" यह एकादशी सभी एकादशियो का मूल है। " "
Es gibt 24 Ekadashis pro Jahr. " जो साधक, भक्त वaz की की सभी एकादशियों का उपवास नहीं पाता, उन्हें नि्जला एकादशी व्त कक का निβ निा जा त है।।।। क का निβ निा ता है है।। क कका निनिा जातत है है।। क का निनिनिgeld जा त है है।। क का निा दिया ता है है।।। कका निा दिया त है है।।। कका निा दिया त है है।। क कका निा जा त है है।। क का निनिनि दिया त है है।। क का निनिनि दिया त है है।। क का निा दिया sprochen " पौपौाणिक कथाओं के अनुसार महाभात के संदसंद्भ में निsal एकादशी का वव्णन मिलता है, जो प प्कार है- है- है- है- है- है-
एक बार महर्षि व्यास पांडवों के यहां पधारे। भीम ने महर्षि व्यास से कहा भगवान! युधिष्ठर, अर्जुन, नकुल, सहदेव, माता कुन्ती और द्रौपदी सभी एकादशी का व्रत करते है और मुझसे भी व्रत रखने को कहते है परन्तु मैं बिना खाये रह नहीं सकता इसीलिये चौबीस एकादशियों पर निराहार रहने के कष्ट से बचाकर मुझे कोई ऐसा व्रत बताईये जिसे करने में मुझे विशेष असुविधा न हो और सबका फल भी मुायि " " " इसलिये इसे भीमसेन एकादशी भी कहते है।
निर्जला एकादशी साधना के बारे में स्वयं भगवान श्री कृष्ण ने कहा है कि- जो ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी पर निर्जला शक्ति को आत्मसात करने हेतु साधना सम्पन्न करेगा और भगवान श्री हरि की उपासना, पूजा कर निर्धन को दान-दक्षिणा देकर भोजन, "
वास्तव में धर्म, अर्थ, काम व पूर्णता की प्राप्ति का अभीष्ट तब ही सिद्ध हो सकता है, जब साधक साधनात्मक चेतना आत्मसात करने की क्रिया को निरन्तर सम्पन्न करता रहे। " इसीलिये. " " "
सामान्य ूप से यह माना जाता है कि लक्षष की आवश्यकता केवल गृहस्थ व्यक्तियों को पड़ती पड़ती है है।।।।।।। गृहस्थ व्यक्यक को पड़ती है है।।।। गृहसsprechung " " इसलिये योगियों, गृहस्थियों के लिये भगवान पुपु्तममय लक्ष्मी की आवश्यकता जीवन के प्त्येक मार्ग प होती है।।।
" व्यक्ति में जहां एक ओर पुरूषोत्तम की असीम आत्मिक ऊर्जा, साहस, संयम, धैर्य होना चाहिये, वहीं उसके जीवन में लक्ष्मी तत्व के रूप में मान-सम्मान, प्रतिष्ठा, नीति, धर्म, यश, सौभाग्य, अर्थ, आरोग्यता आदि का भी सामावेश होना ही चाहिये। " "
" इस साधना के माध्यम से साधक ऐसी चेतना तत्व की प्राप्ति कर लेता है की वह अपने जीवन में निरन्तर सद्कर्म की क्रिया करता हुआ धन, यश, वैभव, पद्, प्रतिष्ठा, सम्मान, दीर्घायु जीवन, संतान सुख आदि-आदि कामनाएं पूर्ण कर पाता है ।
" साधनाओं के मूल में भावना ही प्रधान होती है। अतः पूर्ण मनोभाव से इस साधना को सम्पन्न करे।
निर्जला एकादशी 21 जून को प्रातः साधक गंगाजल मिश्रित जल से स्नान कर, शुद्ध श्वेत वस्त्र धारण कर सद्गुरुदेव व विष्णु लक्ष्मी का पूजन सम्पन्न करे, फिर अपने सामने एक थाली में स्वस्तिक बनाकर उस पर मिट्टी का दीपक जलाये, उसी थाली में चावल की ढे़री पर " इसके पश्चात् अष्टगंध, अक्षत, पुष्प, तुलसीदल से शालिग्राम विग्ह का पूजन कक क क।।। "
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