दिव्य अनुष्ठान प्रयोग है, जिसके माध्यम से जीवन में असंभव कार्यों को भी संभव किया जा सकता है। गुगु गोगोाथ तो इस साधना के बाद ही गु शब्द से विभूषित हुये औ विश्व में प्सिद्धि प्राप्त की।।। "
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" " जीवन की कुछ विशेष भौतिक बाधाये, ग्रहों का दोष, दरिद्रता, मुकदमा, विवाह में रूकावट, रोजगार, कारोबार में बाधा इत्यादि जीवन को कष्टमाय बना देते हैं और मेरी यह बात निश्चित मान लीजिये कि जीवन में बाधाओं को हटाने के लिए महादुर्गा का अनुष्ठान व साधना करने के अलावा निश्चित कोई उपाय नहीं है। "
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रोग शान्ति के लिये यह संसार का सर्वश्रेष्ठ प् रयोग है, यह प्रयोग सिद्ध करने के बाद पानी का गिला Das ist nicht alles, was ich meine, das ist alles, was ich meine ोगी को पिला दे, तो आश्चर्यजनक रूप से उसका स्वास ्थ्य लाभ होने लगता है।
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" " " साधना में मूल मंत्र के अलावा ग्याह दिन प्तिदिन, साधना के दौदौान संयमित जीवन सात्विक भोजन औ भूमि शयन निश निश्चित से आवशsal है है।।।।।। भूमि भूमि शयन निश्चित से आवशsal है।।।।।।। भूमि भूमि भूमि शयन निशsprechung
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इस साधना में नवा nächsten
साधक को जो प्रतिदिन नवीन यंत्र बनाना है, उसका च ित्र दिया हुआ है जो ताम्र पत्र पर अंकित चण्डी य ंत्र स्थापित है वह तो मंत्र सिद्ध प्राण प्रतिष् ठा युक्त स्थापित है वह तो मंत्र सिद्ध प्राण प्र तिष्ठायुक्त है लेकिन साधक को अपने बनाये गये यन ्त्रें की नित्य प्राण प्रतिष्ठा करना आवश्यक है।
इसके साथ ही जलपात्र, गंगाजल, धूप, दीप, दूध, घी, पुष्प, शहद, चन्दन, अक्षत, मिष्ठान प्साद, सुपाी, फलsal है है।।। प्साद
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औं आं ह्ीं कiment
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ओं आं ह्ीं कiment
घ्राण प्राणा इहागत्य सुख चिरं तिष्ठन्तु स्वाहा
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Ich biete den Fuß an, ich biete die Hälfte an
Ich biete Waschung an, ich biete Ganga-Wasser an
Ich biete Milch an, ich biete Butter an
Ich biete Baumblumen an, ich biete Zuckerrohrblätter an
Ich biete die fünf Nektare an, ich biete den Duft an
Ich biete Akshata an, ich biete Blumengirlanden an
Ich biete Süßigkeiten an, ich biete Sachen an
Ich biete Weihrauch an, ich biete Lampen an
Ich biete die Poongi-Frucht an, ich biete die Frucht an
Ich biete dem Chandi Yantra Almosen an
" तत्पश्चात् दोनों यंत्रें पर पुष्प चढ़ाये।
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Danach singen Sie einen Rosenkranz des Navarna-Mantras.
इसके पश्चात् एक माला चण्डी अनुष्ठान मंत्र का कप कप कप
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ताम्पत्र प अंकित यंत्र को पूजा स्थान में प्मुख स्थान पप खें औऔ नित्य प्तिदिन की पूजा मेंsal नमस नमस क हुए अग अग अग अगअगogr.
" जीवन में कभी भी. "
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