" । " , नई देह से फिर साधना करूंगा, लेकिन यूं गिड़गिडा कर ओर रो-झींक कर साधना करने का कोई अर्थ नहीं और वह भी वीर वैताल जैसी साधना जो अपने आप में पूर्ण पौरूष साधना है— पूर्ण पौरूष प्राप्त कर लेने की—नहीं प्राप्त करना मुझे छोटे -मोटे बिम्ब औ नहीं प्राप्त कक मुझे मामूली सी अनुभूतियां न लेनी है कोई टुच्ची सिद्धियां। साधना करनी है तो पूर्णता से करनी है। चाहे वीर वैताल की हो या भैरव की। " धिक्का größer " "
'व्यय्थ नहीं जाती है कोई भी साधना-एक-एक क्षण की साधना का हिसाब है मे पास। " एक-एक अणु को चैतन्य करने की, उसे शक्तिमान बनाने की जब वीर वैताल की साक्षात् सिद्धि प्राप्त होगी तुझे, एक युग के बाद पुनः घटना घटेगी इस धरा पर।
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" " " क्रिया पूर्ण होने की घड़ी और कोई याचना नहीं, कोई प्रार्थना नहीं, वीर वैताल का प्रकट होना दासत्व स्वीकार करना ही था— मंद चलती हवा एक क्षण के लिए रूकी, ज्यों प्रकृति की ही श्वांस थम गई हो, अचानक एक ओर से आंधी का प्रचण्ड झोंका आया, एक बुगला बनकबनक उड़ता हुआ, अपने साथ आकाश में उड़ा ले जाने के लिए - अन्तिम पांच आहुतियां शेष, घबघबा गया जयपाल!
लेकिन आत्म संयम नहीं खोया और उस विशिष्ट रक्षामंत्र का उच्चारण कर उछाल दिये सरसों के दाने उसी दिशा में— थम गई एक प्रचण्डता, लेकिन जाते-जाते भी उस विशाल और बूढे़ वट वृक्ष को जमीन में मटियामेट करते हुए कोलाहल सा मच गया चारों ओर सैकडों पक्षियों के साथ-साथ, वही तो आश्य स्थली पता नहीं-किन भटकती आत्माओं की।।
" को उद्धत हो गया हो वह अदना भी कहां? "
" " " " " अत्यन्त घृणित और भयास्पद चेहरा आँखे मानों गड्ढों में धंसी जा रही हो और उस क्रूरता से भरी आँखों में अग्नि की ज्वाला प्रकट हो रही थी, लेकिन दोनों हाथ अभ्यर्थना में जुड़े हुए— एक प्रकार से अपनी पराजय स्वीकार करते हुये, एक ओर रखी मदिरा की बोतल उछाल दी जयपाल ने उसकी ओर साधना की पूर्णता और उसकी अभ्यर्थना को स्वीकार करने के लिये— तंत्र की एक ऐसी क्रिया जिसका रहस्य तो केवल परमहंस स्वामी निखिलेश्वरानंद जी के पास ही सुरक्षित बचा था और जिसे उन्होंने प्राप्त किया था अपने साधक-जीवन में आद्य शंकराचार्य की आत्मा को अपने योग बल से प्रत्यक्ष कर— रोम-रोम हर्षित हो रहा था, आज मैनें एक अप्रतिम साधना प्रत्यक्ष कर स्वयं तो एक सिद्धि प्राप्त की ही है, एक दुर्लभ शक्ति को हस्तगत किया ही है, साथ ही आज मैंनें अपने गुरू के गौरव को भी प्रवर्द्धित किया है।
" " " भी ज्ञान प्राप्त का या धन या भोजन की निनि्त प्राप्ति बायें हाथ का खेल होता है है।।।। बायें हाथ वास्तव में प्त्येक गुगु अपने शिष्य को ूप ूप में ही सही सही वैताल सिद्धि अवश्य प्दान कβ है है
" वैताल सौम्य स्वव में ही उपस्थित होता है लेकिन सा स्वव विकविकाल औ भयानक है।।। " " 1 सिद्धि प्ददायक वैताल यंत्र, 2 सिद्धिदायक वैताल माला, 3 भगवान शिव अथवा महाकाली जीवट।।
" " " या एकांत स्थान में बैठ जाये।
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" महाकाली या भगवान शिव जीवट को पूजा स्थान में स्थापित कक दें।।।। स स्थापित
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