भारतीय अध्यात्म में 'शक्ति' को विशेष स्थान दिया गया हैं, यहां तक कि उसकी अनुपस्थिति में शिव को भी 'शव' के समान ही माना गया है। " शक्ति ही शिव की आत्मा है। "
" " होना ही पड़ता है। " ऐसा ही क्षण होता है्त नवात्ि का, जिसके सम्बन्ध में स्वयं भगवती ने कहा है-
Während der Gupta-Zeit wird jährlich der große Gottesdienst abgehalten.
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Er wurde von allen Hindernissen befreit und mit Reichtum, Getreide und Kindern ausgestattet
Ein Mann wird zweifellos in meiner Gnade sein.
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" भगवती जगजननी की इसी प्रकार प्रति क्षण सूक्ष्म या स्थूल उपस्थिति मानना ही यथार्थ में 'आस्था' और इस प्रकार मानते हुये सदैव प्रमुदित रहना ही 'साधना' या 'उपासना' है, क्योंकि 'मां' को अपने शिशु से मुस्कान की अपेक्षा होती है, किसी आरती या धन्यवाद की नहीं।
" भगवती दुर्गा के स्वरूप का वर्णन करना तो सहज नहीं है, क्योंकि जिनकी आभा कोटि सूर्य के समान प्रभावान हो, जिसमें समस्त ब्रह्माण्ड की गति, चेतना, समाहित हो, वे प्रकट हो भी जायें, तो भी साधक में यह सामर्थ्य नहीं होता कि वह उनके उस परब्रह्म स्वरूप का विवेचन कर सके, उनकी स्तुकि कि
भगवती. " "
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नवazत्ि काल में वंसत की की र र र र मुख क क क ेशमी पू प प संकलसंकल संकल लेक लेक बैठ ज जायें।। आसन प प संकलसंकल लेक लेक जायें। " सुमुखी चैतन्य सौनsprechung
" आप अपने शरीर में एक नवीन शक्ति का संचरण अनुभव करथथं नवनवात्ि के बाद मुद्िका औा ला को पवित पवित्र जलाशय में प्वाहित कक क क।।
" कुछ व्यक्तियों की तो प्वृत्ति ही प प्कार की है कि इध इध टोक टोक नहीं उध अनिष्ट या हा सामना ककका पड़ जाता है।।। सा सlässig "
" " काला रंग सभी प्रकार की तरंगों का विरोध करता है। "
" इससे पूरे वर्ष आपका घर आपदाओं से सुरक्षित रहेगात
" हमाे समाज में विवाह बाधा की समस्या को लेक युवक, युवती के लिये विकट समस्या उत्पन्न होती है।। " अतः वसन्तोमय जीवन प्रप्ति हेतु साथी का वव भद्रा साधना द्वा सम्भव है।।।
पूजा स्थान में शुद्ध भाव से बैठ जायें। घी का दीपक जलाये और सुसंस्कार युक्त वर-वधू की प्राप्ति हेतु संकल्प लेकर बाजोट पर सुगन्धित पुष्पों के आसन पर भद्रा चक्र को स्थापित कर, एकाग्रचित हो कर निम्न मंत्र की अनंग कामदेव गौरी माला से रविवार गौरी तृतीया पर्व पर 9 माला मंत्र जप सम्पन्न करें -
भद्रा चक्र को अपनी बाजू अथवा गले में धारण करें। नवनवात्ि की पूपू्णता पप दोनों सामग्ी को पवित्र जलाशय में विसविस्जित ककक।।।। पवित्र जलाशय
वंसतोत्सव जहां एक ओर आनन्द, रस का प्रतिदान करता है, वही यह एक अद्वितीय दीक्षा, साधना व उच्चकोटि की उपासना का दिवस है, इस पर्व पर भगवान श्री कृष्ण राधामय कर्म ज्ञान शक्ति की अधिष्ठात्री माँ सरस्वती की आराधना की जाती है। " "
आज का युग प्रतिस्पर्धा का है, जो जितना अधिक जूझेगा, वह उतना ही आगे जायेगा, जो जितना अधिक ज्ञानार्जन करेगा, उतना ही अधिक प्रतिभाशाली होगा, सांसारिक ज्ञान और किताबी ज्ञान के बीच संतुलन बनाकर जो आगे बढ़ने का प्रयास करेगा, उसके समक्ष सफलता के द्वार खुले होंगे। " Multitalent " सुस्थितियां नहीं आ सकती। . "
केवल सद्गुरू कृपा से ही साधक आद्या शक्ति स्वर ूपिणी माँ महासरस्वती की चेतना से जीवन में शक्ति सम्मोहन वशीकरण की चेतना से आप्लावित हो सकेंगे, उसी के फलस्वरूप जीवन में ज्ञान, सद्बुद्धि, वाक चातुर्यता, कौशल, स्मरण शक्ति की वृद्धि होगी।
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