" पग-पग पर कठिनाईयां और बाधायें है, अकारण ही शत्रु पैदा होने लगे है जिसके कारण जीवन में आवश्यकता से अधिक तनाव, चिंता बना रहता है। भय का विनाश करने वाले देव है काल भैरव! जिनकी साधना से व्यक्ति के अन्द स्वतः ही ऐसी अग्नि स्फुलिंग स्थापित होता है जिससे उसका सार शशश शकऔऔ शक औ प से से से से दिव दिव दिव दिव दिव दिव दिव दिव दिवsprechendes औ दिव दिव दिव दिव दिव दिवsprechendes औ दिव दिव दिव दिव दिव दिवsprechendes औ दिव दिव दिव दिव दिव दिवsprechendes औ दिव दिव दिव दिव दिवsprechendes औ दिव दिव दिव दिव दिवsprechendes औ दिव दिव दिव दिव दिवsprechendes औ दिव दिव दिव दिव दिवsprechendes औ दिव दिव दिव दिव दिवsprechendes औ दिव दिव दिव दिव दिवsprechendes औ दिव दिव दिव दिव दिव दिवsprechendes औ दिव दिव दिव दिव दिवsprechendes औ दिव दिव दिव दिव दिव दिवsprechendes औयता यतयता यता यतयतयतयतellt "
साधना के द्वार साधक के में में अकाल मृत्यु, दुदु्घटना, ग्हों का कुप्भाव, शत्ु बाधा अथवा कोई्र जो विप हो स स ही ही हीापsprechend षड़यंतsal षड़यंत ज उसके विप स स ही ही समापsprechend षड़यंतsal षड़यंत ज जो विप स स स ही समापsprechend जिससे उसके सफलता के मार्ग में अव अव की स्थिति ही नहीं बनती।। " अन्य साधनाओं को भी अपनी मनोकामना अनुरूप सम्पन्न करें, लेकिन शत्रु विनाशक भैरव साधना प्रत्येक साधक को अनिवार्य रूप से सम्पन्न करना चाहिये, क्योंकि गृहस्थ जीवन का मार्ग संघर्षो से ही गुजरता है, इसलिये सभी साधकों को यह साधना सम्पन्न करना आवश्यक हो जाता है।
" आप में सबसे बड़ा कौन है? " इस सम्पूपू्ण दृश्यमान सृष्टि को उत्पन्न कक वाला मैं ही हूँ हूँ अनादि ब्ह्म होने क क क मैं सब देवत देवत देवत में ससografen "
उन्होंने कहा! ब्रह्म तुम अज्ञान के वशीभूत होकर ऐसी बात कर ि सम्पूर्ण जगत् का पालनकर्ता तो मैं हूँ। मैं ही नारायण की परम ज्योति हूँ। मेरी प्रेरणा से तुम सृष्टि को उत्पन्न करने वाले वाले मैं सबका स्वामी तथा परमतत्व नारायण हूँ। इस प्रकार ब्रह्मा और ऋतु दोनों परस्पर विवाद कर नल अन्त में इस विषय पर वेदों की सहमति लेने का निरु णु
ब्रह्मा और ऋतु ने वेदों से जाकर कहा- हे श्रुतिय!ोे श्रुतिय! आप हमारे सन्देह का निवारण करो कि हम में से बड़ा क क? ऋग्वेद ने कहा- यजुयजु्वेद ने कहा-
" अथअथ्ववेद ने कहा-
" हम उन्हें परमात्मा नहीं मानते। . उस ज्योति ने अपनी आभा में सभी को समेट लिया। " . " ब्रह्मा की बात सुनकर वह बालक पूर्व की आकृति मइय य य द की
फिर ब्रह्मा उस ज्योति से उत्पन्न पुरूष से कहनल! समsprechend " तुम दुष्टों का दमन क क होगे होगे अतः तुम्हें आम~ भी कहा जायेगा। "
तुम मुक्तिदायिनी काशीपू ी के होक क कालजाज का पद पsprechung सर्वप्रथम तो ब्रह्मा द्वारा दिये गये वरदानों को भैरव ने ग्रहण किया फिर ब्रह्मा के पाँचवे मस्तक को जिसने शिव की निन्दा की थी, अपने बांये हाथ की उंगली के नख द्वारा काट दिया और कहा- है ब्रह्मा! " "
" तब ब्रह्मा भयभीत होकर भगवान की स्तुति करने लगे। " "
इसके पश्चात् उन्होंने अपने अवतार भैभै को यह आज्ञा दी-भैभैभै! "
" उसका मुख डरावना था और जीभ लपलपा रही थी। उसके एक हाथ में कटार तथा दूसरे हाथ में खप्पर था। शिव ने उसे आज्ञा दी- ब्रह्महत्ये! जब तक भै भै तीनों में भम भम Entwickel " यह कह कर शिवजी अर्न्तध्यान हो गये। "
" यह शिव. "
" काशी में प्वेश कक ही ब्ह्म हत्या नाम की कन्या ने उनका पीछा छोड़ दिया। " "
" मार्गशीष माह की कृष्ण अष्टमी दिवस पर उनका अवतआुुणण इस दिवस को कालाष्टमी भी कहा जाता है। जो व्यक्ति प्रत्येक माह की अष्टमी को भगवान भैरव की साधना, उपासना करता है, उसके सभी पाप-ताप, शुत्र बाधा, अष्ट पाश आदि समाप्त होते हैं और वह संसार में सर्वत्र विजय प्राप्त करता हुआ यश, ऐश्वर्य, वैभव युक्त जीवन प्राप्त करता है ।
पपाजय का तात्पप्य है- पीड़ा, हानि, बाधा, विा, कार्य में अपूअपू्णता, अपमान इत्यादि। " "
" " " "
कार्य बाधा, शत्रु बाधा, स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्या, डर-भय इन सभी स्थितियों में भैरव साधना तो करना ही चाहिये साथ ही भैरव साधना सम्पन्न करने से साधक को एक विशेष सुरक्षा चक्र प्राप्त होता है, जिससे उसके जीवन में किसी प्रकार की कोई अनहोनी नहीं " यह. " "
" अपना जीवन अपनी इच्छानुसार सकते हैं हैं अपने व्यक्तित को प प प पपाक्मी बना सकते हैं अपनी श्ेष्ठता स्थापित क सकते हैं।।।।।।। श श्ेष्ठता स्थापित "
"
Meditationsmethode
" " यंत्र पर सिन्दूर, चावल, पुष्प, अष्टगंध चढ़ाये। "
" बायां घुटना जमीन प टिकायें तथा दायां पंजा दाया पे जमीन प प खते खते हुये वज्र मुद्रा में अअ्द्ध पालथी के ूप में ज तथ तथ सिद सिदsprechend। सिदsprechend म माल माललorg से म क विजय सिद सिदsprechendes माललorg से म। सिद सिद besonders
साधना समाप्ति के बाद भैरव आरती सम्पन्न करें । " "
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